(47) राजकीय आत्मनिर्भर श्रेणी मंदिर श्री बिहारी जी, किला, भरतपुर

मंदिर परिचय एवं संक्षिप्त इतिहासः- स्थानीय प्रचलित मान्यता के अनुसार सैकड़ों वर्ष पूर्व ब्रज क्षेत्र में कामां के निकट कदमखंडी नामक स्थान पर एक वैरागी नागा साधू चतुरषिरोमणि जी थे जो पूर्णतः भगवान श्री कृष्ण को समर्पित थे। भगवान कृष्ण उन नागा साधूओं के समर्पण एवं तपस्या से बहुत प्रसन्न हुए तथा उन्होंने स्वयं का विग्रह नागा साधू को सौंपा जिसे लेकर नागा साधू श्री चतुरषिरोमणि जयपुर जा रहे थे। मार्ग में भरतपुर से उक्त विग्रह आगे नहीें जा सका जिसे भगवान इच्छा मानकर उक्त विग्रह वर्तमान भरतपुर दुर्ग में स्थापित किया गया तथा भरतपुर महाराजा द्वारा उक्त स्थल श्री बिहारी के मंदिर का निर्माण कराया गया। ऐसी मान्यता है कि बिहारी जी का उक्त विग्रह एक स्वंय-भू (स्वयं प्राकट्य) विग्रह है। उक्त विग्रह चार फीट ऊँचा पाषाण का बना हुआ है। बिहारी जी के साथ-साथ श्री राधा जी की धातु से बनी विग्रह भी विराजमान है तथा मंदिर में युगल स्वरूप के दर्षन होते है। वर्तमान में उक्त मंदिर का निर्माण बंसी पहाड़पुर पत्थर से मंदिर निर्माण की नागर शैली में हुआ है जिसमें तीन मण्डप बने है। नृत्य मंडप, रंग मंडप तथा गर्भगृह। मंदिर में वर्ष पर्यन्त विभिन्न उत्सव मनाए जाते हैं। यह भरतपुर शहर का सर्वाधिक प्रसिद्ध मंदिर है। बड़ी संख्या में श्रृद्धालु अपनी दिनचर्या की शुरूआत श्री बिहारी जी के दर्शनों से करते है।