(24) राजकीय आत्मनिर्भर मंदिर श्री गोगाजी गोगामेडी तहसील नोहर जिला हनुमानगढ

इतिहास:-राजकीय आत्मनिर्भर मंदिर श्री गोगाजी गोगामेडी तहसील नोहर जिला हनुमानगढ में स्थित है। राजकीय आत्म निर्भर मन्दिर श्री गोगाजी गोगामेडी तहसील नोहर जिला हनुमानगढ में स्थित है । मन्दिर श्री गोगाजी गोगामेडी देवस्थान विभाग द्वारा प्रबन्धित एवं नियन्त्रित है। इस मन्दिर की सम्पूर्ण व्यवस्था देवस्थान विभाग हनुमानगढ द्वारा की जाती है।किवदंती है कि लगभग 1000 वर्ष  पूर्व दसवीं-ग्यारवी शताब्दी में गोगाजी के समाधिस्थ हो जाने पर दिल्ली के बादशाह ने बगावत दबाकर गोगामेडी से लौटते हुए अलौकिक शक्ति से प्रभावित होकर समाधि पर पक्की कोठी चूना ईटों से बनवाई । ऊॅंचे स्थान पर, ऊॅंचे टीले पर स्थित होने के कारण इसे गोगामेडी नाम दिया गया जिसका जीर्णोद्वार बीकानेर महाराजा श्री गंगासिंह जी (1887-1943) द्वारा 26 जून 1911 को करवाया जाकर ईटों से निर्मित मस्जिदनुमा मन्दिर को सफेद संगमरमर से निर्मित करवाया, साथ ही समाधि पर भी पक्का संगमरमर लगवाया (जिसका शिलालेख मन्दिर के मुख्यद्वार के ऊपर अंकित है) इसी स्मारक पर समाधि के पूर्व भाग में मूर्ति दिग्दर्शित है, जिस पर घोडे पर सवार गोगाजी, घोडे के आगे नरसी पाण्डे व घोडे के पीछे भज्जू कोतवाल, सूर्य-चॉंद उत्कीर्ण है । इस मन्दिर का स्वरूप बाहर से मिश्रित स्थापत्यकला की शैली में मस्जिदनुमा लगता था, जहां दीवारे नहीं होकर चार मीनारों से घिरा था जिसे सन् 2016 से 2019 तक हुए मन्दिर जीर्णोद्वार से जोधपुर के छित्र पत्थरों से मन्दिरनुमा निर्मित करते हुए खंभे व चार मुख्य द्वार निर्मित करवाये गये, लेकिन निज मन्दिर का स्वरूप यथावत है । मंदिर श्री गोगाजी गोगामेडी प्रतिवर्ष भाद्र पद मास में एक माह तक एक विशाल मेला लगता है, मेले में विभिन्न राज्यों यथा बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखण्ड, गुजरात, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश आदि राज्यें से लगभग 30 से 40 लाख श्रद्धालु श्री गोगाजी के दर्शानार्थ आते है। श्रद्धालुओं की सुविधा एवं सुरक्षा हेतु विभिन्न प्रकार की व्यवस्थाऐं यथा टेन्ट व्यवस्था, पेयजल व्यवस्था, विद्युत व्यवस्था, बैरिकेटिंग व्यवस्था, सीसीटीवी कैमरा व्यवस्था, सफाई व्यवस्था आदि की समस्त प्रकार की व्यवस्था देवस्थान विभाग राजस्थान सरकार द्वारा की जाती है। राजकीय आत्म निर्भर मंदिर श्री गोगाजी गोगामेड़ी के निज मंदिर में श्री गोगाजी की समाधी है, जिसमें श्रद्धालुओं द्वारा दर्शन किये जाते हैं। निज मंदिर में एक चिराग जिसके पास चायल मुसलमान एवं एक दीपक जिसके पास ब्राम्हण लोग खड़े रहते हैं, समाधी के समक्ष देवस्थान विभाग का स्थाई गल्ला है जिस पर देवस्थान विभाग के कार्मिक रहते हैं। जिसमें श्रद्धालु अपनी दान-दक्षिण अर्पित करते है। इस तरह यह मेला गंगा-जमुना संस्कृति का प्रतीक होकर साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक माना जाता है।