Devasthan Department, Rajasthan

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श्री सांवलियाजी मन्दिर अधिनियम, 1992 (36)

(प्रथम बार राजस्थान राज-पत्र, विशेषांक, भाग 4(क), दिनांक 1-4-1992 में प्रकाशित हुआ।)
विधि (विधायी प्रारूपण) विभाग
(ग्रुप-2)
अधिसूचना
जयपुर, अप्रेल 1, 1992

संख्या प.2 (2) विधि-2192 - राजस्थान राज्य विधान मण्डल का निम्नांकित अधिनियम, जिसे राष्ट्रपति महोदय की अनुमति दिनांक 26 मार्च, 1992 को प्राप्त हुई, एतद्द्वारा सर्वसाधारण की सूचनार्थ प्रकाशित किया जाता है -

श्री सांवलियाजी मन्दिर अधिनियम, 1992
(1992 का अधिनियम संख्या 8)
(राष्ट्रपति महोदय की अनुमति दिनांक 26 मार्च, 1992 को प्राप्त हुई।)

चित्तौड़गढ़ जिले में मण्डफिया स्थित श्री सांवलियाजी मन्दिर का, उसके विन्यासों के साथ-साथ जिनमें उनसे सम्बद्ध या संलग्न भूमियां और भवन सम्मिलित है, बहतर प्रबन्ध, प्रशासन और शासन किये जाने का उपबन्ध करने के लिए अधिनियम।
भारत गणराज्य के तैतालीसवें वर्ष में राजस्थान राज्य विधान मण्डल निम्नलिखित अधिनियम बनाता है:-
1. संक्षिप्त नाम, प्रसार और प्रारम्भ:-
(1) इस अधिनियम का नाम श्री सांवलियाजी मन्दिर अधिनियम, 1992 है।
(2) इसका प्रसार सम्पूर्ण राजस्थान राज्य में होगा।
(3) यह 2 दिसम्बर, 1991 को प्रवृत्त हुआ समझा जावेगा।

2. अधिनियम का अन्य विधियों पर अध्यारोही होना:- यह अधिनियम किसी भी विधि में या प्रबन्ध की किसी भी स्कीम, डिक्री, रूढ़ि, प्रथा या लिखत में अन्तर्विष्ट किसी प्रतिकूल बात के होने पर भी प्रभावी होगा।

3. परिभाषायें :- जब तक संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, इस अधिनियम में -
(क) ‘‘बोर्ड’’ से इस अधिनियम के अधीन गठित श्री सांवलियाजी मन्दिर बोर्ड अभिप्रेत है;
(ख) ‘‘विन्यास’’ से मंदिर की या उसके रख-रखाव, सुधार, परिवर्धन या सहायता के लिए या उसमें उपासना करने के लिए या उससे संबंधित किसी भी सेवा या खैरात के लिए या मंदिर में आने वाले तीर्थयात्रियों के फायदे, सुविधा या सुख के लिए किसी भी नाम से मंदिर को दी गयी या सौंपी गयी सारी जंगम या स्थावर सम्पत्ति अभिप्रेत हैं और उसके अन्तर्गत निम्नलिखित है -

  1. मंदिर में प्रतिष्ठापित मूर्तियां;
  2. मंदिर के परिसर;
  3. वे समस्त भूमियां और अन्य जंगम या स्थावर सम्पत्तियां, चाहे वे कहीं भी स्थित हो, तथा किसी भी स्त्रोत से प्राप्त किसी के भी नाम में होने वाली सम्पूर्ण आय जो मंदिर को समर्पित की गयी हो अथवा किन्हीं धार्मिक, पवित्र या खैराती प्रयोजनों के लिए बोर्ड के अधीन रखी गयी हो, या विन्यासों से अथवा ऐसे विन्यासों की आय से खरीदी गयी हो और मंदिर के लिए किये गये तथा मंदिर की ओर से प्राप्त चढ़ावे तथा भेंटें;
  4. श्री सांवलियाजी न्यास के न्यासी बोर्ड के द्वारा धारित जंगम अथवा स्थावर सम्पत्तियां, जिनमें न्यासी बोर्ड के द्वारा गठित और प्रबंधित निधियां भी सम्मिलित हैं;

(ग) ‘‘मुख्य कार्यपालक अधिकारी’’ से इस अधिनियम के अधीन नियुक्त मंदिर का मुख्य कार्यपालक अधिकारी अभिप्रेत है;
(घ) ‘‘विहित’’ से इस अधिनियम के अधीन बनाये गये नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
(ङ) ‘‘मंदिर’’ से चित्तौड़गढ़ जिले के मण्डफिया स्थित श्री सांवलियाजी का मंदिर अभिप्रेत है;
(च) ‘‘श्री सांवलियाजी न्यास’’ से देवस्थान विभाग द्वारा 19-8-1986 को राजस्थान लोक न्यास अधिनियम, 1959 के अधीन रजिस्ट्रीकृत न्यास विलेख के अधीन इस नाम से जाना जाने वाला न्यास अभिप्रेत है;
(छ) ‘‘मंदिर निधि’’ से विन्यास अभिप्रेत है और उनमें ऐसी समस्त राशियां, चढ़ावे, भेंटे और पूजा-स्थल के फायदे के लिए किया गया कोई भी अन्य दान या अभिदाय सम्मिलित है तथा समस्त ऐसे विन्यास भी सम्मिलित है जो पूजा-स्थल, उसकी सेवा-पूजा के फायदे के लिए श्री सांवलियाजी न्यास के विलेख में उल्लिखित प्रयोजनों के अधीनस्थ प्रयोजनों के लिए किये गये हैं या किये जायें;
(ज) ‘‘सेवा-पूजा’’ से ऐसी सभी प्रकार की सेवा, उपासना, धार्मिक कृत्य और धार्मिक पूजा जो मंदिर में परम्परानुसार की जाती है, अभिप्रेत है।

4. सम्पत्ति का निहित होना:- मंदिर का, और समस्त चढ़ावों को जो कि चढ़ाये गये हैं या इसके पश्चात् चढ़ाये जायें, सम्मिलित करते हुए उसके समस्त विन्यासों का तथा मंदिर निधि का स्वामित्व मंदिर के देवता में निहित होगा।
5. प्रशासन का बोर्ड में निहित होना:-
(1) मंदिर का, और उसके समस्त चढ़ावो को जो कि चढ़ाये गये हैं या इसके पश्चात् चढ़ाये जायें, सम्मिलित करते हुए उसके समस्त विन्यासों का प्रशासन, प्रबन्ध और शासन अधिनियम के अधीन गठित बोर्ड में निहित होगा।
(2) बोर्ड श्री सांवलियाजी मन्दिर बोर्ड के नाम से शाश्वत उत्तराधिकार वाला और सामान्य मुद्रा वाला एक निगमित निकाय होगा और उसे जंगम और स्थावर दोनों प्रकार की सम्पत्ति अर्जित और धारित करने की शक्ति होगी तथा वह उक्त नाम से वाद ला सकेगा अथवा उस पर वाद लाया जा सकेगा।

6. बोर्ड की संरचना:-
(1) बोर्ड में अध्यक्ष, चित्तौड़गढ़ जिले का कलक्टर, देवस्थान आयुक्त, मुख्य कार्यपालक अधिकारी और सात अन्य सदस्य होंगे।
(2) राज्य सरकार निम्नलिखित आठ सदस्यों को नामनिर्देशित करेगी -

  1. ऐसे तीन व्यक्ति, जो हिन्दू धर्म या संस्कृति की, विशेष रूप से वैष्णव सम्प्रदायान्तर्गत, सेवा करने में विशिष्ट रहे हों;
  2. ऐसे तीन व्यक्ति, जो प्रशासन, विधिक मामलों और शासकीय मामलों में विशिष्ट रहे हों;
  3. राजस्थान राज्य के दो अग्रगण्य हिन्दू; और
  4. बोर्ड का नामनिर्देशन करते समय, जहां तक साध्य हो, न्यास विलेख में अभिलिखित, मंदिर के आसपास के मण्डफिया सहित सोलह गांवों के प्रतिनिधित्व की स्थापित परम्परा का निर्वाह किया जायगा और अध्यक्ष सहित कम से कम तीन सदस्य, अनुसूची में उल्लिखित गांवों के निवासियों में से होंगें।

राज्य सरकार इस प्रकार से नामनिर्दिष्ट सदस्यों में से एक को बोर्ड का अध्यक्ष नामनिर्देशित करेगी।

(3) कोई व्यक्ति बोर्ड के अध्यक्ष या सदस्य के रूप में नामनिर्देशन के लिए पात्र तब नहीं होगा यदि -

  1. वह विकृत चित्त का हो और किसी सक्षम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित किया जा चुका हो, या
  2. वह किसी ऐसे अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया गया हो जिसमें नैतिक अधमता अन्तर्वलित हो, या
  3. उसने दिवालिया न्यायनिर्णित किये जाने के लिए आवेदन किया हो या वह अनुन्मोचित दिवालिया हो, या
  4. वह अवयस्क हो या बहरा-गूंगा हो या कुष्ठ रोग से पीड़ित हो, या
  5. वह मंदिर का पदाधिकारी या सेवक हो या मंदिर से कोई उपलब्धियां या परिलाभ प्राप्त करता हो, या
  6. वह मंदिर के लिए किसी सामग्री का कोई प्रदाय करने या मंदिर की ओर से कोई कार्य निष्पादित करने सम्बन्धी किसी विद्यमान संविदा में, या मंदिर के पक्ष या विपक्ष के वकील के रूप में हितबद्ध हो, या
  7. वह हिन्दू धर्म को नहीं मानता हो।

(4) कलक्टर और देवस्थान आयुक्त बोर्ड के पदेन सदस्य होंगे।

(5) मुख्य कार्यपालक अधिकारी बोर्ड का पदेन सदस्य-सचिव होगा।

7. सदस्यों की पदावधि:- बोर्ड के पदेन सदस्यों से भिन्न सदस्य धारा 9, 9 और 11 के उपबन्धों के अध्यधीन, उनके नामनिर्देशन की तारीख से तीन वर्ष की कालावधि तक पद धारण करेंगे:
परन्तु पद छोड़ने वाले सदस्य बोर्ड का पुनर्गठन होने तक पदधारण किये रहेंगे।

8. पद का त्याग:- बोर्ड के पदेन सदस्यों से भिन्न कोई भी सदस्य राज्य सरकार को लिखित नोटिस देकर अपने पद को त्याग सकेगा और इस प्रकार पद-त्याग किये जाने पर उसका पद रिक्त हो जायेगा।

9. सदस्यों का हटाया जाना:-
(1) राज्य सरकार बोर्ड के पदेन सदस्यों से भिन्न किसी भी सदस्य को निम्नलिखित आधारों में से किसी पर भी पद से हटा सकेगी, अर्थात् -
(क) वह धारा 6 की उप-धारा (3) में विनिर्दिष्ट कारणों में से किसी भी कारण से ऐसी नियुक्ति के लिए निरर्हित है या हो गया है, या
(ख) वह अनुपस्थिति के लिए इजाजत प्राप्त किये बिना बोर्ड की लगातार चार से अधिक बैठकों में अनुपस्थित रहा है, या
(ग) वह विन्यास के प्रशासन में भ्रष्टाचार या अवचार का दोषी रहा है।
(2) कोई भी व्यक्ति इस धारा के अधीन तब तक नहीं हटाया जायेगा जब तक कि उसे हटाये जाने के विरूद्ध कारण बताने का युक्तियुक्त अवसर न दे दिया गया हो।

10. आकस्मिक रिक्ति का भरा जाना: यदि अध्यक्ष का या पदेन सदस्य से भिन्न किसी भी सदस्य का पद मृत्यु, पदत्याग, हटाये जाने के कारण या अन्यथा आकस्मिक रूप से रिक्त हो गया हो तो राज्य सरकार उस रिक्त पद को ऐसे व्यक्तियों की नियुक्ति करके भरेगी जो धारा 6 की उप-धारा (3) के अधीन निरर्हित न हो।

11. बोर्ड का विघटन और पुनर्गठन:-
(1) यदि राज्य सरकार की राय में, बोर्ड उस पर इस अधिनियम के अधीन अधिरोपित कर्तव्यों का पालन करने में सक्षम न हो या बराबर व्यतिक्रम करता हो या अपनी शक्तियों का अतिक्रमण या दुरूपयोग करे या राज्य सरकार द्वारा जारी किये गये निदेशों का अनुपालन करने में विफल रहे तो राज्य सरकार सम्यक् जांच के पश्चात् राज-पक्ष में अधिसूचना द्वारा बोर्ड का विघटन कर सकेगी और इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार एक अन्य बोर्ड के तुरन्त पुनर्गठन का निदेश दे सकेगी।
(2) उप-धारा (1) के अधीन अधिसूचना जारी करने के पूर्व राज्य सरकार बोर्ड को उन आधारों से संसूचित करेगी जिन पर उसका ऐसी कार्रवाई करने का प्रस्ताव हो, बोर्ड के लिए ऐसे प्रस्ताव के विरूद्ध कारण बतलाने का युक्तियुक्त समय नियत करेगी और यदि उसके कोई स्पष्टीकरण या आक्षेप हों, तो उन पर विचार करेगी।
(3) जब बोर्ड का इस धारा के अधीन विघटन हो जाये तब राज्य सरकार इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार अन्य बोर्ड का गठन होने तक, बोर्ड के कृत्यों का पालन और शक्तियों का प्रयोग करने के लिए किसी व्यक्ति को नियुक्त करेगी।

12. पुनर्नियुक्ति के लिए व्यक्तियों की पात्रता:- ऐसा कोई भी व्यक्ति जो सदस्य न रह गया हो, यदि धारा 6 की उप-धारा (3) के अधीन निरर्हित न हो तो पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र होगा।

13. हानि इत्यादि के लिए दायित्व:- बोर्ड का प्रत्येक सदस्य, जिसमें अध्यक्ष भी सम्मिलित हैं, विन्यास की या उसका गठन करने वाली किसी भी धनराशि या अन्य सम्पत्ति की हानि, दुव्र्यय या दुर्विनियोग के लिए दायी होगा। यदि ऐसी हानि, दुव्र्यय या दुर्विनियोग उसके द्वारा पद-धारण किये जाने के क्रम में जानबूझकर किये गये उसके कार्य या लोप का सीधा परिणाम हो और उसके विरूद्ध बोर्ड द्वारा या राज्य सरकार द्वारा प्रतिकर के लिए वाद संस्थित किया जा सकेगा।

14. सदस्यों का पारिश्रमिक:- बोर्ड का प्रत्येक सदस्य, जिसमें अध्यक्ष भी सम्मिलित है, मंदिर की निधियों में से ऐसा यात्रा-भत्ता और विराम-भत्ता पाने का हकदार होगा जो विहित किया जाय।

15. बोर्ड का कार्यालय और उसकी बैठकें:-
(1) बोर्ड का कार्यालय चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित मण्डफिया में होगा।
(2) बोर्ड की बैठक की गणपूर्ति के लिए पांच सदस्यों की उपस्थिति आवश्यक होगी।
(3) बोर्ड की प्रत्येक बैठक का सभापतित्व अध्यक्ष द्वारा और उसकी अनुपस्थिति में ऐसे सदस्य द्वारा किया जायेगा जिसे सभापतित्व के लिए उस अवसर पर उपस्थित सदस्यों द्वारा चुना जाय।
(4) बोर्ड की बैठक में उत्पन्न हुए प्रश्नों का विनिश्चय, उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत से किया जायेगा और मतों की बराबरी वाले प्रत्येक मामले में अध्यक्ष को या सभापतित्व करने वाले व्यक्ति को निर्णायक मत देने का अधिकार होगा और वह उसका प्रयोग करेगा।

16. त्रुटि या रिक्ति के कारण कार्यों का अविधिमान्य न होना:- बोर्ड का या बोर्ड के अध्यक्ष या सदस्य के रूप में कार्य करने वाले किसी भी व्यक्ति का कोई भी कार्य या कार्यवाही केवल इस कारण से कि बोर्ड के किसी सदस्य का पद रिक्त है या बोर्ड के गठन में कोई त्रुटि है या इस आधार पर कि बोर्ड का अध्यक्ष या कोई भी सदस्य, किसी भी निरर्हता के कारण या उसकी नियुक्ति में कोई भी अनियमितता या अवैधता होने के कारण, पदधारण करने या पद पर बने रहने का हकदार नहीं था, अविधिमान्य नहीं समझी जायेगी।

17. बोर्ड के कर्तव्य:- इस अधिनियम और इसके अधीन बनाये गये नियमों के उपबंधों के अध्यधीन, बोर्ड, मंदिर के विन्यास जिनमें जंगम और स्थावर, दोनों प्रकार की सम्पत्तियां सम्मिलित है, आयों, भेंटों और चढ़ावों का मंदिर के स्थापित सिद्धान्तों के अनुसार आनवंशिक, पुजारियों के द्वारा सेवा-पूजा का और मंदिर के लौकिक कर्मों का प्रबन्ध करेगा। बोर्ड मंदिर में दैनिक धार्मिक पूजा करने और समयोत्सव मनाने के लिए व्यवस्था और अनुदानों का सुनिश्चयन भी करेगा:
परन्तु राज्य सरकार को बोर्ड को उसके कर्तव्यों के अनुपालन के बारे में विनिर्दिष्ट निदेश जारी करने की शक्ति होगी और बोर्ड ऐसे निदेशों का अनुपालन करेगा।

18. स्थापित प्रथाओं और रूढ़ियों की व्यावृत्ति:- इस अधिनियम में या इसके अधीन जैसा कि अभिव्यक्ततः अन्यथा उपबंधित है उसे छोड़कर, इसमें अंतर्विष्ट किसी भी बात का प्रभाव मंदिर की किसी भी स्थापित प्रथा या ऐसे अधिकारों, सम्मानों, उपलब्धियों या परिलब्धियों पर नहीं पड़ेगा जिनके कि लिए कोई भी व्यक्ति मंदिर में रूढ़ि से या अन्यथा हकदार हो, जिसमें पुजारियों के, सीधे आरती, चढ़ावे तथा समारोहों के मासिक खाद्य चढ़ावे भी प्राप्त करने के आनुवंशिक अधिकार सम्मिलित हैं।

19. जंगम और स्थावर सम्पत्तियों का अन्य संक्रामण:-
(1) जिन रत्नाभूषणों या अविनश्वर प्रकृति की किसी भी मूल्यवान जंगम सम्पत्ति का प्रशासन बोर्ड में निहित हो उनका अंतरण बोर्ड की पूर्व मंजूरी के बिना नहीं किया जायेगा और यदि अंतरित की जाने वाली सम्पत्ति का मूल्य दस हजार रुपये से अधिक हो तो राज्य सरकार का पूर्व अनुमोदन भी आवश्यक होगा।
(2) मंदिर से संलग्न या सम्बद्ध कोई भी स्थावर सम्पत्ति राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना पांच से अधिक वर्षों के लिए पट्टे पर नहीं दी जायेगी, न बंधक रखी, बेची या अन्यथा अन्यसंक्रांत की जायेगी।

20. मुख्य कार्यपालक अधिकारी:-
(1) राज्य सरकार ऐसे किसी भी व्यक्ति को मंदिर का मुख्य कार्यपालक अधिकारी नियुक्त करेगी जो हिन्दू धर्म को मानता हो।
(2) मुख्य कार्यपालक अधिकारी मंदिर का पूर्णकालिक अधिकारी होगा और उसे मंदिर की निधि में से ऐसा वेतन संदत्त किया जावेगा जो राज्य सरकार समय-समय पर नियत करे।
(3) मुख्य कार्यपालक अधिकारी की सेवा की अन्य शर्तें ऐसी होगी जो राज्य सरकार द्वारा अवधारित की जायें।
(4) बोर्ड के नियंत्रण के अध्यधीन, मुख्य कार्यपालक अधिकारी को, इस अधिनियम के उपबन्धों को कार्यान्वित करने की साधारण शक्ति प्राप्त होगी।
(5) वह बोर्ड के सचिव के रूप में भी कार्य करेगा।

21. मुख्य कार्यपालक अधिकारी की शक्तियां और कर्तव्य:-
(1) ऐसे निर्देशों के अध्यधीन, जो समय-समय पर जारी किये जाये, मुख्य कार्यपालक अधिकारी मंदिर के समस्त अभिलेखों और सम्पत्तियों की अभिरक्षा के लिए उत्तरदायी होगा और मंदिर में आये चढ़ावे के उचित संग्रहण की व्यवस्था करेगा।
(2) उसे निम्नलिखित शक्तियां प्राप्त होगी:-

  1. मंदिर की जो भूमि और भवन सामान्यतः पट्टे पर दिये जाते हैं, उन्हें तीन वर्ष से अनधिक की कालावधि के लिए पट्टे पर देना, और
  2. निर्माण कार्यों और प्रदायों के लिए निविदाएं मांगना और यदि उनकी रकम या मूल्य पांच हजार रुपये से अधिक न हो तो उन्हें स्वीकार करना।

(3) मुख्य कार्यपालक अधिकारी, आपात स्थिति में, ऐसे किसी भी निर्माण-कार्य के निष्पादन या ऐसे किसी भी कार्य के किए जाने का निदेश दे सकेगा जिसके लिए वर्ष के बजट में उपबन्ध नहीं किया गया हो और जिसका तत्काल निष्पादन होना या किया जाना उसकी राय में मंदिर की सम्पत्तियों के परिरक्षण के लिए या वहां आने-जाने वाले यात्रियों की सेवा या सुरक्षा के लिए आवश्यक हो और वह यह भी निदेश दे सकेगा कि ऐसे निर्माण कार्य के निष्पादन या ऐसे कार्य के किये जाने के कारण हुआ व्यय मंदिर की निधि में से संदत्त किया जायेगा। ऐसे प्रत्येक मामले में मुख्य कार्यपालक अधिकारी इस प्रकार की गयी कार्रवाई और उसके किये जाने के कारणों की रिपोर्ट तुरन्त बोर्ड को देगा।
(4) मुख्य कार्यपालक अधिकारी ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करेगा जो बोर्ड द्वारा विहित किये जायें और ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग करेगा जो उसे बोर्ड द्वारा प्रत्यायोजित की जाए।

22. अन्य अधिकारी और सेवक:- राज्य सरकार द्वारा जारी किये गये किन्हीं भी साधारण या विशेष निदेशों के अध्यधीन बोर्ड मुख्य कार्यपालक अधिकारी से भिन्न अपने समस्त अधिकारियों और सेवकों को, राज्य सरकार द्वारा बनाये गये नियमों के अनुसार, नियुक्त कर सकेगा, निलम्बित कर सकेगा, हटा सकेगा, पदच्युत कर सकेगा या पदावनत कर सकेगा या किसी भी प्रकार से दण्डित कर सकेगा:
परन्तु बोर्ड उपर्युक्त के अध्यधीन यह निदेश दे सकेगा कि एक व्यक्ति को किन्हीं भी दो या अधिक पदों के कर्तव्यों का निर्वहण करने के लिए नियुक्त किया जावेगा।

23. बजट:-
(1) बोर्ड अपने पद का कार्यभार संभालने के तीन मास के भीतर और तत्पश्चात प्रत्येक शासकीय वर्ष के प्रारम्भ से कम से कम एक मास पूर्व उत्तरवर्ती वर्ष का बजट तैयार करेगा या करवायेगा और वर्ष के प्रारम्भ के पूर्व उस पर किसी बैठक में विचार करके उसे पारित करेगा।
(2) इस प्रकार पारित बजट की एक प्रति राज्य सरकार को भेजी जायेगी जिसें उसमें परिवर्तन, उपान्तरण या कमी या वृद्धि करने का अधिकार होगा और राज्य सरकार के द्वारा इस प्रकार अनुमोदित बजट बोर्ड का उस वित्तीय वर्ष का बजट होगा।

24. लेखे:-
(1) बोर्ड, प्रत्येक शासकीय वर्ष की समाप्ति से छः मास के भीतर पूर्ववर्ती वर्ष के लिए मंदिर के प्रशासन के सम्बन्ध में हुई प्राप्तियां और व्यय के सही-सही लेखे तैयार करेगा।
(2) ऐसे लेखों की संपरीक्षा एक संपरीक्षक द्वारा की जायेगी जो राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जायेगा और उस संपरीक्षक को मंदिर की निधि में से दिया जाने वाले पारिश्रमिक भी राज्य सरकार ही नियत करेगी।
(3) संपरीक्षक अपनी रिपोर्ट बोर्ड को प्रस्तुत करेगा और उसकी एक प्रति राज्य सरकार को भेजेगा।
(4) राज्य सरकार संपरीक्षक की रिपोर्ट पर या अन्यथा ऐसे निदेश दे सकेगी, और ऐसे आदेश पारित कर सकेगी, जो वह ठीक समझे और बोर्ड उन्हें कार्यान्वित करेगा।

25. प्रशासन रिपोर्ट:-
(1) बोर्ड, मंदिर के कामकाज और उसके विन्यासों के प्रशासन के सम्बन्ध में एक रिपोर्ट प्रतिवर्ष तैयार करेगा और वर्ष की समाप्ति के छः माह के भीतर-भीतर उसे राज्य सरकार को प्रस्तुत करेगा।
(2) उक्त रिपोर्ट मंदिर के लेखों के और संपरीक्षक की तत्सम्बन्धी रिपोर्ट के साथ राज-पत्र में प्रकाशित की जायेगी।

26. सूचना और लेखे मांगने को राज्य सरकार की शक्ति:- राज्य सरकार को ऐसी समस्त सूचना और लेखे मांगने की शक्ति होगी जो उसकी राय में उसका इस बारे में समाधान करने के लिए युक्तियुक्त रूप से आवश्यक हो कि मंदिर के कामकाज का प्रशासन उचित रूप से किया जा रहा है और मंदिर की निधियों को उसी प्रयोजन के लिए सम्यक् रूप से विनियोजित किया जा रहा है जिसके लिए वे हैं; और बोर्ड ऐसी अध्यपेक्षा पर, ऐसी सूचना और लेखे राज्य सरकार को तुरन्त प्रस्तुत करेगा।

27. निरीक्षण:- राज्य सरकार किसी भी व्यक्ति को मंदिर और उसके विन्यासों से सम्बन्धित किसी भी जंगम या स्थावर सम्पत्ति, अभिलेख, पत्र-व्यवहार, योजनाओं, लेखों और अन्य दस्तावेजों का निरीक्षण करने के लिए प्रतिनियुक्त कर सकेगी और बोर्ड तथा उसके अधिकारी और सेवक ऐसे व्यक्तियों को ऐसे निरीक्षण के लिए सभी सुविधाएं देने के लिए बाध्य होंगे।

28. वे प्रयोजन, जिनके लिए मंदिर की निधि का उपयोग किया जा सकेगा:-

(1) मंदिर की निधियों का उपयोग निम्नलिखित समस्त या उनमें से किसी भी प्रयोजन के लिए किया जा सकेगा, अर्थात् -

  1. मंदिर का प्रशासन और रख-रखाव तथा उसमें दैनिक पूजा और धार्मिक कर्म करना तथा उत्सव मनाना;
  2. मंदिर में आने वाले यात्रियों और पूजा करने वालों की सहायता के लिए अस्पताल और औषधालय खोलना और उनका रख-रखाव और अन्य शैक्षणिक तथा पूर्व प्रयोजन जिनमें मासिक खाद्य चढ़ावे सम्मिलित हैं;
  3. ऐसे यात्रियों और पूजा करने वालों के उपयोग तथा आवास सुविधा के लिए धर्मशालाओं और विश्राम-गृहों का निर्माण और रख-रखाव;
  4. उनमें जलप्रदाय और स्वच्छता सम्बन्धी अन्य प्रबन्धों की व्यवस्था करना;
  5. किसी भी सम्पत्ति का राज्य सरकार द्वारा प्राधिकृत अर्जन; और
  6. यात्रियों और पूजा करने वालों की सुविधा के लिए सड़कों और संचार-साधनों का निर्माण और रख-रखाव तथा उनमें प्रकाश की व्यवस्था करना।

(2) उप-धारा (1) में निर्दिष्ट प्रयोजनों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, बोर्ड, राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी से यह आदेश दे सकेगा कि मंदिर की अधिशेष निधियों का उपयोग निम्नलिखित प्रयोजनों के लिए किया जाये -
(क) ऐसी संस्थाएं स्थापित करना जिनमें हिन्दू धर्म, दर्शन और शास्त्रों के अध्ययन के लिए और भारतीय कला तथा संस्कृति की अभिवृद्धि के लिए विशेष व्यवस्था हो;
(ख) संस्कृत और हिन्दी के अध्ययन की अभिवृद्धि करना;
(ग) अस्पताल या कोढ़ी आश्रम की स्थापना और रख-रखाव करना।
(घ) ऐसे निराश्रित व्यक्तियों के लिए जो शरीर से असमर्थ तथा असहाय हो, दीनगृह का निर्माण और रख-रखाव करना; और
(ङ) ऐसे कोइ भी पूर्त, धार्मिक या शैक्षणिक प्रयोजन जो मंदिर के उद्देश्यों से असंगत न हो।
(3) उप-धारा (2) के अधीन किया गया बोर्ड का आदेश विहित रीति से प्रकाशित किया जायेगा।

29. नियम बनाने की शक्ति:-
(1) राज्य सरकार इस अधिनियम के समस्त या किसी भी प्रयोजन को कार्यान्वित करने के लिए, इससे संगत नियम बना सकेगी।
(2) विशिष्टतः और पूर्वगामी शक्ति को व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उसे निम्नलिखित बातों के सम्बन्ध में नियम बनाने की शक्ति होगी:-
(क) ऐसे समस्त मामले, जिनका नियमों द्वारा विहित या उपबन्धित किया जाना इस अध्यादेश के किसी भी उपबन्ध के अधीन स्पष्टतः अपेक्षित या अनुज्ञात हो या है;
(ख) बोर्ड के सदस्यों को यात्रा और विराम भत्ता दिया जाना;
(ग) मंदिर के लिए बजट अनुमान तैयार करना;
(घ) सार्वजनिक निर्माण कार्यों के सम्बन्ध में और प्रदायों के लिए अनुमानों को तैयार और मंजूर करना तथा निविदाएं स्वीकार करना;
(ङ) बोर्ड की बैठकें बुलाना और कार्य करना;
(च) मंदिर के लेखों का संपरीक्षण और संपरीक्षा रिपोर्ट में उल्लिखित की जाने वाली विशिष्टियाँ;
(छ) राज्य सरकार द्वारा नियुक्त संपरीक्षकों को संदेय रकमों की वसूली; और
(ज) मंदिर के अधिकारियों और सेवकों की सेवा की शर्तें।
(3) इस अधिनियम के अधीन कोई भी नियम इस प्रकार बनाया जा सकेगा जिससे उसका ऐसी तारीख से भूतलक्षी प्रभाव हो जो इस अधिनियम के प्रारम्भ की तारीख के पूर्व की न हो और जिसे राज्य सरकार राज-पत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करें।
(4) इस अधिनियम के अधीन बनाये गये नियम राज्य विधान-मण्डल के समक्ष उसके ठीक आगामी सत्र में रखे जायेंगे।

30. वाद:-
(1) राज्य सरकार निम्नलिखित की डिक्री प्राप्त करने के लिए जिला न्यायाधीश के न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर सकेगी:-
(क) बोर्ड में कोई भी सम्पत्ति निहित करने के लिए, या
(ख) इस घोषणा के लिए कि किसी विन्यास का या उसमें के हित का कितना भाग किसी भी विशिष्ट विषय के निमित्त आवंटित किया जावे, या
(ग) लेखे देने का निदेश देने के लिए, या
(घ) ऐसी और या अन्य राहत के लिए, जैसी कि मामले की प्रकृति द्वारा अपेक्षित हो।
(2) सिविल प्रक्रिया संहित, 1908 (1908 का केन्द्रीय अधिनियम 5) की धारा 92 और 93 और उसकी प्रथम अनुसूची के आर्डर 1 के नियम 8 ऐसे किसी भी वाद पर लागू नहीं होेंगे जिसमें मंदिर के प्रशासन या प्रबन्ध के बारे में राहत पाने के लिए दावा किया जावे और ऐसे प्रशासन या प्रबन्ध के बारे में कोई भी वाद इस अधिनियम द्वारा जैसा उपबंधित है उसके सिवाय संस्थित नहीं किया जायेगा।

31. कब्जा प्राप्त करने में प्रतिरोध या बाधा:- यदि मंदिर की ऐसी सम्पत्तियों पर, जिनके लिए बोर्ड धारा 4 के अधीन हकदार है, कब्जा प्राप्त करते समय बोर्ड का, किसी भी व्यक्ति द्वारा प्रतिरोध किया जाये या उसमें बाधा डाली जाये तो वह अधिकारिता रखने वाले मजिस्ट्रेट के पास, ऐसे प्रतिरोध या बाधा की शिकायत करते हुए, आवेदन प्रस्तुत कर सकेगा और ऐसा मजिस्ट्रेट, जब तक उसे इस बात का समाधान न हो जाये कि प्रतिरोध या बाधा किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा डाली गयी थी जो सद्भावपूर्वक उस पर अपनी ओर से या मंदिर से स्वतंत्र अपने किसी भी अधिकार के कारण अपना कब्जा होने का दावा करता हो, यह आदेश देगा कि बोर्ड को कब्जा दे दिया जावे। ऐसा आदेश किसी ऐसे वाद के परिणाम के अध्यधीन अंतिम होगा जो कि सम्पत्ति पर कब्जे का अधिकार स्थापित करने के लिए लिया जावे।

32. वाद आदि के व्यय:- इस अधिनियम के अधीन के किसी भी वाद, आवेदन पत्र या अपील के और उससे आनुषंगिक व्यय, प्रभार और खर्चे न्यायालय के विवेक पर निर्भर करेंगे जो ऐसे सम्पूर्ण खर्चे, प्रभार और व्यय या उनका कोई भी भाग मंदिर की निधि में से पूरा किये जाने या ऐसी रीति से और ऐसे व्यक्ति द्वारा वहन और संदत्त किये जाने के लिए निदेश दे सकेगा, जैसा वह उचित समझे:
परन्तु मंदिर के हित में अपेक्षित किन्हीं भी विधिक कार्यवाहियों के सम्बन्ध में बोर्ड द्वारा उपगत सम्पूर्ण व्यय और खर्चे मंदिर की निधियों में से संदेय होंगे।

33. अंतःकालीन उपबन्ध:- राज्य सरकार, इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् और बोर्ड के गठन के पूर्व, एक या अधिक व्यक्तियों को बोर्ड के समस्त या किन्हीं भी कर्तव्यों का पालन करने के लिए नियुक्त कर सकेगी।

34. कठिनाईयों को दूर करने की शक्ति:- यदि इस अधिनियम के किन्हीं भी उपबन्धों को प्रभावी करने में कोई भी कठिनाई उत्पन्न हो तो राज्य सरकार आदेश द्वारा ऐसे निदेश दे सकेगी और ऐसे उपबन्ध कर सकेगी जो उसे कठिनाई दूर करने के प्रयोजन के लिए आवश्यक प्रतीत हों।

35. बोर्ड की उन्मुक्ति:- राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति के बिना, बोर्ड या बोर्ड के निदेश के अधीन कार्य करने वाले किसी भी व्यक्ति के या बोर्ड या उसके किसी भी निकाय के अध्यक्ष, सदस्य या किसी भी अधिकारी या सेवक के विरूद्ध ऐसी किसी भी बात के लिए कोई वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही नहीं हो सकेगी जो इस अधिनियम के अधीन विधिपूर्वक और सद्भावपूर्वक और सम्यक् सावधानी और ध्यान से की गयी हो।

36. निरसन और व्यावृत्तियां:-
(1) श्री सांवलियाजी मन्दिर अध्यादेश, 1991 (1991 का अध्यादेश सं. 10) इसके द्वारा निरसित किया जाता है।
(2) ऐसे निरसन के होने पर भी, उक्त अध्यादेश के अधीन की गयी सभी बातें, कार्रवाईयां या आदेश मूल अधिनियम के अधीन किये गये समझे जायेंगे।

अनुसूची
मण्डफिया स्थित श्री सांवलियाजी के मन्दिर के अधीन गांवों के नाम

1. मण्डफिया स्थित श्री सांवलियाजी का मन्दिर
2. भूतखेड़ा
3. घोड़ा खेड़ा
4. गिद्दा खेड़ा
5. मातोली गूजरां
6. करोली
7. रदाई खेड़ा
8. बलिया खेड़ा
9. रूपाजी का खेड़ा
10. मोडाजी का खेड़ा
11. सेगवा
12. कुरेठा
13. अमरपुरा
14. चरलिया
15. नाडा खेड़ा
16. टांडी का खेड़ा।

जे.पी. बंसल

शासन सचिव।

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