Devasthan Department, Rajasthan

  
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राजस्थान लोक न्यास अधिनियम, 1959
(1959 का अधिनियम संख्याक 42)
(राष्ट्रपति महोदय की सहमति दिनांक 22 अक्टूबर, 1959 को प्राप्त हुई)

राजस्थान राज्य में लोक धार्मिक और पुण्यार्थ न्यासों को विनियमित करने और उनके प्रशासन के लिए अच्छे उपबन्ध करने हेतु अधिनियम।
भारत गणराज्य के दसवें वर्ष में राजस्थान राज्य विधान मण्डल निम्नलिखित अधिनियम बनाता है:-
अध्याय - 1
प्रारंभिक

  1. संक्षिप्त नाम, विस्तार एवं प्रारंभ:-
    1. इस अधिनियम का नाम राजस्थान लोक न्यास अधिनियम, 1959 है ।
    2. इसका प्रसार सम्पूर्ण राजस्थान राज्य पर होगा ।
    3. इस अधिनियम के अध्याय 1, 2, 3 एवं 4 तुरन्त लागू होंगे।
    4. इस अधिनियम के अध्याय 5, 6, 7, 8, 9 एवं 10 ऐसी तारीख से लागू होंगे तथा उसी तारीख से लोक न्यासों के ऐसे वर्ग या वर्गो पर लागू होंगे जो राज्य सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे एवं इस प्रकार लागू किए जाने के प्रयोजनार्थ राज्य सरकार राज्य के ऐसे लोक न्यासों का उनकी आय या उनकी कुल सम्पत्तियों के मूल्य के आधार पर या अन्य वित्तीय घटकों के आधार पर वर्गीकरण कर सकेगी ।
    5. उप-धारा (4) के अधीन किसी भी अधिसूचना के प्रकाशन के पूर्व उससे प्रभावित होने वाले संभावित व्यक्तियों के सूचनार्थ राजपत्र में उसका एक प्रारूप प्रकाशित किया जाएगा तथा उसके साथ एक सूचना प्रकाशित की जाएगी, जिसमें वह तारीख विनिर्दिष्ट होगी जिसको या जिसके पश्चात उस प्रारूप पर विचार किया जाएगा तथा जिसके पूर्व किसी भी प्रकार की आपत्तियां या सुझाव ग्रहण किये जायेंगे।
    6. इस अधिनियम का अध्याय 11 उस तारीख से लागू होगा जो राज्य सरकार राजपत्र में विशेष अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे तथा राज्य सरकार विभिन्न नगरों एवं कस्बों की जनसंख्या को ध्यान में रखते हुये इस अधिनियम के अध्याय 11 को उन पर लागू करने हेतु विभिन्न तारीखें नियत कर सकेगी ।
    7. इस अधिनियम के अध्याय 12 एवं 13 इस अधिनियम के प्रत्येक अन्य अध्यायों के उपबन्धों के संबंध में उस तारीख से लागू होंगे जिस तारीख से अन्य ऐसे अध्याय लागू हों ।

   2. परिभाषाएं:- इस अधिनियम में, जब तक विषय या संदर्भ द्वारा अन्यथा अपेक्षित न हो -

    1. ‘‘सहायक आयुक्त’’ से धारा 8 के अधीन नियुक्त ‘‘सहायक देवस्थान आयुक्त’’ अभिप्रेत है तथा उसमें राज्य सरकार के ऐसे अन्य पदाधिकारी भी सम्मिलित होंगे जो राज्य सरकार द्वारा इस अधिनियम के प्रयोजनार्थ किसी विनिर्दिष्ट क्षेत्र के लिए सहायक आयुक्त के रूप में अधिसूचित किये जावें ;
    2. ‘‘बोर्ड’’ से धारा 11 के अधीन लोक न्यासों हेतु स्थापित ‘‘राज्य सलाहकार बोर्ड’’ अभिप्रेत है ;
    3. ‘‘पुण्यार्थ विन्यास’’ ऐसी समस्त सम्पत्ति अभिप्रेत है, जो किसी समुदाय या उसके किसी वर्ग के लिए उपयोगी उद्देश्यों- जैसे विश्राम गृहों, पाठशालाओं, विद्यालयों, महाविद्यालयों, गरीबों के भरण पोषण हेतु गृहों और शिक्षा, चिकित्सा सुविधा तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य की अभिवृद्धि हेतु संस्था अथवा इसी प्रकार के अन्य उद्देश्यों की संस्थाओं की सहायतार्थ या उनको बनाए रखने हेतु उस समुदाय या उसके किसी वर्ग के लाभार्थ दी गई हो अथवा समर्पित की गई हो अथवा जो कि उस समुदाय या उसके किसी वर्ग द्वारा अपने अधिकार के रूप में प्रयुक्त हो और इसमें संबंधित संस्थाएं सम्मिलित है ;
    4. ‘‘आयुक्त’’ से धारा 7 के अधीन नियुक्त देवस्थान आयुक्त अभिप्रेत है ;
    5. ‘‘समिति’’ से धारा 13 के अधीन लोक न्यासों के लिए स्थापित एक क्षेत्रीय सलाहकार समिति अभिप्रेत है ;
    6. ‘‘न्यायालय’’ से जिला न्यायालय अभिप्रेत है ;
    7. ‘‘आनुवांशिक न्यासी’’ से किसी लोक न्यास का ऐसा न्यासी अभिप्रेत है जिसके कि पद का उत्तराधिकार आनुवांशिक अधिकार द्वारा न्यासगर्भित होता है या प्रथा द्वारा विनियमित होता है अथवा संस्थापक द्वारा विशिष्टतया प्राविधित किया गया है;
    8. ‘‘मठ’’ से किसी धर्म की उन्नति कोई हेतु ऐसी संस्था अभिप्रेत है, जिसका कि अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति हो, जो शिष्यों के एक वर्ग के लिए आध्यात्मिक सेवा देने अथवा उनको धार्मिक उपदेश प्रदान करने में अपने आपको निरत रखना अपना कर्तव्य समझे अथवा जो ऐसे वर्ग के प्रधान पद का कार्य करता हो अथवा ऐसा करने का अधिकार रखता हो तथा इसमें ऐसे धार्मिक पूजा या उपदेश के स्थान भी सम्मिलित हैं जो कि उस संस्था से सम्बद्ध है ;
    9. ‘‘हित रखने वाला व्यक्ति’’ अथवा किसी लोक न्यास में हित रखने वाला व्यक्ति चाहे वह किसी अन्य नाम से जाना जाये, में निम्नलिखित होंगे:-

(क)    किसी मंदिर के संबंध में ऐसा कोई व्यक्ति जो कि मंदिर में पूजा या सेवा कर्म में उपस्थित रहने का हकदार हो या ऐसी उपस्थिति के लिए अभ्यस्त हो अथवा तत्संबंधी भेंटों का वितरण करने में अंश लेने का अधिकारी हो अथवा अंश लेने का अभ्यस्त हो ;
(ख)    किसी मद के संबंध में मठ का कोई शिष्य अथवा उस धार्मिक सम्प्रदाय जिसका कि मठ हो, से संबंधित कोई व्यक्ति ;
(ग)    राजस्थान सोसायटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1958 के अधीन अथवा राज्य के किसी भी भाग में प्रभावशील तत्समान किसी भी अन्य विधि के अधीन रजिस्ट्रीकृत या की गयी समझी गई संस्था के संबंध में ऐसी संस्था का कोई सदस्य ; तथा
(घ)    किसी अन्य लोक न्यास के संबंध में कोई भी हिताधिकारी ;

(10) ‘‘लोक प्रतिभूतियों’’ से -

(क)    केन्द्रीय सरकार अथवा किसी राज्य सरकार की प्रतिभूतियां ;
(ख)    रेलवे या सार्वजनिक क्षेत्र की अन्य कम्पनियों के संस्थानों के स्कंधों, ऋण पत्रों या अंशों जिन पर ब्याज या लाभांश की गारंटी केन्द्रीय अथवा किसी राज्य सरकार द्वारा दी गई है ;
(ग)    कोई प्रतिभूति जिसको राज्य सरकार के किसी आदेश द्वारा इस निमित अभिव्यक्त रूप से प्राधिकृत किया गया है, अभिप्रेत है

(11) ‘‘लोक न्यास’’ से एक अभिव्यक्त अथवा आन्वयिक (प्रलक्षित) न्यास अभिप्रेत है जो या तो लोक धार्मिक अथवा पुण्यार्थ प्रयोजन के लिए है अथवा दोनों के लिए है तथा इसमें कोई भी मंदिर, मठ, धर्मादा या अन्य कोई धार्मिक या पुण्यार्थ विन्यास अथवा संस्था एवं धार्मिक या पुण्यार्थ या दोनों प्रयोजन हेतु निर्मित कोई सोसायटी सम्मिलित है;

(12) ‘‘रजिस्टर’’ से धारा 16 की उप-धारा (2) के अधीन रखा गया रजिस्टर अभिप्रेत है ;
(13) ‘‘धार्मिक विन्यास’’ या ‘‘विन्यास’’ से वह समस्त सम्पत्ति अभिप्रेत है, जो किसी धार्मिक संस्था की है या उसकी सहायतार्थ की गई या विन्यासित की गई है या उससे सम्बद्ध कोई सेवा या पुण्य करने हेतु दी गई है या विन्यासित की गई है तथा इसमें धार्मिक संस्था के परिसर और उसमें प्रतिष्ठापित मूर्तियां यदि कोई हो एवं किसी धार्मिक उत्सव या धार्मिक अनुष्ठान जो चाहे उस धार्मिक संस्था से संबंधित हो या न हो, सम्मिलित है किन्तु इसमें ऐसी संस्था के न्यासी या आनुवंशिक न्यासी या कार्यवाहक न्यासी या किसी अन्य सेवाधारक या अन्य नियोजित व्यक्ति को व्यक्तिगत भेंट स्वरूप दी गई सम्पत्ति सम्मिलित नहीं है ;
(14) ‘‘धार्मिक संस्था’’ या ‘‘संस्था’’ से किसी धर्म या आस्था के संप्रवर्तन हेतु कोई संस्था अभिप्रेत है तथा इसमें मंदिर, मठ तथा कोई धार्मिक प्रतिष्ठान या धार्मिक उपासना या धार्मिक उपदेश का कोई स्थान, चाहे वह ऐसी संस्था से संबंधित है अथवा नहीं, भी सम्मिलित है ;
(15) ‘‘विनिर्दिष्ट विन्यास’’ से एक धार्मिक संस्था में किसी विनिर्दिष्ट सेवा अथवा पुण्य करने हेतु विन्यासित की गई कोई सम्पत्ति या धनराशि अभिप्रेत है ;
(16) ‘‘मंदिर’’ से किसी भी नाम से विदित एक ऐसा स्थान अभिप्रेत है जिसका उपयोग सार्वजनिक धार्मिक पूजा के स्थान के रूप में होता रहा हो तथा जो सार्वजनिक धार्मिक पूजा गृह के रूप में किसी समुदाय या उसके किसी वर्ग को समर्पित उसके लाभ के लिए हो या उसका इस रूप में अधिकारपूर्वक प्रयोग किया जा रहा हो;
(17) ‘‘न्यासी’’ से एक व्यक्ति जिसमें या तो अकेले ही या अन्य व्यक्तियों के साथ न्यास सम्पत्ति विहित है, अभिप्रेत है तथा इसमें प्रबंधक सम्मिलित है ;
(18) ‘‘कार्यवाहक न्यासी’’ से कोई ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जो तत्समय या तो अकेला ही या किसी अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों के साथ मिलकर किसी लोक न्यास की न्यास सम्पत्ति का प्रबंध करता है तथा इसमें लोक न्यास का प्रबंधक एवं निम्नलिखित भी सम्मिलित है:-
(अ)   किसी मठ के संबंध में ऐसे मठ का अध्यक्ष, तथा
(ब)    किसी ऐसे लोक न्यास के संबंध में जो कि अपना प्रधान कार्यालय या कारोबार का प्रधान स्थान राजस्थान राज्य के बाहर रखता हो, उस सम्पत्ति के प्रबंध और लोक न्यास के प्रशासन का प्रभारी ;
(19)   ऐसे शब्द या अभिव्यक्तियां जिनका कि इस अधिनियम में प्रयोग किया गया है किन्तु जिनकी परिभाषा इस अधिनियम में नहीं की गई है, उनके वही अर्थ होंगे जो भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 (1882 का केन्द्रीय अधिनियमII) में उनके लिए क्रमश: बताये गए हैं।

अध्याय- 2
कतिपय लोक न्यासों की वैधता

3. अनिश्चितता के आधार पर लोक न्यास शून्य नहीं:- किसी विधि, रिवाज अथवा प्रथा के होते हुए भी कोई लोक न्यास केवल इसी आधार पर शून्य नहीं होगा कि वे व्यक्ति या उद्देश्य, जिनके लाभार्थ उस न्यास का सृजन किया गया है, अनिश्चित है या निश्चित नहीं किए जा सकते हैं।
     स्पष्टीकरण:- ऐसे उद्देश्यों जैसे धार्मिक या पुण्यार्थ कार्यो के लिए सृजित किया गया कोई लोक न्यास केवल इस आधार पर शून्य नहीं समझा जाएगा कि वे उद्देश्य जिनके लिए उसका सृजन किया गया है, अनिश्चित है या निश्चित नहीं किए जा सकते हैं।
4.  न्यास इस आधार पर शून्य नहीं कि वह गैर-पुण्यार्थ अथवा गैर -धार्मिक प्रयोजनों के लिए शून्य है:- कोई भी लोक न्यास जो ऐसे प्रयोजनों के लिए सृजित किया गया है जिसमें से कुछ प्रयोजन पुण्यार्थ अथवा धार्मिक है तथा कुछ नहीं है पुण्यार्थ या धार्मिक प्रयोजन के संबंध में केवल इस आधार पर शून्य नहीं समझा जाएगा कि वह गैर-पुण्यार्थ या गैर-धार्मिक प्रयोजन के संबंध में शून्य है।
5. बाध्यता के अभाव के आधार पर लोक न्यास शून्य नहीं:- किसी धार्मिक या पुण्यार्थ प्रयोजन हेतु सम्पत्ति का कोई भी व्ययन लोक न्यास के रूप में केवल इस आधार पर शून्य नहीं समझा जायेगा कि ऐसे व्ययन के साथ ऐसी कोई बाध्यता संलग्न नहीं है जिसके द्वारा उस व्यक्ति से, जिसके पक्ष में यह किया गया है, उसे धार्मिक या पुण्यार्थ उद्देश्य हेतु धारण करने की अपेक्षा की गई हो।
6. विनिर्दिष्ट उद्देश्य की विफलता या सोसायटी आदि के समाप्त हो जाने के कारण लोक न्यास शून्य नहीं:- यदि कोई लोक न्यास किसी पुण्यार्थ या धार्मिक प्रकृति के किसी विनिर्दिष्ट उद्देश्य के लिए अथवा पुण्यार्थ या धार्मिक प्रयोजन के लिए निर्मित किसी सोसायटी या संस्था के लाभार्थ सृजित किया गया हो तो ऐसा न्यास इस बात के होते हुए भी कि किसी सामान्य पुण्यार्थ या धार्मिक प्रयोजन के लिए न्यास सम्पत्ति का विनियोग किए जाने का कोई अभिप्राय नहीं था, केवल निम्न कारणों से अवैध नहीं समझा जाएगा:-
(क) कि विनिर्दिष्ट उद्देश्य जिसके लिए न्यास का सृजन किया गया था, का पालन असम्भव या असाधनीय हो गया है, अथवा
(ख) कि वह सोसायटी या संस्था अस्तित्व में नहीं है अथवा उसका अस्तित्व ही समाप्त हो गया है।

अध्याय - 3
अधिकारियों एवं कर्मचारियों की नियुक्ति

7. देवस्थान आयुक्त:-
(1)   राज्य सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा एक अधिकारी नियुक्त करेगी जिसको देवस्थान आयुक्त कहा जाएगा और जो इस अधिनियम द्वारा या इसके उपबन्धों के अधीन या तत्समय प्रवृत किसी अन्य विधि के अधीन उस पर अधिरोपित अन्य कर्तव्यों एवं कृत्यों के अतिरिक्त राज्य सरकार के सामान्य एवं विशेष आदेशों के अधीन रहते हुए प्रशासन पर अधीक्षण रखेगा तथा सम्पूर्ण राज्य-क्षेत्र में जहां तक यह अधिनियम विस्तारित है, इस अधिनियम के उपबन्धों को कार्यान्वित करेगा।
(2)   ‘‘राजस्थान राज्य के देवस्थान आयुक्त के नाम से आयुक्त’’ एक सकल निगम होगा और इस रूप में शाश्वत उत्तराधिकार एवं एक सामान्य मुद्रा रखेगा तथा अपने निगमित नाम से उसके द्वारा या उसके विरुद्ध बाद जा सकेगा।
8.     सहायक देवस्थान आयुक्त:- राज्य सरकार इसी प्रकार -
(i)    इतनी संख्या में जितनी वह समय-समय पर आवश्यक समझे, सहायक देवस्थान आयुक्तों की नियुक्ति कर सकेगी, तथा
(ii)   ऐसे क्षेत्र की स्थानीय सीमाएं परिनिश्चित करेगी, जिनमें की इस प्रकार से नियुक्त किया गया प्रत्येक सहायक आयुक्त अपनी अधिकारिता रखेगा तथा इस अधिनियम या तत्समय प्रवृत किसी अन्य विधि द्वारा या अधीन उसको प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करेगा।
9.     अधीनस्थ अधिकारी एवं कर्मचारीः- इस अधिनियम के उपबन्धों का कार्यान्वयन करने में आयुक्त एवं सहायक आयुक्तों को सहायता प्रदान करने हेतु राज्य सरकार निरीक्षकों तथा अन्य अधीनस्थ अधिकारियों और कर्मचारियों की ऐसे पदनाम के साथ नियुक्ति कर सकेगी तथा उनके लिए इस अधिनियम या तद्धीन निर्मित नियमों अथवा तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन ऐसी शक्तियां, कर्तव्य एवं कृत्य जैसा आवश्यक समझे, समनुदेशित कर सकेगी:
        परन्तु राज्य सरकार सामान्य अथवा विशेष आदेश द्वारा एवं ऐसी शर्तो, जैसी वह अधिरोपित करना उचित समझे, के अधीन, आदेश में विनिर्दिष्ट ऐसे अधीनस्थ अधिकारियों एवं कर्मचारियों को, जो ऐसे आदेश में उल्लिखित हों, नियुक्त करने की शक्ति आयुक्त एवं सहायक आयुक्तों को प्रदान कर सकेगी।
10.   आयुक्त एवं अन्य अधिकारी सरकार के लोक सेवक होना:- इस अधिनियम के अधीन नियुक्त आयुक्त, सहायक आयुक्त, निरीक्षक एवं अन्य अधीनस्थ अधिकारी एवं कर्मचारी राज्य सरकार के सेवक होंगे तथा अपना वेतन एवं भत्ते राज्य की समेकित निधि से आहरित करेंगे। ऐसे सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों की सेवा शर्ते वही होंगी जो राज्य सरकार द्वारा अवधारित की जाए।

अध्याय-4
बोर्ड एवं समितियों की स्थापना एवं उनके कृत्य

11. सलाहकार बोर्ड की स्थापना एवं गठन:-
(1)   राज्य सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा उन क्षेत्रों के लिए जिन पर तत्समय यह अधिनियम लागू होता है, एक सलाहकार बोर्ड की स्थापना करेगी जो राजस्थान लोक न्यास बोर्ड कहा जायेगा एवं वह प्रत्येक हित का प्रतिनिधित्व करने वाले इतनी संख्या के सदस्यों से मिलकर बनेगा जैसी विहित की जाए।
(2)   बोर्ड के समस्त सदस्य राज्य सरकार द्वारा राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियुक्त किए जाएंगें तथा वे, जैसा अन्यथा उपबन्धित है उसके सिवाय, ऐसी अधिसूचना के प्रकाशन की तारीख से पांच वर्ष की अवधि पर्यन्त अपने पद पर बने रहेंगें।
(3)   राज्य सरकार बोर्ड के सदस्यों में से किसी एक को उसका सभापति नियुक्त करेगी।
(4)   यदि बोर्ड का कोई सदस्य मृत्यु, त्यागपत्र, हटाये जाने या अन्य किसी कारण से अपनी पूरी पदावधि तक पद धारण करने में असमर्थ हो जाए तो इस प्रकार हुए रिक्त स्थान को अन्य व्यक्ति की नियुक्ति करके भरा जा सकेगा तथा इस प्रकार नियुक्त किया गया व्यक्ति ऐसे रिक्त स्थान पर उस शेष अवधि तक ही कार्य करेगा जिस तक वह व्यक्ति, जिसके स्थान पर अन्य व्यक्ति नियुक्त किया गया है, उस पद पर कार्य करता रहता।
(5)   सभापति सहित बोर्ड के सदस्यों को बोर्ड की बैठकों में उपस्थित होने के लिए तथा विहित शर्तो एवं प्रतिबन्धों के अधीन रहते हुए बोर्ड से संबंधित किन्हीं मामलों में किसी प्रकार की यात्रा करने के लिए यात्रा-भत्ता एवं अन्य भत्ते उन दरों से जो राज्य सरकार नियत करे, दिए जाएंगें।
12. बोर्ड के कृत्य:-
        (1) बोर्ड -
(अ)  आयुक्त द्वारा इस अधिनियम के अन्तर्गत उसके कृत्यों के निर्वहन के संबंध में राज्य सरकार को अपनी राय देगा,
(ब)   इस अधिनियम तथा तद्धीन निर्मित नियमों की कार्यान्विती में अनुभव की गई कठिनाईयों की ओर राज्य सरकार का ध्यान आकर्षित करेगा तथा उनमें संशोधन हेतु सुझाव देगा,
(स)   ऐसे विषयों पर विचार करेगा जो राज्य सरकार द्वारा बोर्ड को निर्देशित किए जाएं, तथा
(द)   ऐसे अन्य कृत्यों का निर्वहन करेगा जो विहित किए जायें।
(2)   यदि कोई सहायक आयुक्त, अध्याय 6 एवं 7 के अन्तर्गत उसको प्रदत्त शक्तियों में से किन्हीं भी शक्तियों का प्रयोग किए जाने के संबंध में धारा 14 के अधीन समिति द्वारा दी गई राय से सहमत हो, तो वह मामले को बोर्ड को निर्देशित करेगा।
(3)   उक्त उप-धारा(2) के अधीन निर्देशित किसी मामले में सहायक आयुक्त, बोर्ड के निर्णयानुसार कार्यवाही करेगा।
(4)   राज्य सरकार उक्त उप-धारा (1) के खण्ड (अ) अथवा (ब) के अधीन बोर्ड से प्राप्त सम्पत्तियों पर विचार करने के पश्चात जैसी उचित समझे, कार्यवाही कर सकेगी एवं विशेष रूप से आयुक्त को उसकी शक्तियों में से किन्हीं का भी उसके द्वारा प्रयोग किए जाने के संबंध में इस अधिनियम एवं तद्धीन बनाये गये नियमों से संगत ऐसे निर्देश जारी कर सकेगी जैसे उचित समझें।
13.   क्षेत्रीय सलाहकार समितियां:-
(1)   राज्य सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा प्रत्येक सहायक आयुक्त की अधिकारिता के भीतर क्षेत्र के लिए एक क्षेत्रीय सलाहकार समिति स्थापित करेगी जो प्रत्येक हित प्रतिनिधत्व करने वाले इतनी संख्या के सदस्यों से मिलकर बनेगी, जो विहित की जाये।
(2)   इस समिति के समस्त सदस्य राज्य सरकार द्वारा राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियुक्त किये जायेगे तथा वे, जैसा अन्यथा उपबन्धित है, उसके सिवाय ऐसी अधिसूचना के प्रकाशन की तारीख से पांच वर्ष की अवधि पर्यन्त अपने पद पर बने रहेगे।
(3)   राज्य सरकार समिति के सदस्यों में से किसी एक सदस्य को उसका सभापति नियुक्त करेगी।
(4)   यदि समिति का कोई सदस्य मृत्यु, त्यागपत्र, हटाये जाने या अन्य किसी कारण से अपनी पूरी पदावधि तक पद धारण करने में असमर्थ हो जाय तो इस प्रकार हुए रिक्त स्थान को अन्य व्यक्ति की नियुक्ति करके भरा जा सकेगा तथा इस प्रकार नियुक्त किया गया व्यक्ति ऐसे रिक्त स्थान पर उस शेष अवधि तक ही कार्य करेगा जिस तक वह व्यक्ति, जिसके स्थान पर अन्य व्यक्ति नियुक्त किया गया है, उस पद पर कार्य करता रहता।
(5)   सभापति सहित समिति के सदस्यों को समिति की बैठको में उपस्थित होने के लिये तथा विहित शर्तो एवं प्रबन्धों के अधीन रहते हुए समिति से संबंधित किन्हीं मामलों में किसी प्रकार की यात्रा करने के लिये यात्रा भत्ता एवं अन्य भत्ते उन दरों से जो राज्य सरकार नियत करे, दिये जायेंगे।
14. समितियों के कृत्य:-
(1)   प्रत्येक समिति जिस क्षेत्र के लिए वह स्थापित की गई है उस क्षेत्र के सहायक आयुक्त को अध्याय 6 एवं 7 के अधीन उत्पन्न होने वाले मामलों में सलाह देगी तथा धारा 12 की उप-धारा (2) एवं (3) में अन्यथा उपबन्धित के सिवाय कोई भी सहायक आयुक्त ऐसे मामलों में राय प्राप्त किए बिना या ऐसी राय के विपरीत अपनी शक्तियों की प्रयोग नहीं करेगा।
(2)   प्रत्येक समिति अन्य ऐसे कृत्यों का जो विहित किये जाए निवर्हन करेगी।
15.   बोर्ड एवं समितियों की कार्यवाहियों आदि का संचालन:-
(1) बोर्ड या समिति की कार्यवाही का संचालन करने की रीति, उसके लिए अपेक्षित कर्मचारी तथा उनकी सेवा शर्ते एवं उनके सदस्यों का हटाया जाना राज्य सरकार द्वारा निर्मित नियमों के द्वारा नियत किया जाएगा।
(2)   बोर्ड या समिति का कोई सदस्य बोर्ड या समिति के समक्ष प्रस्तुत किसी ऐसे विषय पर चर्चा या मतदान में भाग नहीं लेगा यदि वह विषय किसी विशेष धर्म से संबंधित लोक न्यास के बारे में है तथा वह सदस्य उस धर्म का अनुयायी नहीं है। 

अध्याय-5
लोक न्यासों का रजिस्ट्रीकरण

16.   रजिस्ट्रीकरण का प्रभारी अधिकारी:-
(1)   सहायक आयुक्त ऐसे समस्त लोक न्यासों, जिनके मुख्यालय या जिनके कार्य के मुख्य स्थान जैसे कि वे धारा 17 की उप-धारा (1) के अन्तर्गत प्रस्तुत आवेदन में घोषित किए गये हैं, उसकी अधिकारिता क्षेत्र की स्थानीय सीमाओं के भीतर स्थित है, के रजिस्ट्रीकरण का प्रभारी अधिकारी होगा।
(2)   सहायक आयुक्त लोक न्यासों का एक रजिस्टर तथा अन्य ऐसी पुस्तकें एवं रजिस्टर ऐसे प्रपत्र. में, जो विहित किए जाएं, रखेगा।
17.   लोक न्यासों का रजिस्ट्रीकरण:-
(1)   किसी लोक न्यास पर इस धारा के लागू होने की तारीख से या किसी लोक न्यास के सृजन की तारीख से, जो भी पश्चात हो, दो वर्ष के भीतर उसका कार्यवाहक न्यासी अधिकारिता रखने वाले सहायक आयुक्त को ऐसे लोक न्यास के रजिस्ट्रीकरण हेतु आवेदन पत्र प्रस्तुत करेगा।
(2)   सहायक आयुक्त कारणों को लेखबद्ध करने पर रजिस्ट्रीकरण हेतु आवेदन पत्र प्रस्तुत करने की उप-धारा (1) में विहित अवधि, तीन मास से अधिक अवधि तक बढ़ा सकेगा।
(3)   प्रत्येक ऐसा आवेदन पत्र शुल्क, यदि कोई हो, किन्तु जो 5 रू. से अधिक नहीं होगा, के साथ प्रस्तुत किया जाएगा तथा उसका उपयोग ऐसे प्रयोजन हेतु होगा जो विहित किया जाए।
(4)   आवेदन पत्र ऐसे प्रारूप में होगा जो विहित किया जाए तथा उसमें निम्नलिखित विवरण होंगे अर्थात-
(i) उस लोक न्यास का उद्गम (जहां तक ज्ञात हो ) उसकी प्रकृति एवं उद्देश्य तथा पदनाम जिसके द्वारा वह पुकारा जाता है या पुकारा जाएगा ;
(ii) स्थान का नाम जहां इस लोक न्यास का प्रमुख कार्यालय या कारोबार का प्रमुख स्थान स्थित है ;
(iii) कार्यवाहक न्यासी तथा प्रबंधक के नाम एवं पते ;
(iv) न्यासी के पद के उत्तराधिकार की रीति ;
(v) चल एवं अचल न्यास सम्पत्ति की सूची तथा ऐसा वर्णन एवं विवरण जो उसकी पहचान के लिए पर्याप्त हो ;
(vi) चल एवं अचल सम्पत्ति का लगभग मूल्य ;
(vii) चल एवं अचल सम्पत्ति या किसी अन्य स्त्रेात, यदि कोई हो, से प्राप्त सकल औसत वार्षिक आय, जो आवेदन पत्र प्रस्तुत करने की तारीख से तत्काल पूर्व के 3 वर्ष के भीतर की, अथवा न्यास के सृजन से व्यतीत अवधि की, जो भी अवधि कम हो, वास्तविक सकल वार्षिक आय पर आधारित हो तथा नवसृजित लोक न्यास की दशा में सभी ऐसे स्त्रोतों से अनुमानित सकल वार्षिक आय ;
(viii) ऐसे लोक न्यास के संबंध में औसत वार्षिक व्यय की राशि जो खण्ड (vii) के अधीन के विवरणों से संबंधित अवधि के भीतर किये गये व्ययों पर अनुमानित की गई है तथा किसी नव सृजित लोक न्यास की दशा में ऐसे लोक न्यास का अनुमानित वार्षिक व्यय;
(ix)     पता जिस पर कार्यवाहक न्यासी या प्रबंधक से लोक न्यास के संबंध में कोई पत्र-व्यवहार किया जा सके;
(x)      ऐसे अन्य विवरण जो विहित किए जाएं ;
           परन्तु निर्मित नियमों में यह विहित किया जा सकेगा कि किसी भी या सभी लोक न्यासों के मामले में इतने मूल्य एवं ऐसे प्रकार की न्यास सम्पत्ति जो उसमें विनिर्दिष्ट की जाए, के विवरण देना आवश्यक नहीं होगा। (5) उप-धारा (1) के अन्तर्गत दिया गया प्रत्येक आवेदन पात्र सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 (1908 का केन्द्रीय अधिनियम V) में वाद पत्रों के हस्ताक्षर करने एवं सत्यापित करने हेतु अधिकथित रीति के अनुसार हस्ताक्षरित एवं सत्यापित होगा। इसके साथ न्यास के विलेख (यदि ऐसा विलेख निष्पादित किया गया है तथा विद्यमान है) की एक प्रति संलग्न की जाएगी तथा यदि न्यास सम्पत्ति में अधिकार अभिलेख में प्रविष्ट अचल सम्पत्ति सम्मिलित है तो ऐसे अधिकार अभिलेख में ऐसी सम्पत्ति के संबंध में सुसंगत प्रविष्टियों की एक प्रति भी संलग्न की जायगी।
(6)   कोई भी सहायक आयुक्त किसी ऐसे लोक न्यास के रजिस्ट्रीकरण हेतु किए गये आवेदन पत्र पर आगे कार्यवाही नहीं करेगा यदि उस लोक न्यास के संबंध में रजिस्ट्रीकरण हेतु अन्य किसी सहायक आयुक्त के समक्ष आवेदन-पत्र किया जा चुका है तथा जिस सहायक आयुक्त के समक्ष ऐसा प्रथम आवेदन पत्र दिया गया है वह निर्णय करेगा कि उस लोक न्यास के रजिस्ट्रीकरण हेतु कौनसा सहायक आयुक्त अधिकारिता रखता है।
(7)   उस सहायक आयुक्त जिसके समक्ष उप-धारा (6) के अन्तर्गत आवेदन पत्र प्रस्तुत किया गया है, द्वारा उप-धारा(6) के अन्तर्गत दिए गए आदेश के विरुद्ध 60 दिन के भीतर आयुक्त को अपील की जा सकेगी तथा ऐसी अपील के निर्णय के अध्यधीन रहते हुए, उप-धारा (6) के अधीन सहायक आयुक्त का आदेश अन्तिम होगा।
18.   रजिस्ट्रीकरण हेतु जांच:-
(1)   धारा 17 के अन्तर्गत आवेदन पत्र प्राप्त होने पर या किसी लोक न्यास में हित रखने वाले किसी व्यक्ति द्वारा कोई आवेदन पत्र प्रस्तुत करने पर अथवा स्वप्रेरणा से सहायक आयुक्त निम्नलिखित प्रयोजनार्थ विहित रीति से जांच करेगा -
(i)          कि क्या कोई न्यास वास्तव में अस्तित्व में है या क्या ऐसा न्यास लोक न्यास है ;
(ii)         कि क्या कोई सम्पत्ति ऐसे न्यास की सम्पत्ति है ;
(iii)       कि क्या न्यास की सम्पूर्ण विषय-वस्तु या उसका कोई सारपूर्ण भाग उसकी अधिकारिता के भीतर स्थित है ;
(iv)        ऐसे न्यास के कार्यवाहक न्यासी एवं प्रबंधक के नाम एवं पते ;
(v)         ऐसे न्यास के न्यासी के पद के उत्तराधिकार की रीति ;
(vi)        ऐसे न्यास का उद्गम, प्रकृति एवं उद्देश्य ;
(vii)       ऐसे न्यास की सकल औसत वार्षिक आय एवं व्यय की राशि, एवं
(viii)     धारा 17 की उप-धारा (4) के अधीन प्रस्तुत किए गए किन्हीं अन्य विवरणों की सत्यता अथवा असत्यता।
(2)   सहायक आयुक्त उप-धारा (1) के अन्तर्गत की जाने वाली जांच की सार्वजनिक सूचना विहित रीति से देगा तथा उस न्यास में हित रखने वाले समस्त व्यक्तियों से ऐसे न्यास के संबंध में 60 दिन के भीतर आपत्तियां यदि कोई हों, आमंत्रित करेगा।
19.    सहायक आयुक्त का निष्कर्ष:- धारा 18 के उपबन्धों के अन्तर्गत की जाने वाली जांच के पूरा होने पर सहायक आयुक्त उक्त धारा में उल्लिखित विषयों के संबंध में कारण सहित अपना निष्कर्ष लेखबद्ध करेगा।
20.    अपील:- कोई भी कार्यवाहक न्यासी या किसी लोक न्यास या ऐसी किसी भी सम्पत्ति जो न्यास की सम्पत्ति होना पाई जाय, में हित रखने वाला व्यक्ति धारा 19 के अन्तर्गत सहायक आयुक्त के निष्कर्ष से असन्तुष्ट होने पर सहायक आयुक्त के सूचना पट्ट पर उसके प्रकाशन की तारीख से 2 माह के भीतर ऐसे निष्कर्ष को निरस्त करने या रूपान्तरित करने हेतु आयुक्त के समक्ष अपील प्रस्तुत कर सकेगा।
21.    रजिस्टर में प्रविष्टियां:-
(1)     सहायक आयुक्त धारा 19 के अन्तर्गत उसके द्वारा अभिलिखित निष्कर्षो के अनुसार अथवा यदि धारा 20 के अन्तर्गत अपील की गई है तो ऐसी अपील पर आयुक्त द्वारा दिये गये विनिश्चय के अनुसार रजिस्टर में प्रविष्टियां कराएगा तथा रजिस्टर में की गई प्रविष्टियों का अपने कार्यालय के सूचना पट्ट पर तथा ऐसे नगर, कस्बे या गांव में जहां कि लोक न्यास का प्रमुख कार्यालय या कारोबार का प्रमुख स्थान स्थित है, सहज दृश्य स्थान पर प्रकाशन कराएगा।
(2)     इस प्रकार की गई प्रविष्टियां इस अधिनियम के अन्य उपबन्धों के अधीन रहते हुये तथा इस अधिनियम के किसी उपबन्ध या तद्धीन निर्मित किसी नियम में किये गये किसी परिवर्तन के अधीन रहते हुए अन्तिम एवं निश्चायक होंगी।
22.    धारा 21 के अन्तर्गत की गई प्रविष्टियों के विरुद्ध सिविल वाद:-
(1) कोई भी कार्यवाहक न्यासी या लोक न्यास या उसकी किसी सम्पत्ति में हित रखने वाला व्यक्ति धारा 21 के अन्तर्गत की गई प्रविष्टि से असंतुष्ट होने पर धारा 21 की उप-धारा (1) के अन्तर्गत सहायक आयुक्त के कार्यालय सूचना पट्ट पर ऐसी प्रविष्टि के प्रकाशन की तिथि से छः माह के भीतर सिविल न्यायालय में प्रविष्टि को निरस्त या रूपान्तरित कराने के लिये वाद प्रस्तुत कर सकेगा।
(2)     ऐसे प्रत्येक वाद में सिविल न्यायालय सहायक आयुक्त के मार्फत राज्य सरकार को सूचना देगा तथा राज्य सरकार यदि ऐसा चाहे, तो वाद का एक पक्षकार बना ली जायेगी।
(3)     वाद के अन्तिम विनिश्चय पर सहायक आयुक्त यदि आवश्यक हुआ, तो रजिस्टर में की गई प्रविष्टियों को ऐसे विनिश्चय के अनुसार शुद्ध करेगा।
23. संशोधन:-
(1)     यदि रजिस्टर में की गई प्रविष्टियों में कोई परिवर्तन होता है, तो कार्यवाहक न्यासी, ऐसे परिवर्तन की तारीख से 90 दिन के भीतर, या जहां ऐसे लोक न्यास के प्रशासन के हित में ऐसी प्रविष्टियों में कोई परिवर्तन चाहा जाये तो ऐसे परिवर्तन या प्रस्तावित परिवर्तन की रिपोर्ट सहायक आयुक्त को विहित प्रारूप और रीति में करेगा या, यथास्थिति, कर सकेगा।
(2)     सहायक आयुक्त रजिस्टर में की गई प्रविष्टियों की शुद्धता के सत्यापन के प्रयोजन हेतु या वह निश्चित करने के लिए कि रजिस्टर में अभिलिखित विवरणों में कोई परिवर्तन हुआ है या नहीं, जांच कर सकेगा।
(3)     यदि, उप-धारा (1) के अन्तर्गत रिपोर्ट प्राप्त होने पर या अन्यथा, उप-धारा (2) के अन्तर्गत ऐसी जांच जैसी वह आवश्यक समझे, करने के पश्चात सहायक आयुक्त इस बात से सन्तुष्ट है कि विशिष्ट लोक न्यास के संबंध में रजिस्टर में अभिलिखित प्रविष्टियों में से किसी में कोई परिवर्तन हो गया है अथवा परिवर्तन करना आवश्यक है तो वह अपना निर्णय कारण सहित लेखबद्ध करेगा तथा धारा 29 के उपबन्ध ऐसे निष्कर्ष पर उसी प्रकार लागू होंगे जैसे कि वे धारा 19 के अन्तर्गत निष्कर्षों पर लागू होते हैं।
(4)     सहायक आयुक्त उप-धारा (3) के अन्तर्गत अभिलिखित निष्कर्ष के अनुसार अथवा यदि उसकी कोई अपील की गई है तो ऐसी अपील में आयुक्त द्वारा किए गए विनिश्चय के अनुसार रजिस्टर की प्रविष्टियों में संशोधन कराएगा तथा धारा 21 एवं 22 के उपबन्ध ऐसी संषोधित प्रविष्टियों पर उसी प्रकार लागू होंगें जैसे कि वे मूल प्रविष्टियों पर लागू होते हैं।
24.    सहायक आयुक्त द्वारा आगे जांच:- धारा 21 अथवा 23 के अन्तर्गत प्रविष्टियों या संशोधित प्रविष्टियों के रजिस्टर में दर्ज करने के बाद किसी भी समय यदि सहायक आयुक्त को यह प्रतीत हो कि धारा 18 या धारा 23 की उप-धारा (2) के अन्तर्गत किसी लोक न्यास से संबंधित कोई बात जांच करने से रह गई है तो सहायक आयुक्त विहित रीति से आगे और जांच कर सकेगा तथा अपने निष्कर्ष लेखबद्ध करेगा एवं अपने द्वारा किए गए विनिश्चय के अनुसार रजिस्टर में प्रविष्टियां कर सकेगा या पूर्व में की गई प्रविष्टियों में संशोधन कर सकेगा तथा धारा 19, 20, 21, 22 एवं 23 के उपबन्ध इस धारा के अन्तर्गत जांच, निष्कर्षो को लेखबद्ध करने एवं रजिस्टर में प्रविष्टियां करने या पूर्व में की गई प्रविष्टियों में संशोधन करने में यथासंभव लागू होंगे।
25.    न्यास सम्पत्ति के संबंध में समस्त सहायक आयुक्तों को सूचना भेजना:- (1) यदि किसी लोक न्यास की सम्पत्ति का कोई भाग एक से अधिक सहायक आयुक्त की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर स्थित है तो उस न्यास का रजिस्ट्रीकरण प्रभारी सहायक आयुक्त उस न्यास के संबंध में रजिस्टर में अभिलिखित प्रविष्टियों या संषोधित प्रविष्टियों की एक प्रति प्रत्येक ऐसे सहायक आयुक्त, जिसकी अधिकारिता के भीतर उस न्यास सम्पत्ति का कोई भाग स्थित है, को भेजेगा।
         (2) उप-धारा (1) के अन्तर्गत प्रविष्टियों या संशोधित प्रविष्टियों की प्रति प्राप्त करने पर वह सहायक आयुक्त इस प्रयोजन हेतु विहित पुस्तक में उनके विवरण दर्ज कराएगा।
26.    न्यायालय द्वारा संबंधित सहायक आयुक्त को विनिश्चय की प्रति भेजना:- किसी लोक न्यास के संबंध में किसी प्रश्न का विनिश्चय करने वाला सक्षम अधिकारिता का कोई भी न्यायालय जो इस अधिनियम के या उसके अधीन उपबन्धों द्वारा अभिव्यक्त या विवक्षित रूप से विनिश्चय करने से नहीं रोक दिया गया हो, ऐसे विनिश्चय की एक प्रति अधिकारिता रखने वाले सहायक आयुक्त के पास प्रेषित करेगा तथा वह सहायक आयुक्त ऐसे विनिश्चिय के अनुसार ऐसे लोक न्यास के संबंध में रजिस्टर में प्रविष्टि या उसमें संशोधन कराएगा। इस प्रकार किए गए संशाधनों में कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा जब तक कि ऐसा विनिश्चय अपील या पुनर्विलोकन में सक्षम न्यायालय द्वारा नहीं बदला जाता। ऐसे परिवर्तनों के अधीन, किए गए संशोधन अन्तिम एवं निश्चायक होंगे।
27.    वसीयत द्वारा लोक न्यास:- वसीयत द्वारा सृजित लोक न्यास के मामलें में उसी वसीयत का निष्पादक वसीयत का प्रोबेट स्वीकार होने की तारीख से एक माह के भीतर या वसीयतकर्ता की मृत्यु की तारीख से छः माह के भीतर जो भी पहले हो, न्यास के रजिस्ट्रीकरण हेतु धारा 17 में उपबन्धित रीति से आवेदन करेगा तथा इस अध्याय के उपबन्ध ऐसे रजिस्ट्रीकरण पर लागू होंगें।
28.    कतिपय मामलों में सहायक आयुक्त को सूचना देना:- यदि किसी सिविल न्यायालय या राजस्व न्यायालय या अधिकारी के समक्ष चल रही किसी कार्यवाही में किसी लोक न्यास का सृजन करने के अभिप्राय से कोई ऐसा विलेख प्रस्तुत किया जाता है या ऐसे न्यायालय या अधिकारी के समक्ष किसी प्रश्न का विनिश्चय रजिस्टर की प्रविष्टि को प्रभावित करने वाला है तो ऐसा न्यायालय या अधिकारी ऐसी कार्यवाही की सूचना सम्बद्ध अधिकारिता के सहायक आयुक्त को देगा तथा यदि वह सहायक आयुक्त उस संबंध में आवेदन करता है तो उसे ऐसी कार्यवाही में पक्षकार बना लिया जाएगा।
29.    अरजिस्ट्रीकृत न्यास द्वारा किए जाने वाले वादों का वर्जन:-
(1)     किसी भी न्यायालय में ऐसे लोक न्यास, जिनका इस अधिनियम के अन्तर्गत रजिस्ट्रीकरण आवश्यक है, किन्तु रजिस्ट्रीकरण नहीं किया गया है, की ओर से किसी अधिकार के प्रवर्तन हेतु किया जाने वाला कोई वाद न तो सुना जाएगा न ही विनिश्चय किया जाएगा।
(2)     उप-धारा (1) के उपबन्ध ऐसे लोक न्यास की ओर से अधिकार के प्रवर्तन हेतु किए गए प्रतिसोदन के दावे अथवा अन्य कार्यवाही पर लागू होंगें।

अध्याय- 6
न्यास सम्पत्ति का प्रबन्ध

30.   लोक न्यास के धन का विनियोजन:-
(1)   यदि किसी लोक न्यास की कोई सम्पत्ति धनराशि के रूप में है और ऐसी धनराशि तत्काल या किसी शीघ्र तिथि पर उस न्यास के काम में नहीं लगाई जा सकती है, तो उसका कार्यवाहक न्यासी, न्यास के विलेख में प्रतिकूल निर्देश, यदि कोई हो, के होते हुए भी उस धनराशि को भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (सन् 1934 का केन्द्रीय अधिनियम 2) में यथापरिभाषित किसी अनुसूचित बैंक में अथवा डाकघर बचत खाते में अथवा राजस्थान सहकारी समिति अधिनियम, 1953 (सन् 1953 का राजस्थान अधिनियम 4) के अधीन रजिस्ट्रीकृत सहकारी बैंक में जमा कराने अथवा लोक प्रतिभूतियों में विनियोजित करने के लिए बाध्य होगा:- परन्तु ऐसी धनराशि का विनियोजन भारत में स्थित अचल सम्पत्ति के प्रथम बंधक में भी तीन वर्ष की अवधि तक के लिए किया जा सकता है यदि वह सम्पत्ति पट्टा-धृत नहीं है तथा उसका मूल्य बंधक राशि के आधे से अधिक है; परन्तु यह और कि आयुक्त साधारण या विशेष आदेश द्वारा किसी लोक न्यास का ऐसे न्यासों के वर्ग के कार्यवाहक न्यासी को ऐसी धनराशि किसी अन्य रीति से विनियोजित करने की अनुमति दे सकेगा।
(2)   इस अधिनियम के प्रारंभ होने के पूर्व न्यास विलेख में अन्तर्विष्ट निर्देश के अनुसार किये गए किसी विनियोजन या जमा पर उप-धारा (1) की किसी बात का प्रभाव नहीं पड़ेगा; परन्तु इस अधिनियम के प्रारंभ होने पर या तत्पश्चा ऐसे विनियोजन या जमा से प्राप्त या अर्जित कोई ब्याज या लाभांश अथवा उक्त विनियोजन या जमा के परिपक्व होने पर वसूल की गई राशि उप-धारा(1) में विहित रीति से प्रयुक्त या विनियोजित की जाएगी।
31.   कतिपय अन्तरणों हेतु पूर्व स्वीकृति प्राप्त करना:-
(1)   न्यास विलेख में दिए गए किन्हीं निर्देशों अथवा इस अधिनियम या किसी अन्य विधि के अन्तर्गत किसी न्यायालय द्वारा दिए गए किसी निर्देश के अधीन रहते हुए:-
(क) किसी लोक न्यास की किसी भी अचल सम्पत्ति या पांच हजार रूपये से अधिक मूल्य की चल सम्पत्ति का विक्रय, विनिमय या दान, तथा
(ख) किसी लोक न्यास की कृषि भूमि के माले में पाचं वर्ष की अवधि से अधिक के लिए तथा गैर-काष्त भूमि या भवन के मामले में तीन वर्ष की अवधि से अधिक के लिए कोई पट्टा, सहायक आयुक्त की बिना पूर्व स्वीकृति के मान्य नहीं होगा।
(2)   उप-धारा (1) के अन्तर्गत सहायक आयुक्त की स्वीकृति के लिए आवेदन पत्र विहित रीति से तथा प्रपत्र में दिया जाएगा।
(3)   यदि उप-धारा (1) में विनिर्दिष्ट किसी सौदे के संबंध में स्वीकृति हेतु नियमानुसार किए गए आवेदन पत्र पर सहायक आयुक्त आवेदन पत्र की प्राप्ति से दो माह के भीतर अन्तिम आदेश पारित नहीं करता है, तो यह मान लिया जाएगा कि उस सौदे के संबंध में उसने स्वीकृति प्रदान कर दी है, बशर्ते कि आवेदन पत्र में सौदे का पूर्ण विवरण उचित प्रकार से दिया गया है।
(4)   सहायक आयुक्त उप-धारा(1) में विनिर्दिष्ट किसी सौदे के संबंध में स्वीकृति प्रदान करने से तब तक इन्कार नहीं करेगा जब तक कि उसके मत में उस सौदे से लोक न्यास के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना न हो, तथा स्वीकृति प्रदान करने से इन्कार करने का कोई आदेश तब तक पारित नहीं किया जाएगा, जब तक कि ऐसे लोक न्यास के कार्यवाहक न्यासी को सुनवाई का यथोचित अवसर नहीं दिया गया है।

अध्याय - 7
लेखा, अंकेक्षण तथा बजट

32.   लेखादि रखना:- इस अधिनियम के अन्तर्गत रजिस्ट्रीकृत किसी लोक न्यास का कार्यवाहक न्यासी या प्रबंधक न्यास की समस्त चल तथा अचल सम्पत्तियों का नियमित लेखा रखेगा। ऐसे लेखों का प्रारूप और उसमें प्रविष्ट किये जाने वाले विवरण ऐसे होंगे, जो विहित किये जायें अथवा जहां वे विहित नहीं किये गये हों, तो ऐसे होंगे, जो सहायक आयुक्त द्वारा अनुमोदित किए जाएं।
33.   लेखों का शेष एवं अंकेक्षण:-
(1)   धारा 32 के अधीन रखे गऐ लेखों का प्रतिवर्ष 31 मार्च को अथवा ऐसे अन्य दिन जो सहायक आयुक्त द्वारा नियत किया जाए, शेष निकाला जाएगा।
(2)   लेखों का अंकेक्षण प्रतिवर्ष ऐसी रीति से जो विहित की जाय तथा ऐसे व्यक्ति द्वारा जो चार्टर्ड एकाउन्टटेन्टस् ( 1949 का केन्द्रीय अधिनियम, 38 ) के अर्थ में चार्टर्ड अकाउन्टेन्टस् हैं अथवा किसी ऐसी फर्म द्वारा जिसके समस्त भागीदार भारत में व्यवसाय करने वाले चार्टर्ड एकाउन्टेन्टस हैं, अथवा ऐसे व्यक्तियों द्वारा जो इस संबंध में राज्य सरकार द्वारा प्राधिकृत किए जाएं, किया जाएगा।
(3)   उप-धारा (2) के अन्तर्गत कार्य करने वाला प्रत्येक अंकेक्षक, प्रत्येक कार्यवाहक न्यासी अथवा प्रबंधक के आधिपत्य में या नियंत्रणाधीन लेखें तथा समस्त पुस्तकों, प्रमाणकों, अन्य प्रलेखों एवं अभिलेखों को देख सकेगा। ऐसा कार्यवाहक न्यासी या प्रबंधक ऐसे अंकेक्षण के लिए ऐसे परीक्षण के निमित्त समस्त सुविधाओं की व्यवस्था करेगा।
(4)   उप-धारा (2) में विनिर्दिष्ट किसी बात के होते हुए भी सहायक आयुक्त किसी भी लोक न्यास के लेखों का विशेष अंकेक्षण किए जाने का, जब भी उसकी राय में ऐसा विशेष अंकेक्षण आवश्यक हो, निदेष दे सकेगा तथा उप-धारा (2) एवं (3) के उपबन्ध जहां तक वे लागू होने योग्य हों, ऐसे विशेष अंकेक्षण पर लागू होंगें।
(5)   सहायक आयुक्त ऐसे विषेष अंकेक्षण के लिये ऐसा शुल्क जो विहित किया जाए, चुकाने का विशेष  निर्देश दे सकेगा तथा कार्यवाहक न्यासी या प्रबंधक न्यास सम्पत्ति में से ऐसे शुल्क का भुगतान करने का दायी होगा।
34.   तुलन-पत्र तैयार करने तथा अनियमितताओं के विषय में प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के संबंध में अंकेक्षक का कर्तव्य:-
(1)   किसी लोक न्यास के लेखों का धारा 33 के उपबन्धों के अधीन अंकेक्षण करने वाले प्रत्येक अंकेक्षणक का यह कर्तव्य होगा कि वह लेखों का तुलन-पत्र तथा आय-व्यय का लेखा तैयार करे और उनकी एक प्रति उस सहायक आयुक्त को पे्रषित करे जिसकी अधिकारिता में लोक-न्यास का पंजीकरण किया गया है।
(2)   अंकेक्षक अपनी रिपोर्ट में अनियमितताओं, अवैध या अनुचित व्यय अथवा लोक न्यास को प्राप्त धन या अन्य सम्पत्ति को वसूल करने में विफलता या भूल अथवा उस न्यास के धन या अन्य सम्पत्ति की हानि या बर्वादी विषयक समस्त मामलों का उल्लेख करेगा और यह बतायेगा कि क्या ऐसे व्यय, विफलता, भूल, हानि या बर्बादी न्यासी या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा विश्वासघात या दुरुपयोग या किसी अन्य दुराचार के परिणामस्वरूप हुई थी।
35.   बजट:- प्रत्येक लोक न्यास जिसकी सकल वार्षिक आय तीन हजार छः सौ रूपये से अधिक है का कार्यवाहक न्यासी प्रतिवर्ष, ऐसी तारीख से पूर्व और ऐसे प्रारूप जो में विहित किए जायें, आगामी वर्ष के दौरान न्यास की सम्पत्ति की संभावित प्राप्तियों और संवितरणों को दिखाते हुए एक बजट सहायक आयुक्त को प्रस्तुत करेगा।
36.   निरीक्षण तथा प्रतिलिपियां:-
(1)   लोक न्यास का गजट, तुलन-पत्र., आय-व्यय का लेखा तथा अंकेक्षण रिपोर्ट, यदि कोई हो, सहायक आयुक्त के कार्यालय में किसी भी ऐसे व्यक्ति को जो ऐसे लोक न्यास में हित रखता हो, ऐसे शुल्क का भुगतान करने पर जो विहित किया जाए, निरीक्षण के लिये उपलब्ध होंगें।
(2)   ऐसी शर्तो के अधीन तथा ऐसे शुल्कों का भुगतान करने पर जो विहित किये जायें, सहायक आयुक्त किसी लोक न्यास में हित रखने वाले किसी व्यक्ति द्वारा आवेदन पत्र दिये जाने पर ऐसे व्यक्ति को ऐसे समस्त या किन्हीं भी प्रलेखों, प्रलेखों को जो ऐसे निरीक्षण के लिए उपलब्ध होते हैं, की प्रमाणित प्रतिलिपि प्रदान करेगा।

अध्याय-8
लोक न्यासों के संबंध में अधिकारियों की शक्यिां

37.   आयुक्त का पुण्यार्थ विन्यासो का कोषाध्यक्ष होना:- चेरिटेबल एन्डोवमेन्ट्स एक्ट, 1890 (सैन्ट्रल एक्ट 6 आफ 1890) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी आयुक्त राजस्थान राज्य के पुण्यार्थ विन्यासों का, उक्त अधिनियम के उपबन्धों के अधीन नियुक्त किया हुआ कोषाध्यक्ष समझा जाएगा तथा इस अधिनियम के लागू होने की तारीख के पूर्व कोषाध्यक्ष में निहित सम्पत्ति पुण्यार्थ विन्यास के कोषाध्यक्ष के रूप में आयुक्त में निहित समझी जावेगी तथा उक्त अधिनियम के उपबन्ध आयुक्त पर उक्त अधिनियम के अधीन नियुक्त पुण्यार्थ विन्यासों के कोषाध्यक्ष के रूप में लागू होंगे।
38.   निर्देशों के लिए आवेदन:-
(1)   यदि सहायक आयुक्त किसी लोक न्यास में हित रखने वाले किसी व्यक्ति द्वारा आवेदन पत्र प्रस्तुत करने पर या अन्यथा, निम्नलिखित के बारे में ऐसी जांच करने के पश्चात् जिसे वह आवश्यक समझे, संतुष्ट हो जाये -
(क) कि लोक न्यास का मूल उद्देश्य विफल हो गया है ;
(ख) कि न्यास सम्पत्ति का समुचित रूप से प्रबंध या व्यवस्था नहीं हो रही है ; अथवा
(ग)   कि लोक न्यास की व्यवस्था हेतु न्यायालय का निर्देश आवश्यक है ; तो वह कार्यवाहक न्यासी को सुनवाई का अवसर प्रदान करने के पश्चात ऐसे कार्यवाही न्यासी को अथवा किसी अन्य न्यासी या व्यक्ति को, जिसका कि न्यास में हित हो, यह निर्देश दे सकेगा कि वह ऐसे समय के भीतर जो तीस दिन से अधिक नहीं होगा तथा सहायक आयुक्त द्वारा निर्दिष्ट किया जाए, निर्देशों के लिए न्यायालय में आवेदन पत्र प्रस्तुत करे।
(2)   यदि इस प्रकार निदेशित कार्यवाहक न्यासी या कोई अन्य न्यासी या व्यक्ति जिसका न्यास में हित हो अपेक्षित आवेदन प्रस्तुत करने में विफल रहे या किसी लोक न्यास का कोई न्यासी नहीं हो अथवा किसी अन्य कारणवश सहायक आयुक्त ऐसा करना उचित समझे तो वह स्वयं न्यायालय को इस प्रयोजनार्थ आवेदन पत्र प्रस्तुत करेगा।
39.   धारा 38 के अन्तर्गत आवेदन करने से इन्कारी के विरुद्ध आयुक्त को आवेदन पत्र:-
(1) जब सहायक आयुक्त धारा 38 की उप-धारा (1) के अन्तर्गत किसी आवेदन पत्र को अस्वीकार कर देता है या उक्त धारा की उप-धारा (2) के अधीन वह सहायक आयुक्त स्वयं न्यायालय में आवेदन पत्र प्रस्तुत करने से विफल रहता है या ऐसा आवेदन पत्र न्यायालय में प्रस्तुत करने से इन्कार कर देता है तो आयुक्त ऐसी अस्वीकृति, विफलता या इन्कारी से 90 दिन के भीतर उसको आवेदन पत्र प्रस्तुत होने पर अथवा ऐसे तथ्यों पर जो अन्यथा उसकी जानकारी में आए तथा कार्यवाहक न्यासी को सुनवाई का उचित अवसर प्रदान करने के पश्चात सहायक आयुक्त के आदेश को, यदि कोई हो, निरस्त कर सकेगा एवं सहायक आयुक्त से अपेक्षा कर सकेगा कि निर्देश प्राप्त करने हेतु वह स्वयं न्यायालय में आवेदन पत्र प्रस्तुत करे।
(2) उप-धारा (1) के अन्तर्गत आयुक्त के आदेशों के अधीन रहते हुए धारा 38 के अन्तर्गत सहायक आयुक्त द्वारा पारित समस्त आदेश अन्तिम होंगे
40.   धारा 38 अथवा धारा 39 के अधीन आवेदन पर न्यायालय की शक्तियां:-
(1)   धारा 38 अथवा धारा 39 के अन्तर्गत या अनुसरण में दिए गए आवेदन पत्र की प्राप्ति पर न्यायालय उस मामले में ऐसी जांच जैसी वह आवश्यक समझे करेगा अथवा करवायेगा और उसमें ऐसे आदेश पारित करेगा जो वह उचित समझे।
(2) उप-धारा (1) के अन्र्तगत शक्तियों का प्रयोग करते हुये न्यायालय को अन्य शक्तियों के अतिरिक्त निम्नलिखित के लिए आदेश देने की शक्ति होगी -
(क)    किसी न्यासी को हटाने के लिए ;
(ख)    नया न्यासी नियुक्त करने के लिए ;
(ग)   यह घोषणा करने की कि न्यास सम्पत्ति का या उसमें अन्तर्विष्ट हित का कौन सा भाग न्यास के किसी विशेष उद्देश्य के लिए आवंटित किया जाएगा ;
(घ)   न्यास सम्पत्ति के प्रबंध की योजना तैयार करने के लिए ;
(ड)   यह निर्देष देने के लिए कि ऐसे लोक न्यास जिसका मूल उद्देश्य विफल हो गया है की निधियां उस उद्देश्य जिसके लिए न्यास का सृजन किया गया था, का सम्यक् ध्यान रखते हुए किस प्रकार खर्च की जाएगी;
(च) ऐसे अन्य निर्देश जारी करने के लिए जो कि उस मामले की प्रकृति के अनुसार अपेक्षित हों।
(3)   उप-धारा (2) के अधीन न्यायालय द्वारा किया गया कोई भी आदेश उस न्यायालय की डिग्री समझा जाएगा तथा उसके विरुद्ध अपील उच्च न्यायालय में की जा सकेगी।
41. नए कार्यवाहक न्यासी की नियुक्ति के लिए आवेदन:-
(1) यदि किसी लोक न्यास का वर्तमान कार्यवाहक न्यासी -
(क) स्वत्व त्याग देता है या मर जाता है,
(ख) आयुक्त या सहायक आयुक्त या राज्य सरकार द्वारा इन निमित प्राधिकृत अन्य अधिकारी की बिना अनुमति भारत से लगातार 6 महिने की अवधि तक अनुपस्थित रहता है या विदेश में बसने के उद्देश्य से भारत छोड़ देता है,
(ग)   दिवालिया घोषित कर दिया जाता है,
(घ)   न्यास से मुक्त किये जाने की इच्छा प्रकट करता है,
(ड)   न्यासी के रूप में कार्य करने से इन्कार कर देता है,
(च) न्यास में कार्य करने के लिए अयोग्य हो जाता है या शरीर से असमर्थ हो जाता है अथवा ऐसा पद स्वीकार कर लेता है जो न्यास से असंगत हो, अथवा
(छ) न्यास की व्यवस्था करने के लिए उपलब्ध नहीं हो, तो ऐसा कार्यवाहक न्यासी या यथास्थिति कोई भी व्यक्ति जिसका लोक न्यास में हित हो अधिकारिता रखने वाले सहायक आयुक्त को आवेदन कर सकेगा कि नवीन कार्यवाहक न्यासी की नियुक्ति के लिए न्यायालय में आवेदन पत्र प्रस्तुत करने की अनुमति दी जाय।
(2)   सहायक आयुक्त ऐसी जांच जिसे वह आवश्यक समझें, करने के बाद तथ यदि कार्यवाहक न्यासी द्वारा स्वयं आवेदन नहीं किया गया हो, उसको सुनवाई का उचित अवसर देने के पश्चात ऐसे कार्यवाहक न्यासी या किसी अन्य न्यास में हित रखने वाले व्यक्ति को निर्देश देगा कि वह नवीन कार्यवाहक न्यासी की नियुक्ति के लिये न्यायालय में आवेदन पत्र प्रस्तुत करें और यदि इस प्रकार निदेशित व्यक्ति ऐसा आवेदन पत्र प्रस्तुत करने में विफल रहे या अन्य किसी कार्यवश सहायक आयुक्त ऐसा करना उचित समझे जो, वह स्वयं आवेदन पत्र प्रस्तुत करेगा।
42.   धारा 41 के अधीन आदेशों के विरुद्ध आयुक्त को आवेदन:-
(1)   यदि सहायक आयुक्त धारा 41 की उप-धारा (1) के अधीन किसी आवेदन पत्र को अस्वीकार कर देता है अथवा उक्त धारा की उप-धारा (2) के अधीन स्वयं न्यायालय को आवेदन पत्र प्रस्तुत करने में विफल रहता है या करने से इन्कार कर देता है तो आयुक्त ऐसी अस्वीकृति, विफलता या इन्कारी से 90 दिन के भीतर उसको प्रस्तुत किए गए आवेदन पत्र पर अथवा ऐसे तथ्यों पर जो अन्यथा उसकी जानकारी में आए तथा कार्यवाहक न्यासी को सुनवाई का उचित अवसर देने के पश्चात सहायक आयुक्त के आदेश को यदि कोई हो, निरस्त कर सकेगा तथा उससे, एक नए कार्यवाहक न्यासी की नियुक्ति हेतु स्वयं न्यायालय में आवेदन की अपेक्षा करेगा।
(2)   उप-धारा (1) के अधीन आयुक्त के आदेषों के अधीन रहते हुये, धारा 41 के अधीन सहायक आयुक्त द्वारा पारित समस्त आदेश अन्तिम होंगे
43. धारा 41 अथवा 42 के अन्तर्गत आवेदन पत्र. प्रस्तुत किये जाने पर न्यायालय की शक्तियां:-
(1)   धारा 41 अथवा 42 के अधीन या उसके अनुसरण में किए गए आवेदन पत्र की प्राप्ति पर न्यायालय ऐसी जांच जिसे वह आवश्यक समझे, करेगा या करवाएगा तथा ऐसे व्यक्ति को जिसे यह योग्य समझे नया कार्यवाहक न्यासी नियुक्त कर सकेगा एवं ऐसी नियुक्ति करते समय न्यायालय निम्नलिखित को ध्यान में रखेगा -
(क) न्यास के कर्ता की इच्छाएं,
(ख) ऐसे व्यक्ति, यदि कोई हो, जो नया न्यासी नियुक्त करने के लिए सशक्त हो, की इच्छाएं,
(ग)   ऐसे प्रश्न कि क्या नियुक्ति से न्यास के निष्पादन कार्य को प्रोत्साहन मिलगा या बाधा पहुंचेगी,
(घ)   जनता या उसके किसी वर्ग, जो न्यास में हित रखता हो, का हित, तथा
(ड)   न्यास की रूढि एवं प्रथा
(2)   उप-धारा (1) के अधीन न्यायालय का आदेश न्यायालय की डिक्री समझी जाएगी तथा उसके विरुद्ध उच्च न्यायालय को अपील की जा सकेगी।
44.   केन्द्रीय अधिनियम संख्या 5 सन् 1908 की धारा 92 एवं 93 का लागू न होना:-
(1)   सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (केन्द्रीय अधिनियम संख्या 5 सन् 1908) में उल्लेखित किसी बात के होते हुये भी उक्त संहिता की धारा 92 तथा 93 के प्रावधान लोक न्यासों पर लागू नहीं होंगे
(2)   यदि किसी लोक न्यास पर इस अधिनियम के लागू होने की तारीख को सक्षम अधिकारिता वाले किसी दीवानी न्यायालय के समक्ष ऐसे न्यास के बारे में कोई विधिक कार्यवाही विचाराधीन हो जिसमें कि एडवोकेट जनरल या उसकी शक्तियों का प्रयोग करते हुए जिलाधीश पक्षकार है तो उन कार्यवाहियों में एडवोकेट जनरल अथवा जिलाधीश यथास्थिति, के स्थान पर देवस्थान आयुक्त प्रतिस्थापित किया हुआ समझा जाएगा तथा ऐसी कार्यवाहियों का निपटाया उक्त न्यायालय द्वारा किया जाएगा।
(3)   किसी विलेख योजना सक्षम अधिकारिता वाले किसी दीवानी न्यायालय का आदेश या डिक्री जो उक्त तारीख से पहले या बाद में बनाई या पारित की गई हो, में एडवोकेट जनरल के प्रति किसी निर्देश का अर्थ देवस्थान आयुक्त लगाया जाएगा।
45.   सहायक आयुक्त द्वारा जांच:- यदि किसी मामले में सहायक आयुक्त द्वारा इस अधिनियम के अन्तर्गत कोई जांच की जानी हो तो वह या तो स्वयं जांच कर सकेगा या मामले को जांच करने तथा रिपोर्ट देने के लिए किसी राजस्व अधिकारी, जो सहायक कलेक्टर के पद से नीचे स्तर का न हो या ऐसे अन्य अधिकारी के पास जिसे राज्य सरकार द्वारा इस प्रयोजनार्थ प्राधिकृत किया जाए, के पास प्रेषित कर सकेगा।
46.   आयुक्त आदि लोक सेवक होना:- इस अधिनियम के अन्तर्गत नियुक्त आयुक्त, सहायक आयुक्त, निरीक्षक तथा अन्य अधीनस्थ अधिकारी एवं कर्मचारी भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (केन्द्रीय अधिनियम संख्या 45 सन् 1860) की धारा 21 के अर्थाधीन लोक सेवक समझे जाएंगें।

अध्याय - 9
लोक न्यासों पर नियंत्रण

47. विवरण पत्र एवं कथन:-
(1)   लोक न्यास का कार्यवाहक न्यासी, सहायक आयुक्त के पास ऐसे विवरण पत्र तथा कथन प्रस्तुत करेगा जो विहित किए जाएं।
(2)   आयुक्त अथवा सहायक आयुक्त किसी लोक न्यास के कार्यवाहक न्यासी या अन्य न्यासी से अथवा उस लोक न्यास से संबंधित किसी व्यक्ति से उप-धारा (1) में विहित सूचना के साथ-साथ कोई भी विवरण पत्र, कथन या रिपोर्ट मांग सकेगा।
48.   प्रवेश तथा निरीक्षण का शक्तियां:- आयुक्त, प्रत्येक सहायक आयुक्त एवं निरीक्षक तथा ऐसे अन्य अधिकारियों तथा व्यक्तियों जो इस निमित्त राज्य सरकार द्वारा प्राधिकृत किए जाएं, को -
(क) एक लोक न्यास की किसी भी सम्पत्ति में प्रवेश तथा उसका निरीक्षण करने अथवा उसमें प्रवेश तथा निरीक्षण करवाने की शक्ति होगी,
(ख) किसी लोक न्यास के न्यासी की किसी कार्यवाही से अथवा उसके आधिपत्य में या नियंत्रणाधीन किसी पुस्तक या लेखे से कोई उद्धरण मंगवाने या उसका निरीक्षण करने की शक्ति होगी; परन्तु लोक न्यास की किसी भी सम्पत्ति में प्रवेश करने वाला अधिकारी, प्रवेश करने की उचित सूचना न्यासी को देगा तथा न्यास के धार्मिक आचारों एवं प्रथाओं का उचित ध्यान रखेगा।
49.   स्पष्टीकरण मांगने की शक्ति:-
(1)   यदि धारा 34 के अधीन अंकेक्षक द्वारा प्रस्तुत की गई अंकेक्षण रिपोर्ट का अवलोकन करने पर अथवा धारा 48 के अधीन किए गए निरीक्षण पर सहायक आयुक्त की यह राय हो, अथवा आयुक्त उसे यह सूचना दे कि आयुक्त की यह राय है, कि लोक न्यास के प्रशासन में सारवान दोष है तो सहायक आयुक्त कार्यवाहक न्यासी को, ऐसी अवधि के भीतर जैसी वह ठीक समझे, स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने का आदेश दे सकेगा।
(2)   यदि अंकेक्षक द्वारा प्रेषित अंकेक्षण रिपोर्ट तथा निरीक्षण के परिणाम, कार्यवाहक न्यासी द्वारा प्रस्तुत किए गए लेखे और स्पष्टीकरण यदि कोई हो, पर विचार करने पर सहायक आयुक्त विहित रीति से जांच करने तथा संबंधित व्यक्तियों को अवसर देने के पश्चात सन्तुष्ट हो जाता है कि न्यासी या कोई अन्य व्यक्ति घोर उपेक्षा या विश्वासघात, दुरूपयोग या दुराचार का दोषी है जिससे लोक न्यास को हानि हुई है तो वह -
(क) लोक न्यास को हुई ऐसी हानि की रकम तय करेगा,
(ख) यह तय करेगा कि क्या ऐसी हानि किसी व्यक्ति के विश्वासघात, दुरूपयोग या दुराचार के कारण हुई है,
(ग)   यह निश्चित करेगा कि क्या न्यासी या कोई अन्य व्यक्ति ऐसी हानि के लिए उत्तरदायी है, तथा
(घ)   वह रकम निश्चित करेगा जो न्यासी या कोई अन्य व्यक्ति ऐसी हानि के लिए लोक न्यास की क्षतिपूर्ति करने हेतु उत्तरदायी है।
(3)   उप-धारा (2) के खण्ड (घ) के अनुसार किसी न्यासी या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा चुकाने हेतु निश्चित की गई रकम (जिसको कि आगे ‘‘अधिभारित राशि’’ कहा गया है) धारा 50 के उपबन्धों के अन्तर्गत न्यायालय के किसी आदेश के अधीन, अधिभारित राशि, न्यासी या उस व्यक्ति द्वारा ऐसी अवधि के भीतर जो सहायक आयुक्त नियत करे, चुकाई जाएगी।
50.   न्यायालय को आवेदन:-
(1)   धारा 49 के अन्तर्गत सहायक आयुक्त के निर्णय से व्यथित कोई भी व्यक्ति, निर्णय की तारीख से 90 दिन के भीतर ऐसे निर्णय को निरस्त कराने के लिए न्यायालय को आवेदन कर सकेगा।
(2)   न्यायालय ऐसी साक्ष्य लेने के पश्चात, जो वह उचित समझे निर्णय को पुष्ट, परिवर्तित अथवा रूपान्तरित कर सकेगा अथवा अधिभार राशि को माफ कर सकेगा तथा परिव्ययों के संबंध में ऐसे आदेश दे सकेगा जिन्हें वह परिस्थितियों के अनुसार उचित समझे।
(3)   आवेदन पत्र का उप-धारा (2) के अन्तर्गत निपटारा होने तक न्यायालय पर्याप्त कारणों के आधार पर प्रतिभूति संबंधी शर्तो सहित अधिभार राशि की वसूली की कार्यवाहियों को ऐसी शर्तो पर, यदि कोई हो, जिन्हें वह उचित समझे, रोक सकेगा।
(4)   उप-धारा (2) के अन्तर्गत न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध इस प्रकार अपील हो सकेगी कि मनो ऐसा निर्णय, ऐसी डिक्री है जिसकी साधारणतः अपील होती है।
51.   न्यासियों के बोर्ड में रिक्ति:-
(1)   जब कोई लोक न्यास न्यासियों के बोर्ड के प्रबंध के अधीन हो तो कार्यवाहक न्यासी बोर्ड कोई में रिक्ति होने पर, ऐसी रिक्ति से 20 दिन के भीतर उसकी सूचना सहायक आयुक्त को देगा तथा वह (कार्यवाहक न्यासी) उस रिक्ति को कितने समय में और किस रीति से भरने का विचार रखता है इसके संबंध में भी सहायक आयुक्त को सूचित करेगा।
(2)   यदि कार्यवाहक न्यासी कोई ऐसी सूचना देने में अथवा स्वयं द्वारा विनिर्दिष्ट समय के भीतर रिक्त स्थान को भरने में विफल रहता है तो सहायक आयुक्त लिखित आदेश देकर रिक्त स्थान को भरेगा और लोक न्यास में हित रखने वाला कोई व्यक्ति जो सहायक आयुक्त के आदेश से व्यथित हो, ऐसे आदेश की तारीख से 30 दिन के भीतर न्यायालय को सहायक आयुक्त के आदेश को निरस्त करने के लिए आवेदन पत्र दे सकेगा।

अध्याय- 10
कतिपय लोक न्यासों के संबंध में विशेष उपबन्ध

52.   अध्याय का लागू होना:-
(1)   इस अध्याय में अन्तर्विष्ट ऐसे प्रत्येक लोक न्यास पर लागू होंगे -
(क) जो राज्य सरकार में निहित हैं, या
(ख) जिसका संधारण राज्य सरकार के खर्चे से होता है, या
(ग)   जिसका प्रबंध सीधे राज्य सरकार द्वारा किया जाता है, या
(ध)   जो कोर्ट आफ वार्ड के अधीक्षण में है अथवा
(ड)   जिसकी सकल वार्षिक आय 10, 000 (दस हजार) रूपये से अधिक है।
(2)   राज्य सरकार, इस अध्याय के प्रारंभ होने के यथाशीघ्र पश्चात, राजपत्र में उन लोक न्यासों की सूची प्रकाशित करेगी, जिन पर यह अध्याय लागू होता है और तत्सदृश्य अधिसूचना द्वारा तथा तत्समान रीति से ऐसी सूची में परिवर्धन या परिवर्तन कर सकेगी।
53. लोक न्यासों का प्रबंध जिन पर यह अध्याय लागू होता है:-
(1)   उस तारीख से जो राज्य सरकार, द्वारा इस प्रयोजनार्थ नियत की जाए, ऐसे लोक न्यास जिस पर यह अध्याय लागू होता है, का प्रबंध इस अधिनियम अथवा किसी विधि के किसी उपबन्ध में, रिवाज अथवा प्रथा में किसी बात के होते हुए भी एक प्रबंध समिति में निहित होगा, जिसका गठन राज्य सरकार द्वारा एतद्पश्चात दी गई रीति से किया जाएगा तथा राज्य सरकार इस धारा के प्रयोजनार्थ भिन्न-भिन्न लोक न्यासों के लिए भिन्न-भिन्न तारीखें नियत कर सकेगी।
(2)   किसी लोक न्यास के सम्बन्ध में उप-धारा (1) के अधीन नियत तारीख पर या उसके पूर्व राज्य सरकार, धारा 54 में उल्लिखित उपबन्धों के अधीन रहते हुए, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा उक्त लोक न्यास के लिए प्रबन्ध समिति का गठन ऐसे नाम से करेगी जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए तथा ऐसी समिति को उक्त लोक न्यास एवं उसके विन्यास का कार्यवाहक न्यासी समझा जाएगा:
        परन्तु एक ही धर्म या धार्मिक विश्वास का प्रतिनिधित्व करने वाले कई लोक न्यासें के न्यासियों एवं उनमें हित रखने वाले व्यक्तियों की संयुक्त प्रार्थना पर राज्य सरकार उन सब न्यासों के लिए एक प्रबन्ध समिति का गठन कर सकेगी, यदि विन्यास एक ही नगर, कस्बे या बस्ती में स्थिति हो।
(3)   उप-धारा (2) के अन्तर्गत गठित प्रत्येक प्रबन्ध समिति शाश्वत उत्तराधिकारी तथा सामान्य मुद्रा रखने वाली एक निगमित निकाय होगी एवं उसे ऐसी शर्तो तथा प्रतिबन्धों के अधीन जो विहित किए जाएं, सम्पत्ति अर्जित करने, धारण करने तथा उसका व्ययन करने की शक्ति होगी एवं उप-धारा(2) के अन्तर्गत अधिसूचना में प्रकाशित नाम से वाद संस्थित कर सकेगी तथा उसी नाम से उसके विरुद्ध वाद संस्थित किया जा सकेगा।
(4)   प्रबन्ध समिति में एक सभापति एवं समसंख्या में अधिक से अधिक दस तथा कम से कम दो, जैसा कि राज्य सरकार निश्चित करे, सदस्य होंगे
(5)   प्रबन्ध समिति के सभापति तथा सदस्यों को राज्य सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वाराः-
(क) एक ही धर्म या धार्मिक विश्वास का प्रतिनिधित्व करने वाले तथा एक समान ध्येय रखने वाले लोक न्यासों के न्यासियों में से, तथा
(ख) ऐस लोक न्यासों या उनके विन्यासों में हित रखने वाले व्यक्तियों अथवा जिस सम्प्रदाय के प्रयोजनार्थ तथा लाभार्थ न्यास की संस्थापना की गई थी, उस समुदाय के व्यक्तियों में से, उक्त प्रकार से हित रखने वाले व्यक्तियों की समान्य इच्छाओं के अनुसार जहां तक ऐसी इच्छाओं का विहित रीति से ठीक-ठीक पता लगाया जा सकता है।, नियुक्ति करेगीः
        परन्तु ऐसे लोक न्यास के सम्बन्ध में जिसका न्यासी आनुवंशिक हो, ऐसा न्यासी, तथा मठ के मामले में उसका अध्यक्ष, प्रबन्ध समिति का सभापति होगा यदि वह अध्यक्ष के रूप में कार्य करने के लिए तैयार है।
54.   समिति के गठन के पूर्व आनुवंशिक न्यासी को सूचना:- जब कभी आनुवंशिक न्यासी वाले लोक न्यास अथवा किसी मठ के लिए धारा 53 के अधीन प्रबन्ध समिति नियुक्त की जाती है तो राज्य सरकार ऐसी समिति का गठन करने से पूर्व उस लोक न्यास के आनुवंशिक न्यासी को अथवा मठ के अध्यक्ष को प्रबन्ध समिति का गठन करने के अपने इरादे की सूचना देगी और ऐसे आनुवंशिक न्यासी या अध्यक्ष द्वारा प्रस्तुत आपत्तियों पर, यदि कोई हों, विचार करेगी तथा उसकी सुनवाई करेगी।
55. सदस्यता विषयक निर्योग्यतायें:- कोई व्यक्ति प्रबध समिति का सदस्य नियुक्त होने अथवा बनने के लिए निर्योग्य होगा यदि वह
(क) 21 वर्ष से कम आयु का है, अथवा
(ख) किसी आपराधिक न्यायालय द्वारा नैतिक पतन युक्त किसी अपराध का दोषी ठहराया गया है, अथवा
(ग)   विकृत मस्तिष्क का है तथा किसी सक्षम न्यायालाय द्वारा वैसा घोषित कर दिया गया है, अथवा
(घ)   अनुन्मुक्त दिवालिया है, या
(ङ)   लोक न्यास के विन्यास सम्बन्धी पट्टे या किसी अन्य लेन देन में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हित रखता है, अथवा
(च) प्रबन्ध समिति का वेतन भोगी सेवक है, अथवा
(छ) दुराचरण का दोषी पाया गया है, या
(ज)   जिस लोक न्यास के लिए प्रबन्ध समिति का गठन किया गया हो वह लोक न्यास जिस धर्म या धार्मिक विश्वास अथवा धार्मिक सम्प्रदाय का प्रतिनिधित्व करता है या उस धर्म या धार्मिक विश्वास अथवा धार्मिक सम्प्रदया का अनुयायी नहीं रहा है, अथवा
(झ)   अन्यथा अयोग्य है।
56.   समिति के कार्यकाल की अवधि:-
(1)   किसी प्रबन्ध समिति के सभापति तथा सदस्यों की पदावधि पांच वर्ष की होगी और वे पुनः नियुक्ति के लिए पात्र होंगे। परन्तु यदि किसी लोक न्यास के लिए गठित प्रबन्ध समिति के सभापति या सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया व्यक्ति उस लोक न्यास का आनुवांशिक न्यासी हो तो वह सभापति या सदस्य, यथास्थिति का पद तब तक वंशानुगत रूप से धारण करेगा जब तक कि उसे राज्य सरकार द्वारा इस अधिनियम के किसी उपबन्ध के अधीन हटाया न जाए।
(2)   प्रबन्ध समिति का सभापति या कोई सदस्य अपने पद से, राज्य सरकार को सम्बोधित एव अपने हस्ताक्षर युक्त लिखित त्यागपत्र दे सकेगाः
        परन्तु ऐसा त्यागपत्र तब तक प्रभावीं नहीं होगा जब तक कि उसे राज्य सरकार द्वारा स्वीकार न कर लिया जाए।
57.   सदस्यों का हटाया जाना:- यदि राज्य सरकार को यह प्रतीत हो कि इस अध्याय के अन्तर्गत गठित किसी प्रबन्ध समिति का सभापति या सदस्य धारा 55 में उल्लेखित किसी निर्योग्यता से ग्रस्त हो गया है तो राज्य सरकार ऐसे सभापति या सदस्य को कारण बताने का अवसर प्रदान करने के पश्चात् तथा इस प्रकार बताए गए किन्हीं कारणों पर विचार करने के पश्चात् उसको अपने पद से हटा सकेगी तथा राज्य सरकार का ऐसा निर्णय अन्तिम होगा।
58.   नए सदस्यों की नियुक्ति:- राज्य सरकार नया सभापति या सदस्य उस दशा में नियुक्त कर सकेगी जब किसी प्रबन्ध समिति का सभापति या सदस्य-
(क) त्याग पत्र दे देता है या मर जाता है, अथवा
(ख) लगातार छः माह की अवधि के लिए आयुक्त की बिना अनुमति के भारत से बाहर रहता है, अथवा
(ग)   विदेश में बसने के लिए भारत छोड़ देता है, अथवा
(घ)   अपना कार्य करने से इन्कार कर देता है, अथवा
(ङ)   धारा 57 के अन्तर्गत राज्य सरकार द्वारा हटा दिया जाता है।
59. प्रबन्ध समिति की बैठकें और प्रक्रिया:-
(1)   प्रबन्ध समिति की बैठकें ऐसी कालान्तरों के पश्चात् होगी और वह अपनी शक्तियों का प्रयोग तथा अपने कर्तव्यों एवं कृत्यों का निर्वहन करते समय ऐसी प्रक्रिया का अनुसरण करेगी जो विहित की जाय, किन्तु दिन प्रतिदिन की कार्यवाहियों तथा सामान्य कार्यो का निपटारा प्रबन्ध समिति द्वारा निर्मित तथा राज्य सरकार द्वारा अनुमोदित विनियमों के अनुसार किया जाएगा।
(2)   प्रबध समिति का कोई कार्य या उसकी कोई कार्यवाही प्रबंध समिति के सदस्यो में से किसी सदस्य का कोई स्थान रिक्त होने या उसके गठन में कोई त्रुटि होने मात्र के कारण अवैध नहीं होगी।
60.   उप-समितियों की नियुक्ति:- प्रबन्ध समिति संकल्प पारित करके ऐसी उप-समितियां नियुक्त कर सकेगी, जैसी वह उचित समझे तथा उसको ऐसी शक्तियां एवं कर्तव्य सौंप सकेगी, जिन्हें वह संकल्प में निर्दिष्ट करे; और कोई उप-समिति सामान्यतः या किन्ही विशेष प्रयोजनों के लिए ऐसी रीति से जो विनियमों द्वारा निश्चित की जाए किसी ऐसे व्यक्ति को अपने साथ सम्बद्ध कर सकेगी जो उसका सदस्य न हो लेकिन वह (उप-समिति) उसकी सहायता या सलाह लेना चाहती है तथा उपर्युक्त प्रकार से सम्बद्ध व्यक्ति को उक्त प्रयोजन से संगत उप समिति के विचार विमर्श में भाग लेने का अधिकार होगा किन्तु उसे उसकी बैठक में मत देने का अधिकार नहीं होगा।
61. प्रबन्ध समिति के कर्तव्य:-
(1)   आयुक्त के सामान्य तथा विशेष आदेशों के अधीन रहते हुए प्रबन्ध समिति का यह कर्तव्य होगा कि वह लोक न्यास या न्यासों जिसके या जिनके लिए उसका गठन किया गया है, के कार्य-कलापों का प्रबन्ध तथा व्यवस्था करे तथा इस अधिनियम द्वारा या इस अधिनियम में अधीन अथवा उक्त लोक न्यास से सम्बन्धित तत्समय प्रभावशील किसी न्यास विलेख के अधीन उसे प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए तथा सौंपे गए कर्तव्यों एवं कृत्यों का निर्वहन इस प्रकार करे कि यह सुनिश्चित हो जाय कि उक्त न्यास के विन्यास या उसकी अन्य सम्पत्ति का संधारण, नियन्त्रण तथा व्यवस्था उचित रूप से की जाती है एवं उसकी आय उन उद्देश्यों तथा प्रयोजनों के लिए सम्यक् रूपेण प्रयुक्त की जाती है जिनके लिए न्यास बनाया गया था या जिसके लिए उसका प्रशासित होना आशयित है।
(2)   विशेष रूप से तथा पूर्वगामी उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना प्रबन्ध समिति-
(क) ऐसा अभिलेख, जिसमें न्यास के उद्भव, आय तथा उद्देश्य से सम्बन्धित सूचना जहां तक वह एकत्र की जा सके, लिखी हो, उचित प्रकार से रखेगी,
(ख) न्यास की आय तथा व्यय का अनुमान लगाकर बजट तैयार करेगी,
(ग)   प्रत्येक लोक न्यास जिसके लिए उसका गठन किया गया है, का अलग-अलग लेखा रखेगी,
(घ)   यह सुनिश्चित करेगी कि ऐसे लोक न्यास की आय तथा सम्पत्ति का उपयोग उन उश्यों तथा प्रयोजनों के लिए किया जाता है जिसके लिए उस न्यास का सृजन किया गया था अथवा प्रशास्ति होना आशयित है,
(ङ)   ऐसे लोक न्यास अथवा न्यासों के समस्त कार्य-कलापों की देखरेख, नियन्त्रण तथा प्रबन्ध करेगी तथा उनका संधारण करेगी,
(च) उस न्यास की सम्पत्तियों का निरीक्षण करेगी अथवा निरीक्षण करवाएगी,
(छ) ऐसे लोक न्यास अथवा न्यासों से संबंधित वादों तथा कार्यवाहियों को न्यायालय में संस्थित करेगी तथा उनका प्रतिवाद करेगी,
(ज)   ऐसे लोक न्यास अथवा न्यासों की लुप्त सम्पत्तियों की पुनः प्राप्ति हेतु उपाय करेगी,
(झ)   ऐसे विवरण, आंकड़े, लेखे तथा उनके संबंध में अन्य सूचना भेजेगी, जो राज्य सरकार समय-समय पर अपेक्षा करे, तथा
(´) उक्त लोक न्यास अथवा न्यासों के निर्माण में अथवा उससे संबंन्धित विन्यासों के निर्माण में अन्तर्विष्ट उद्देश्यों एवं प्रयोजनों का यथोचित ध्यान रखते हुए तथा जिस व्यक्ति या जिन व्यक्तियों ने उक्त लोक न्यास अथवा न्यासों का स्थापन अथवा सृजन किया उनकी इच्छाओं का भी सम्यक् ध्यान रखते हुए सामान्यतः ऐसे समस्त कार्य करेगी जो उक्त लोक न्यास अथवा न्यासों के उचित नियन्त्रण, संधारण तथा व्यवस्था के लिए आवश्यक हों अथवा उसके/उनके स्थायित्व एवं समृद्वि के लिए सहायक समझे जायें।
स्पष्टीकरण:- किसी लोक न्यास के संधारण में निम्नलिखित कार्य सम्मिलित होंगे-
(i)    जिस धर्म या धार्मिक विश्वास का वह लोक न्यास प्रतिनिधित्व करता है उसके सिद्धान्तों के अनुसार एवं उसकी स्थापना में अथवा उससे संबंन्धित विन्यासों के सृजन में अन्तर्निहित उद्देश्यों एवं प्रयोजनों का यथोचित ध्यान रखते हुए तथा जिस व्यक्ति अथवा जिन व्यक्तियों ने उक्त न्यास की नींव डाली या उसके संबंध में विन्यासों का सृजन किया, उनकी इच्छाओं का भी जहां तक वे मालूम हो सकें सम्यक् ध्यान रखते हुए संचालन किया जाना,
(ii)   ऐसे लोक न्यास की सम्पत्तियों तथा उसके विन्यासों की दैनिक व्यवस्था,
(iii)          ऐसे लोक न्यास के नाम दातव्यों तथा ऋणों, यदि कोई हों, का भुगतान,
(iv) धारा 65 की उप-धारा (2) के अधीन निश्चित किए गए भत्तों का भुगतान।
62.   समिति के कर्तव्यों का पालन कराने की तथा उससे सम्बन्धित व्यय का समिति के कोष में से भुगतान कराने का निर्देश देने की आयुक्त की शक्ति:- आयुक्त राज्य सरकार की पूर्व अनुमति से किसी ऐसे कर्तव्य का पालन कराने की व्यवस्था कर सकेगा जिसका पालन करने के लिए प्रबन्ध समिति इस अधिनियम के उपबन्धों अथवा तद्धीन बनाये गये नियमों या दिए गए आदेशों के अधीन बाध्य है तथा आयुक्त यह निदेश दे सकेगा कि ऐसे कर्तव्यों के पालन सम्बन्धी व्यय का भुगतान उस व्यक्ति द्वारा जिसकी अभिरक्षा में उस समय ऐसे लोक न्यास या न्यासों की कोई निधि हो, जिसके/जिनके लिए समिति का गठन किया गया है, उक्त निधि में से किया जाएगा।
63. समिति का अधिक्रमण करने की शक्ति:-
(1)   यदि राज्य सरकार की यह राय हो कि प्रबन्ध समिति, इस अधिनियम अथवा तत्समय प्रभावशील किसी अन्य विधि द्वारा अन्तर्गत उस पर अधिरोपित कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ है या निरन्तर त्रुटि करती रही है अथवा उसने अपने शक्तियों का सीमातिरेक उपयोग या दुरूपयोग किया है तो राज्य सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा समिति को ऐसी अवधि के लिए अधिक्रमित कर सकेगी जिसका उल्लेख अधिसूचना में किया जाए:
        परन्तु इस उप-धारा के अधीन अधिसूचना जारी करने के पूर्व राज्य सरकार प्रबन्ध समिति को कारण बताने का यथोचित अवसर देगी कि उसे अधिक्रमित क्यों न कर दिया जाए तथा ऐसी समिति द्वारा प्रस्तुत स्पष्टीकरणों एवं आपत्तियों पर, यदि कोई हों, विचार करेगी।
(2)   प्रबन्ध समिति को अधिक्रमित करते हुए उप-धारा (1) के अधीन अधिसूचना के प्रकाशित होने पर ऐसी समिति का सभापति तथा उसके समस्त सदस्य, अधिक्रमण की तारीख से अपने पद रिक्त कर देंगे एवं इस अधिनियम या तत्समय प्रभावशील किसी अन्य विधि के उपबन्धों द्वारा या उपबन्धों के अधीन, प्रबंध समिति द्वारा या प्रबंध समिति की ओर से जिन समस्त शक्तियों का प्रयोग तथा समस्त कर्तव्यों का पालन किया जाना हो, उनका प्रयोग अधिक्रमण की अवधि में, ऐसे व्यक्तियों द्वारा किया जाएगा जिसके/जिनके लिए राज्य सरकार धारा 55 के उपबन्धों को ध्यान में रखते हुए निर्देश दे।
(3)   अधिक्रमण की अवधि जो उप-धारा (1) के अन्तर्गत आदेश में विनिर्दिष्ट हो, राज्य सरकार द्वारा राजपत्र में अधिसूचना जारी करके समय समय पर बढ़ाई जा सकेगी।
(4)   उप-धारा (1) में विनिर्दिष्ट या उप-धारा(3) के अधीन बढाई गई अधिक्रमण की अवधि की गणना करने में, याचिका या कार्यवाही जिसके द्वारा अधिक्रमण आदेश की वैधता को किसी न्यायालय में चुनौती दी जाय, के अभियोजन तथा निपटारे में व्यतीत अवधि सम्मिलित नहीं की जायेगी।
(5)   अधिक्रमण अवधि या बढ़ाई गई अधिक्रमण अवधि समाप्त होने पर या उसके पूर्व राज्य सरकार धारा 53 में प्रवाहित रीति से समिति का पूर्नगठन करेगी।
64. विनियम बनाने की शक्ति:-
(1)   प्रबन्ध समिति, राज्य सरकार की अनुमति से इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों के पालनार्थ ऐसे विनियम बना सकेगी, जो इस अधिनियम या तद्धीन बनाये गये नियमों से अंसगत न हो।
(2)   पूर्ववर्ती उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, विशेष रूप से ऐसे विनियमों में निम्नलिखित समस्त या उनमें से किन्हीं विषयों के लिए उपबन्ध किये जा सकेगें-
(i)    दैनिक कार्यवाहियों तथा सामान्य कामकाज का निपटारा,
(ii)   प्रबन्ध समिति के कत्र्तव्यों तथा कार्यों के पालनार्थ आवश्यक अधिकारियों तथा कर्मचारियों का नियोजन,
(iii)   उनके नियोजन सम्बन्धी अनुबन्ध तथा शर्ते, तथा
(iv)  वह रीति जिससे किसी व्यक्ति को जो कि समिति का सदस्य नहीं है, धारा 60 के अधीन गठित किसी उपसमिति से सम्बद्ध किया जा सकेगा।
65. आनुवंशिक न्यासियों के अधिकार:-
(1)   इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट कोई बात ऐसे लोक न्यास जिस पर यह अध्याय लागू होता है, के आनुवंशिक न्यासी, यदि कोई हो, के अधिकारों पर निम्नलिखित के बारे में कोई प्रभाव नहीं डालेगी-
(क) ऐसे लोक न्यास की किसी इमारत में रहना, या
(ख) ऐसे लोक न्यास के प्रयोजनार्थ उक्त किसी इमारत का उपयोग करना, अथवा
(ग)   उसको व्यक्तिगत रूप से समर्पित भेंट, नजर तथा धर्मदान लेना, अथवा
(घ)   लोक न्यास की आय में से उप-धारा (2) के अधीन नियत भत्ता लेना, अथवा
(ङ)   ऐसे लोक न्यास की सेवा या पूजा अथवा उसमें किसी संस्कार के अनुष्ठान अथवा तत्संबंधी किसी समारोह, जो उक्त लोक न्यास के रिवाज या प्रथा के अनुसार हो, में भाग लेना।
(2)   राज्य सरकार ऐसे लोक न्यास जिस पर यह अध्याय लागू होता है, के आनुवंशिक न्यासी की उक्त लोक न्यास की आय में से देय भत्तें की रकम, ऐसे न्यासी की प्रतिष्ठा, लोक न्यास की सकल आय तथा विहित विवरणों पर विचार करने के पश्चात निश्चित तथा नियत करेगी।

अध्याय 11
धर्मादा

66. धर्मादा:-
(1)   यदि किसी व्यवसाय या व्यापार की रूढ़ी या प्रथा के अनुसार या किसी सौदे के सम्बन्ध में पक्षों में हुए करार के अनुसार उक्त सौदे से सम्बन्धित किसी पक्ष से कोई भी राशि वसूल की जाती है या किसी पुण्यार्थ या धार्मिक प्रयोजन हेतु प्रयुक्त किए जाने के अभिप्राय से किसी भी नाम से एकत्रित की जाती है तो इस प्रकार वसूल की गई या एकत्रित की गई राशि (जिसे इस अधिनियम में ‘‘धर्मादा’’ कहा गया है), उसे वसूल या एकत्रित करनेवाले व्यक्ति में न्यासी के रूप में निहित होगीं।
(2)   उक्त रीति से वसूल या एकत्रित की गई राशि, सम्बन्धित व्यवसाय या व्यापार से सम्बद्ध व्यक्तियों द्वारा विहित रीति से निर्वाचित सदस्यों से गठित समिति द्वारा निदेशित रीति से उपयोग में लाई जाएगी।
(3)   धर्मादा वसूल या एकत्रित करने वाला प्रत्येक व्यक्ति उस वर्ष, जिसके लिए उसके लेखे सामान्यतः रखे जाते है, की समापित से उस अवधि के भीतर जो विहित की जाय, उसके द्वारा ऐसे वर्ष के दौरान वसूल या एकत्रित किए गए धर्मादे का लेखा ऐसे प्रपत्र में जो विहित किया जाए, अधिकारिता रखने वाले सहायक आयुक्त के पास या उप-धारा (2) में विनिर्दिष्ट समिति के पास, जैसा कि राज्य सरकार सामान्य या विशेष आदेश करें, प्रेषित करेगा।
(4)   उप-धारा (2) में विनिर्दिष्ट समिति द्वारा इस निमित्त किए गए निवेदन पर सहायक आयुक्त को उप-धारा (3) के अधीन उसको या उक्त समिति को भेजे गए लेख की शुद्वता का सत्यापन करने के लिए ऐसी जांच जिसे वह उपयुक्त समझे करने की शक्ति होगी।
(5)   अध्याय 5 के उपबन्ध धर्मादा पर लागू नहीं होंगे। कार्यप्रणाली तथा शास्तियां
67.   जांच अधिकारियों को सिविल न्यायालय की शक्तियां:- इस अधिनियम के अन्तर्गत जांच करते समय आयुक्त अथवा सहायक आयुक्त को वैसी ही शक्तियां होंगी जो किसी वाद के विचारण में निम्नांकित मामलों में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (केन्द्रीय अधिनियम 5 सन् 1908) के अन्तर्गत सिविल न्यायालयों में निहित होती हैः-
(क) शपथ पत्रों द्वारा तथ्यों का साक्ष्य ;
(ख) किसी व्यक्ति को सम्मन द्वारा बुलाना तथा उसे उपस्थ्ति होने के लिए बाध्य करना एवं शपथ पर उसका परीक्षण करनाः
(ग)   दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए बाध्य करना ; और
(घ)   कमीशन जारी करना।
68.   जांच न्यायिक कार्यवाही होना:- इस अधिनियम के अन्तर्गत समस्त जांच भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (केन्द्रीय अधिनियम संख्या 45 सन 1860) की धारा 193, 219 तथा 228 के अर्थो में न्यायिक कार्यवाहियां समझी जाएंगी।
69.   न्यायालयों के सम्मुख होने वाली कार्यवाहियों में सिविल प्रक्रिया संहिता का लागू होना:- सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (केन्द्रीय अधिनियम संख्या 5 सन् 1908) के उपबन्ध जंहा तक कि वे इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट किसी भी बात से असंगत हो, को छोड़कर, इस अधिनियम के अन्तर्गत न्यायालय के सम्मुख वाली समस्त कार्यवाहियों पर लागू होंगे।
70.   शास्तियां:-
(1)   जो कोई धारा 17 की उप-धारा(1) या धारा 23 की उप-धारा (1) या धारा 27 या धारा 30 या धारा 66 की उप-धारा (2) तथा (3) के किसी भी उपबंध का उल्लंघन करेगा वह ऐसे जुर्माने से दण्डित किया जाएगा, जो पांच सौ रूपये तक हो सकेगा।
(2)   जो कोई इस अधिनियम अथवा इसके अन्तर्गत निर्मित नियमों के उपबन्धों में से किसी भी ऐसे उपबन्ध का उल्लंघन करता है, जिसके उल्लंघन हेतु किसी विशिष्ट शास्ति का उपबन्ध नहीं किया गया हो, तो वह ऐसे जुर्माने से दण्डित किया जाएगा, जो एक सौ रूपये तक हो सकेगा।

अध्याय 13
प्रकीर्ण

71.   धनराशि की वसूली:- धारा 49 या धारा 50 के अधीन अथवा इस अधिनियम के अन्तर्गत बनाये गये किसी नियम के अधीन देय समस्त धनराशि, जो चुकाई नहीं गई है, किसी विधि में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए तथा ऐसी किसी अन्य कार्रवाई पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना जो इस अधिनियम या किसी अन्य विधि के अंतर्गत की जा सकती है, भू-राजस्व की बकाया की तरह वसूल की जा सकेगी।
72.   कार्यवाहियां, जिनमें लोक प्रयोजन को प्रभावित करने वाला प्रश्न निहित है:-
(1)   किसी भी ऐसे वाद या विधिक कार्यवाही में, जिसमें न्यायालय को यह प्रतीत हो कि उसमें लोक, धार्मिक अथवा पुण्यार्थ प्रयोजन को प्रभावित करने वाला कोई प्रश्न निहित है, न्यायालय ऐसे प्रश्न का विनिश्चय करने के लिए तब तक कार्यवाही नहीं करेगी जब तक कि आयुक्त को सूचना नहीं दे दी जाये।
(2)   यदि ऐसी सूचना की प्राप्ति पर या अन्यथा आयुक्त उक्त विषय में आवेदन करे तो उसको ऐसे वाद या कार्यवाही के किसी भी चरण में पक्षकार के रूप में सम्मिलित कर लिया जायेगा।
73.   अधिकारिता का वर्जन:- इस अधिनियम में अभिव्यक्त रूप से जहां उपबन्धित है, उसके सिवाय, किसी सिविल न्यायालय को ऐसे किसी प्रश्न का निर्णय करने या उससे सम्बन्धित कार्यवाही करने की अधिकारिता प्राप्त नहीं होगी, जिस पर इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन, इस अधिनियम के अन्तर्गत किसी अधिकारी या प्राधिकारी द्वारा निर्णय किया जाना या कार्यवाही की जानी हो अथवा जिसके सम्बन्ध में ऐसे अधिकारी या प्राधिकारी का निर्णय या आदेश अन्तिम तथा निश्चायक बना दिया गया है।
74.   वादों तथा कार्यवाहियों से विमुक्ति:- इस अधिनियम के अन्तर्गत सद्भावना से की गई या वैसे अभिप्रेत किसी भी बात के संबंध में कोई दावा, अभियोग या अन्य कार्यवाही राज्य सरकार या किसी अधिकारी या प्राधिकारी के विरुद्ध संस्थित नहीं की जाएगी।
75.   अधिनियम के अन्तर्गत अपराध पर विचारण:-
(1)   कोई भी न्यायालाय जो प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट से नीचे दर्जे का हो, इस अधिनियम के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध का विचारण नहीं करेगा।
(2)   इस अधिनियम के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध के लिए कोई भी अभियोजन सहायक आयुक्त की पूर्व अनुमति के बिना नहीं चलाया जायेगा।
76.   नियम:-
(1)   राज्य सरकार, इस अधिनियम के उपबन्धों को क्रियान्वित करने के आशय से नियम बना सकेगी।
(2)   विशेष रूप से पूर्वगामी उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नांकित समस्त या किन्हीं भी विषयों के लिए हो सकते है, अर्थात्-
(क) धारा 16 की उप-धारा (2) के अन्तर्गत सहायक आयुक्त द्वारा रखे जाने वाले लोक न्यास के रजिस्टर का प्रपत्र और उसके द्वारा रखे जाने वाले रजिस्टर एवं पुस्तकें तथा उनके प्रपत्र;
(ख) धारा 17 की उप-धारा (3) के अन्तर्गत दिया जाने वाला शुल्क और उप-धारा (4) के अन्तर्गत आवेदन का प्रपत्र तथा उसके विवरण;
(ग)   धारा 18 की उप-धारा (1) के अन्तर्गत जांच करने की रीति तथा उप-धारा (2) के अन्तर्गत सार्वजनिक नोटिस देने की रीति;
(घ)   धारा 23 की उप-धारा (1) के अन्तर्गत की जाने वाली रिपोर्टो का प्रपत्र तथा रीति;
(ङ)   धारा 25 के प्रविष्टियों के विवरण दर्ज करने के लिए पुस्तक का प्रपत्र;
(च) धारा 32 के अन्तर्गत रखे जाने वाले लेखों का प्रपत्र तथा उनमें दर्ज किये जाने वाले विवरण,
(छ) धारा 33 की उप-धारा (2) के अन्तर्गत लेखों के अंकेक्षण की रीति और उप-धारा (4) के अन्तर्गत विशेष अंकेक्षण के लिए शुल्क;
(ज)   धारा 35 के अन्तर्गत आय व्ययक (बजट) का प्रपत्र और सहायक आयुक्त को उसे प्रस्तुत किये जाने की तारीख;
(झ)   धारा 36 के अन्तर्गत निरीक्षण के लिए शुल्क;
(´) धारा 36 के अन्तर्गत प्रमाणीकृत प्रतियां देने की शर्ते और शुल्क;
(ट)   धारा 47 के अन्तर्गत कार्यवाहक न्यासी या प्रबन्धक द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले ब्यौर तथा विवरण;
(ठ)   धारा 49 की उपधारा (2) के अन्तर्गत जांच करने की रीति;
(ड)   इस अधिनियम के किसी भी उपबन्ध के अन्तर्गत प्रस्तुत की जाने वाली अपीलों का प्रपत्र तथा उनका शुल्क; और
(ढ़)   कोई अन्य विषय जो इस अधिनियम के अन्तर्गत विहित किया जाना है या किया जा सकता है।
(3)   इस धारा के अन्तर्गत नियम बनाने में, राज्य सरकार निर्देश दे सकेगी कि उसके किसी भी उपबन्ध को भंग करने पर ऐसा जुर्माना लिया जा सकता है जो दौ सौ रूपये तक का हो।
(4)   इस धारा के अन्तर्गत बनाये गये समस्त नियम, पूर्व प्रकाशन की शर्तो के अधीन होंगे।
77. विमुक्ति:-
(1)   इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट कोई बात, राज्य सरकार के नियन्त्रण के अन्तर्गत काम करने वाले किसी अभिकरण द्वारा या किसी स्थानीय प्राधिकरण द्वारा प्रशासित लोक न्यास पर लागू नहीं होंगी ।
(2)   राज्य सरकार किसी लोक न्यास को या लोक न्यासों के किसी वर्ग को इस अधिनियम के समस्त या किन्हीं उपबंधों से ऐसी किन्हीं शर्तो के अधीन, यदि कोई हो, जो राज्य सरकार लगाना उचित समझे, अधिसूचना द्वारा छूट दे सकती है और उक्त अधिसूचना में ऐसे छूट देने के कारण बतलाये जायेंगे।
78.   राजस्थान अधिनियम संख्या 13 सन् 1959 प्रभावित नहीं:- इस अधिनियम की कोई बात नाथद्वारा मंदिर अधिनियम, 1959 (राजस्थान अधिनियम संख्या 13 सन् 1959) के उपबन्धों को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं करेगी या उन पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगी।
79.   कठिनाइयां दूर करने की शक्ति:- इस अधिनियम के उपबन्धों को कार्यान्वित करने में यदि कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो राज्य सरकार यथा अवसर अपेक्षित आदेश द्वारा ऐसे निर्देश दे सकेगी जो, उक्त उपबन्धों से असंगत न होते हुए, कठिनाई को दूर करने के प्रयोजनार्थ आवश्यक प्रतीत हों।
80.   अधिनियम मुस्लिम वक्फों पर लागू न होना:- इस अधिनियम की कोई बात, मुस्लिम वक्फ एक्ट, 1954 (केन्द्रीय एक्ट संख्या 29 सन् 1954) द्वारा शासित एवं विनियमित मुस्लिम वक्फों पर लागू नहीं होगी।
81.   निरसन:- इस अधिनियम के अध्याय 5, 6, 7, 8, 9 तथा 10 के उपबन्ध लोक न्यासों के किसी वर्ग पर लागू होने की प्रारम्भ की तारीख से (जिसे एतद्पश्चात् उक्त तारीख कहा गया है) अनुसूची में विनिर्दिष्ट विधियों में से किसी भी विधि के उपबन्ध जो ऐसे उक्त वर्ग के किसी लोक न्यास पर लागू होते, उस पर लागू होना बन्द हो जाएंगे:
परन्तु इस प्रकार लागू होना बन्द होने।से निम्नलिखित पर किसी रूप में कोई प्रभाव नहीं पडेगा-
(क) कोई अधिकार, स्वत्व, हित, बाध्यता या दायित्व जो उक्त तारिख से पूर्व ही अर्जित, प्रोद्भूत अथवा उपगत हो चुका है,
(ख) ऐसे अधिकार, स्वत्व, हितबाध्यता या दायित्व के संबंध में कोई भी कानूनी कार्यवाही अथवा उपचार; अथवा
(ग)   जो कुछ उक्त तारीख से पूर्व यथाविधि किया गया अथवा सहन किया गया हैं।
82.   1952 के राजस्थान अधिनियम 6 का संशोधन:- किसी लोक न्यास के लिए धारा 53 के अन्तर्गत प्रबन्ध समिति का गठन जिस तारीख को किया जाता है उस तारीख से राजस्थान भूमि सुधार तथा जागीर पुनर्ग्रहण अधिनियम, 1952 की दूसरी अनुसूची का खण्ड (7) (राजस्थान अधिनियम संख्या 6 सन् 1952) उक्त लोक न्यास के सम्बन्ध में इस प्रकार प्रभावी होगा जैसे कि मानों शब्द ‘‘उस व्यक्ति को जो उस समय या एतद्पश्चात् विधि के अनुसार तत्समय ऐसी संस्था या पूजा के स्थान के संधारण या ऐसी सेवा के निर्वहन के कर्तव्य से प्रभारित स्वीकार किया जाता है’’ के स्थान पर शब्द ‘‘उस प्रबंध समिति को देगी जो उसके लिए राजस्थान लोक न्यास अधिनियम, 1959 की धारा 53 के अन्तर्गत गठित की जाय’’ प्रतिस्थापित हुए थे।

अनुसूची
(देखिये धारा 81)

(1)   पुण्यार्थ एवं धार्मिक न्यास अधिनियम, 1920 (केन्द्रीय अधिनियम 14 सन् 1920)।
(2)   बीकानेर पुण्यार्थ विन्यास अधिनियम, 1929।
(3)   जयपुर धार्मिक विन्यास अधिनियम, 1946।
(4)   उन क्षेत्रों या उनके किसी भाग में इस अधिनियम के लागू होने के समय धार्मिक एवं पुण्यार्थ विन्यासों के सम्बन्ध में प्रवर्तित कोई अन्य विधि, आज्ञा अथवा परिपत्र।
(5)   उपरोक्त मद (1) से (4) में उल्लिखित विधियों में से किसी भी विधि का संशोधन करने वाली कोई विधियां, आज्ञाएं या परिपत्र।

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