(48) राजकीय आत्मनिर्भर श्रेणी मंदिर श्री गंगाजी, भरतपुर

मंदिर परिचय एवं संक्षिप्त इतिहासः- भरतपुर के तत्कालीन महाराजा श्री बलवंत सिंह द्वारा अपनी मनोरथ इच्छा पूर्ण होने पर अपनी इष्ट देवी को प्रसन्न करने के लिए इस मंदिर के निर्माण हेतु वि.सं. 1902 में मंदिर की नींव रखवायी। मंदिर का निर्माण कार्य 90 वर्ष तक चलने के उपरान्त वर्ष 1937 में तत्कालीन महाराजा सवाई श्री बृजेंन्द्र सिंह के द्वारा मंदिर में माता गंगा जी प्रतिमा की प्राणप्रतिष्ठा शुभमिती द्वादशी सोमवार संवत 1993 अंगेजी तारीख 22 फरवरी 1937 को कराई गई। सफेद संगमरमर की माता गंगा की मूर्ति अपनी सवारी काले मगर के ऊपर है। गंगा माताजी की उक्त खड़ी प्रतिमा संभवतः भारतवर्ष में सबसे बड़ी है। यह मंदिर स्थापत्य कला की दृष्टि से काफी समृद्ध है। इसके निर्माण में राजपूताना शैली, मुगल शैली व दक्षिण भारतीय शैली का प्रयोग हुआ है। यहां दर्शनार्थियों को चरणामृत के रूप में गंगाजल का वितरण किया जाता है, जो गंगा नदी से लाकर मंदिर में रियासतकालीन बनी बड़ी टंकियों में एकत्र किया जाता है। गंगा दषहरा मंदिर में बड़े उत्सव के रूप में मनाया जाता है।