(34) राजकीय आत्म निर्भर श्रेणी मंदिर श्री गंगश्याम जी

संक्षिप्त इतिहास:-  किंवदती है कि राव गांगा जी की रानी पद्मावती जो कि सिरोही के राव जगमाल जी की पुत्री थी वह श्री कृष्ण की अनन्य भक्त थी। रानी पद्मावती के कहने पर राव गांगा जी ने विवाह कर लौटते वक्त दहेज स्वरूप भगवान श्री कृष्ण की श्याम वर्ण की मूर्ति मांगी,यही मूर्ति जोधपुर के राव गांगा जी द्वारा लाई जाने के कारण गंगष्याम नाम से प्रसिद्व हुई। इस मूर्ति के साथ साकल पुजारी भी साथ आये। यह मूर्ति इस मंदिर में स्थापना से पूर्व क्रमंष जोधपुर किले में, साकल पंच पुजारी परिवार के घर, पंच देवरिया मंदिर में अलग-अलग समय पर रखी गई। इसके बाद महाराजा विजय सिंह जी ने इस मंदिर का निर्माण कर 10 फरवरी 1761 में बसंत पंचमी को गंगष्याम जी की मूर्ति को प्रतिष्ठित करवाया।

इस विषाल प्रांगण में स्थित षिखर बद्व मंदिर में विष्णु अवतार के सबंधित विभिन्न प्रकार की कलाकृति की गई। जिससे उसकी सुदंरता दर्षनीय है। महाराजा अभय सिंह जी ने अहमदाबाद के शासक को पराजित करके वहॉ से लाया गया अष्ट घातु से निर्मित सवामणी वजन का नृसिंह भगवान का मुखौटा इस मंदिर को भेंट किया था। जिसका उपयोग प्रत्येक वर्ष वैषाख सुदी चौदस को नृसिंह जयन्ती के उत्सव में होने लगा।