देवस्थान विभाग मन्दिर संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्द्धन का विभाग है। इस विभाग का गठन भूतपूर्व राजपूताना राज्य की छोटी-बडी 22 रियासतों के विलीनीकरण के पश्चात , पूर्व देशी राज्यों द्वारा राजकोष के माध्यम से संचालित मन्दिरों, मठों, धर्मशालाओं आदि के प्रबंधन एवं सुचारू संचालन हेतु वर्ष 1949 में बने वृहत् राजस्थान राज्य के साथ-साथ हुआ ।
राजस्थान का गौरवशाली अतीत पूर्व शासकों की धार्मिक निष्ठा एवं धर्म पालन के बलिदानों के लिए विख्यात है। देशी राज्यों के अनेक शासकों ने रियासत का राजा स्वयं को नहीं मानकर अपने इष्ट देवता के नाम की मोहरें एवं राजपत्र में अंकित मुद्राओं से शासन किया। ऐसे में राजस्थान के राजाओं और राजकुलों ने विपुल संख्या में मंदिरों, धार्मिक स्थलों और धर्मशालाओं का न केवल राजस्थान में निर्माण कराया अपितु राज्य के बाहर भी अनेक मन्दिर एवं धर्म स्थलों का निर्माण कराया है ।
विभिन्न तीर्थ स्थलों पर बने राज्य के मन्दिर एवं पूजा स्थल मध्यकाल से ही धार्मिक, नैतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक तथा शैक्षणिक प्रवृत्तियों के केन्द्र रहे हैं। इनके माध्यम से ज्योतिष, आयुर्वेद, कर्मकाण्ड, धर्मशास्त्र, संगीत, शिल्प, चित्रकला, मूर्तिकला, लोकगीत, भजन, नृत्य परम्परा आदि का संरक्षण, प्रसार एवं प्रशिक्षण होता रहा है। इस प्रक्रिया में अनेक धर्मज्ञ विद्वानों, निराश्रितों, विद्यार्थियों, साधु-संतों को सहयोग, प्रोत्साहन एवं संरक्षण भी मिलता रहा है। समय के अनुरूप सामाजिक परिवर्तनों के उपरान्त भी ये मन्दिर एवं पूजा स्थल आज भी धार्मिक सौहार्द व सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। प्राचीन स्थापत्य कला, शिल्पकला व चित्रशालाओं के ये अनूठे भण्डार अर्वाचीन भारत की अमूल्य निधि है। नवीन राजस्थान राज्य के निर्माण के पश्चात इस विपुल मन्दिर संपदा के प्रबंध व संरक्षण का उत्तरदायित्व वर्तमान देवस्थान विभाग के पास है।
वर्तमान देवस्थान विभाग विरासत में प्राप्त ऐसी ही धार्मिक एवं पुण्य प्रयोजनार्थ स्थापित संस्थाओं एवं राजकीय मन्दिरों, मठों, लोक प्रन्यासों का नियमन करने, उनके प्रशासन हेतु मार्गदर्शन देने, उन्हें आर्थिक सहयोग देने जैसे धार्मिक एवं सामाजिक कर्तव्यों का निर्वहन करता है।
प्रारंभिक वर्षों में देवस्थान विभाग की पहचान मात्र मन्दिरों की सेवा-पूजा और उनकी सम्पत्ति के प्रबंधकर्ता विभाग की रही है, किन्तु कालांतर में परिवर्तित परिस्थितियों के अनुसार समय-समय पर राज्य सरकार द्वारा विभागीय कार्यकलापों का विस्तार किया गया तथा नवीन दायित्व सौंपे गये ।
ऐसे ही राज्य गठन के एक दशक के बाद ही नवीन आवश्यकताओं के अनुसार राजस्थान सार्वजनिक प्रन्यास अधिनियम, 1959 अस्तित्व में आया और इसके साथ ही न्यासों का पंजीकरण, शिकायतों की जांच और उनके पर्यवेक्षण का दायित्व सौंपा गया ।
इसी प्रकार भूमि सुधार कार्यक्रमों के फलस्वरूप मन्दिरों / मठों की भूमियों के पुन: ग्रहण के पश्चात निर्धारित वार्षिकी के भुगतान तथा मन्दिरों / संस्थाओं का सहायता अनुदान स्वीकृत करने के कार्यकलाप भी इस विभाग के कार्यक्षेत्र में विस्तारित हुए है।
समय के साथ राज्य सरकार द्वारा विभाग का बजट बढ़ाया गया है, मन्दिरों एवं संस्थाओं के अनुरक्षण एवं जीर्णोद्धार हेतु बड़ी परियोजनाएँ बनाई और क्रियान्वित की गयी हैं, विभाग द्वारा विभागीय मन्दिरों एवं संस्थाओं ही नहीं, ट्रस्ट द्वारा संचालित व अन्य धर्म-स्थलों का भी विकास किया गया है, मंदिर परिसर ही नहीं, सड़क, ड्रेनेज, यात्री विश्राम स्थल आदि सुविधाओं और आधारभूत संरचनाओं के विकास पर भी प्रचुर व्यय किया गया है।
शासन की नवीन नीति में तीर्थाटन एवं देशाटन को बढावा देने हेतु नयी योजनाएँ बनाई गयी हैं। राज्य के तीर्थयात्रियों को राज्य से बाहर तीर्थयात्रा की अनेक योजनाएँ संचालित हैं, जिसमें भारत के विभिन्न पर्यटन व तीर्थ स्थानों की निःशुल्क यात्रा व्यवस्था की जाती है।
वर्ष 2024-25 में अनुमानित लक्ष्य 36000 (रेल द्वारा 30000, हवाई जहाज द्वारा 6000 यात्री) बजट की मांग - 86 करोड, बजट आवंटित – 50 करोड उक्त रेल द्वारा निर्धारित लक्ष्य 30000 में से 15000 वरिष्ठ नागरिकों को अयोध्या स्थित श्री राम मंदिर के दर्शन कराये जायेंगे ।
तीर्थ स्थल रेल द्वारा-
1. रामेश्वरम-मदुरई
2. जगन्नाथपुरी
3. तिरूपति
4. द्वारकापुरी-सोमनाथ
5. वैष्णोदेवी-अमृतसर
6. प्रयागराज-वाराणसी
7. मथुरा-वृन्दावन-बरसाना
8. सम्मेदशिखर-पावापुरी-बैधना
9. उज्जैन-ओंकारेश्वर-त्रयम्बकेश्वर (नासिक)
10. गंगासागर (कोलकाता)
11. कामाख्या (गुवाहाटी)
12. हरिद्वार-ऋषिकेश–अयोध्या
13. मथुरा-अयोध्या
14. बिहार शरीफ
15. वैलकानी चर्च(तमिलनाडु)
तीर्थ स्थल हवाई जहाज द्वारा-
1. पशुपतिनाथ महादेव (काठमाण्डु,नेपाल)
विभाग समय की आवश्यकताओं के अनुरूप आधुनिकीकरण की ओर अग्रसर है. इसकी अधिकांश सूचनाएँ विभागीय पोर्टल पर सबके लिए सुलभ रूप में उपलब्ध हैं. समस्त विभागीय सेवाएँ ऑनलाइन रूप में प्रक्रियाधीन हैं.