श्री सांवलियाजी मंदिर नियम, 1991 (47)
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राजस्थान राज-पत्र
वि शेषांक |
Regd.No. RJ.2539
RAJASTHANGAZETTE
Extraordinary |
साधिकार प्रकाशित |
Published byAuthority |
अग्रहायण 11, सोमवार, शाके 1913 - दिसम्बर 2, 1991
Agrahayana 11, Monday, Saka 1913- December 2, 1991 |
भाग-4 (ग)
उप खण्ड (I)
राज्य सरकार तथा अन्य राज्य-प्राधिकारियों द्वारा जारी किये गये
(सामान्य आदेशों, उप-विधियों आदि को सम्मिलित करते हुए) सामान्य कानूनी नियम।
देवस्थान विभाग
अधिसूचना
जयपुर, दिसम्बर 2, 1991
जी.एस.आर. 41:- श्री सांवलियाजी मंदिर अध्यादेश 1991 (अध्यादेश संख्या 10, सन् 1991) की धारा 14, धारा 17, धारा 20 की उप-धारा (2), धारा 21 की उप-धारा (4), धारा 22, धारा 28 की उप-धारा (3) की सपठित धारा 29 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए राज्य सरकार, एतद्द्वारा, उक्त अध्यादेश के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए निम्नलिखित नियम बनाती है, अर्थात्:-
भाग-1
1. संक्षिप्त नाम तथा प्रारम्भ:-
1. ये नियम श्री सांवलियाजी मंदिर नियम, 1991 कहलायेंगे।
2. ये तुरन्त प्रभाव से लागू होंगे।
2. परिभाषायें:-
(1) इन नियमों में, जब तक विषय या सन्दर्भ के विरूद्ध कोई बात न हो:-
(क) ‘‘अध्यादेश’’ से तात्पर्य श्री सांवलियाजी मंदिर अध्यादेश, 1991 से है।
(ख) ‘‘बजट’’ से तात्पर्य श्री सांवलियाजी मंदिर की प्राप्तियां तथा व्ययों के अनुमान के विवरण से है।
(ग) ‘‘बेलेन्स शीट’’ से तात्पर्य श्री सांवलियाजी मंदिर के बजट संतुलन चित्र (बेलेन्स शीट) से है।
(घ) ‘‘बोर्ड’’ से तात्पर्य अध्यादेश की धारा 5 के अन्तर्गत स्थापित एवं गठित श्री सांवलियाजी मंदिर बोर्ड से है जिसका कार्यालय चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित मण्डफिया ग्राम में होगा।
(ङ) ‘‘प्रपत्र’’ से तात्पर्य इन नियमों के साथ लगे प्रपत्रों से है।
(च) ‘‘धारा’’ से तात्पर्य अध्यादेश की धारा से है।
(छ) ‘‘वर्ष’’ से तात्पर्य दिनांक 1 अप्रेल को प्रारम्भ व आगामी दिनांक 31 मार्च को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष से है।
(ज) ‘‘सेवा’’ से तात्पर्य समस्त प्रकार की सेवा जो मंदिर की मूर्ति के सम्बन्ध में की जाती है अथवा अन्य उसमें स्थापित अन्य पूजा अर्चना आदि से है।
(झ) ‘‘मंदिर निधि’’ से तात्पर्य है श्री सांवलियाजी मंदिर बोर्ड द्वारा प्रशासित सांवलियाजी मंदिर निधि तथा इसमें समस्त राशियां, चढ़ावा, भेंट तथा पूजा स्थल के लाभ के लिए किया गया कोई भी अन्य दान या अभिदाय से है तथा इसमें ऐसी राशि जो पूजा स्थल तथा मंदिर श्री सांवलियाजी की सेवा पूजा के अधीन प्रयोजनों के लिए की जाती भी इसमें सम्मिलित हैं।
(ञ) ‘‘बोर्ड के अधिकारी तथा कर्मचारी एवं सेवकों’’ से तात्पर्य मुख्य कार्यपालक अधिकारी के अलावा ऐसे किसी भी अधिकारी एवं कर्मचारी से है जो बोर्ड द्वारा नियुक्त हो अथवा बोर्ड से अधिकृत व्यक्ति द्वारा नियुक्त हो, सम्मिलित है।
(ट) ‘‘मंदिर के आभूषणों’’ से तात्पर्य सोना, चांदी एवं अन्य कीमती धातु के आभूषण, रत्नाभूषण तथा अन्य वस्तुओं से है जो मूर्ति को धारण कराये जाते हैं अथवा पूजा कार्य के प्रयोग में लाये जाते हैं।
(ठ) ‘‘निर्माण कार्य’’ में श्री सांवलियाजी मंदिर बोर्ड द्वारा प्रशासित सांवलिया मंदिर परिसर तथा अन्य इमारत तथा इमारतों के निर्माण, मरम्मत, परिवर्तन, परिवर्द्धन, संवर्द्धन व नये निर्माण कार्य तथा मंदिर के कृषि एवं सिंचाई सम्बन्धी कार्य जो मण्डफिया अथवा मण्डफिया के बाहर किये जाते हैं एवं दानदाताओं के द्वारा कराये जाने वाले निर्माण कार्य जो बोर्ड अथवा बोर्ड के द्वारा अधिकृत अधिकारी की सहमति से कराये जाते हों, आदि इसमें सम्मिलित हैं।
(2) इन नियमों में प्रयुक्त किन्तु अपरिभाषित शब्दों तथा अभिव्यक्तियों में वे ही अर्थ होंगे जो अध्यादेश में क्रमशः उन्हें समनुदेशित किये गये हैं।
(3) जब तक कि संदर्भ द्वारा अन्यथा अपेक्षित न हो, इन नियमों के निर्वचन के लिये राजस्थान साधारण खण्ड अधिनियम, 1955 (राजस्थान अधिनियम 8, सन् 1955) वैसे ही लागू होगा जैसे वह किसी राजस्थान अधिनियम के निर्वचन पर लागू होता है।
भाग-2
3. मन्दिर की सम्पदा तथा उनकी प्रविष्टियां:-
(1) बोर्ड के अधिक्षेत्र में सम्मिलित समस्त चल-अचल संपदाओं की पूर्ण प्रविष्टियां बोर्ड करवायेगा तथा उनकी पंजिकाएं भी संधारण करेगा जो बोर्ड के अधिकार क्षेत्र में सम्मिलित है, जो निम्न अनुसार होगी:-
(क) अचल सम्पदाएं जिसमें मंदिर भवन, धर्मशाला, औषधालय, स्कूल तथा अन्य आवासीय भवन, भूखण्ड, जागीर भूमि, माफी भूमि, कृषि तथा सिंचाई की भूमि आदि सम्मिलित है।
(ख) मन्दिर के समस्त आभूषणादि ।
(ग) अन्य चल संपदाएं जो खराब होने योग्य नहीं हो तथा उपभोग योग्य नहीं हो।
(2) जो प्रविष्टियां तैयार की जावेंगी एवं संशोधित की जावेगी, वह बोर्ड द्वारा राज्य सरकार को वार्षिक प्रस्तुत की जावेगी।
4. मन्दिर के आभूषणों का संरक्षण:- बोर्ड के नियंत्रण के होते हुए समस्त आभूषण मुख्य कार्यपालक अधिकारी की सुरक्षा में रहेंगे तथा उसकी सहायता के लिए बोर्ड द्वारा नियुक्त अन्य अधिकारी हो सकेगा या हो सकेंगे।
5. जेवरों की सुरक्षा:- मन्दिर के जेवरात धातु के बक्सों, आलमारियों तथा स्ट्रांग रूम में सुरक्षित रहेंगे और जिनकी दो चाबियां होंगी। एक चाबी मुख्य कार्यपालक अधिकारी के पास तथा दूसरी चाबी बोर्ड द्वारा अधिकृत अन्य अधिकारी के पास में रहेगी। इसकी प्रविष्टियों को निर्धारित पंजिका में सूचीबद्ध किया जावेगा।
6. भौतिक सत्यापन एवं मूल्यांकन:- मन्दिर के आभूषणों का भौतिक सत्यापन तथा मूल्यांकन मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा बोर्ड से अधिकृत व्यक्ति के समक्ष प्रत्येक वर्ष में एक बार अवश्य किया जावेगा। मूल्यांकन किसी मान्यता प्राप्त विशेषज्ञ द्वारा करवाया जावेगा। भौतिक सत्यापन तथा मूल्यांकन की रिपोर्ट कार्यपालक अधिकारी द्वारा बोर्ड की अगली बैठक में प्रस्तुत की जावेगी।
7. मूर्ति को भेंट स्वरूप प्रदत्त आभूषणों की पंजिका:- समस्त आभूषण आदि जो मंदिर में प्रतिस्थापित मूर्ति को भेंट के रूप में प्राप्त होते हैं, तत्सम्बन्धी निर्धारित पंजिका में उन्हें सूचीबद्ध किया जावेगा तथा पृथक से सेफ में रखा जावेगा जो मुख्य कार्यपालक अधिकारी एवं बोर्ड द्वारा अधिकृत व्यक्ति की सुरक्षा में रहेंगे। जब तक उनको नियम 3 के अन्तर्गत निर्धारित पंजिका में प्रविष्टियां नहीं कर दी जावे।
8. जंगम और स्थावर सम्पत्तियों का संक्रमण:- अध्यादेश की धारा 19 को समाविष्ट करते हुए समस्त प्रस्ताव जो राज्य सरकार को प्रस्तुत किये जावेंगें एवं उसी के अनुरूप कार्य सम्पादित किया जावेगा तथापि बोर्ड अपनी बैठक में नियमानुसार निर्णय लेकर 10 हजार रुपये तक के संक्रमण हेतु सक्षम होगा। मुख्य कार्यपालक अधिकारी 2000/- रुपये तक की राशि के संक्रमण के लिए अधिकृत है परन्तु उसका अनुमोदन तत्काल बाद में होने वाली बोर्ड की बैठक में करवा लिया जायेगा।
भाग-3
9. बोर्ड का गठन:- अध्यादेश की धारा 6 के अनुरूप राज्य सरकार द्वारा बोर्ड का गठन किया जावेगा एवं इसकी विज्ञप्ति राजस्थान राज-पत्र में प्रकाशित की जायेगी-
(1) बोर्ड के कर्तव्यों के निर्वहन के लिये बोर्ड की बैठक तीन माह में एक बार होगी; अध्यक्ष द्वारा बैठक की तिथि, स्थान व समय निर्धारित की जावेगी।
(2) बैठक की सूचना 15 दिन पूर्व एजेण्डा सहित मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा सभी सदस्यों को दी जावेगी जिसमें तिथि, स्थान व समय भी निर्दिष्ट होंगे। किन्तु यदि अत्यन्त आवश्यक हो तो अध्यक्ष की अनुमति से अल्पकालीन बैठक आहूत करने की सूचना दी जावेगी जिसके लिए सूचना कम से कम तीन दिवस पूर्व दी जावेगी।
(3) बैठक की सूचना सदस्यों को उनके पते पर भेजी जावेगी।
10. विशेष बैठक:- अध्यक्ष, जब कभी यह उचित समझे, विशेष स्वरूप का कोई कार्य करने के लिये विशेष साधारण बैठक बुला सकेगा। ऐसी विशेष साधारण बैठक बोर्ड के पांच सदस्यों से अन्यून सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित लिखित अध्यपेक्षा पर अध्यक्ष द्वारा ऐसी अध्यपेक्षा प्राप्त करने की तारीख से 21 दिनों की कालावधि के भीतर किसी तारीख को बुलायी जायेगी।
11. बैठक की अध्यक्षता:- बैठक की अध्यक्षता अध्यक्ष करेगा तथा उसकी अनुपस्थिति में उपस्थित सदस्य अपने में से एक सदस्य को बोर्ड की बैठक की अध्यक्षता करने हेतु अध्यक्ष चुनेंगे।
12. बैठक का स्थगन:-
(1) सामान्य बैठक उपस्थित सदस्यों के बहुमत की सम्मति से समय-समय पर स्थगित की जा सकेगी, किन्तु बैठक, जिससे स्थगन हुआ है, में छोड़े गये उस अध्ययनित कार्य से भिन्न कोई भी कार्य स्थगित बैठक में नहीं किया जायेगा।
(2) यदि बैठक के लिये नियत समय के पश्चात् आधे घण्टे के भीतर गणपूर्ति नहीं होती है तो अध्यक्ष इसे अन्य ऐसी तारीख तक स्थगित कर सकेगा जैसा वह युक्तियुक्त समझे। वह कार्य जो आरम्भिक बैठक के समक्ष लाया गया होता तो ऐसी स्थगित बैठकों के समक्ष लाया जायेगा तथा उसका निपटारा किया जा सकेगा चाहे गणपूर्ति हो या नहीं।
13. अभिलेखों की प्रस्तुति:- मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा बैठक के एजेण्डा से सम्बन्धित समस्त रेकार्ड एवं सूचना बैठक के पूर्व प्रस्तुत किया जावेगा।
14. बैठक का कार्य विवरण:- बैठक में प्रत्येक एजेण्डा पर निर्णय बहुमत से लिया जावेगा। दोनों पक्षों के बराबर मत होने की दशा में अध्यक्ष को कास्टिंग मत (निर्णायक मत) देने का अधिकार होगा। गत बैठक में लिये गये निर्णयों का अनुमोदन अपनी बैठक में कराया जायेगा। प्रत्येक बैठक की कार्यवाही विवरण राज्य सरकार तथा समस्त सदस्यों को साधारणतया बैठक के 15 दिन के अन्दर भेजा जावेगा।
15. यदि विवादग्रस्त मामला किसी सदस्य से व्यक्तिगत रूप से सम्बन्धित हो तो वह सदस्य विचार विमर्श में भग नहीं लेगा न ही अपना मत ही देगा न ही अपने विचार प्रकट करेगा।
16. बोर्ड के अध्यक्ष, सदस्यों व अन्य को देय भत्ता व अन्य भत्ते:- बोर्ड के अध्यक्ष, सदस्यों व अन्य को बोर्ड के कार्य हेतु अथवा बोर्ड से सम्बन्धित की जाने वाली यात्रा के लिए संलग्न सारणी नं. 1 में अंकित भत्ते देय होंगे।
भाग - 4
बोर्ड के कृत्य एवं शक्तियां
17. बोर्ड के कृत्य:-
(1) बोर्ड मंदिर, इससे उपाबद्ध भवनों को सम्मिलित करते हुए तथा अन्य समस्त भवनों एवं भूमियों, जिनका प्रशासन इसमें निहित हैं, को अच्छी हालत तथा सुअवस्था में परिरक्षित करेगा तथा बनाए रखेगा। परन्तु यह है कि निज मन्दिर तथा अन्य स्थानों, जिनसे धार्मिक पवित्रता संलग्न है, के पुनरूद्धार तथा जीर्णोद्धार एवं परिमार्जन से सम्बन्धित संकर्म धर्मानुसार ऐसे स्थानों की पवित्रता को अपवित्र किये बिना कार्यान्वित किये जायेंगे।
(2) बोर्ड मन्दिर के लिए तथा के निमित्त प्राप्त की गई समस्त अर्पित वस्तुओं एवं भेंटों की प्राप्ति एवं व्ययन के लिए इन्तजाम करेगा तथा उसका उचित लेखा रखेगा।
(3) बोर्ड मन्दिर की निधियों की समुचित अभिरक्षा, निक्षेप एवं विनिधान के लिए इन्तजाम करेगा तथा इसके स्टाफ को यथोचित उपलब्धियों के संदाय के लिए उपबन्ध करेगा।
(4) बोर्ड मन्दिर निधियों, मूल्यवान प्रतिभूतियों, अभिलेखों, दस्तावेजों, मन्दिर आभूषणों तथा मन्दिर से सम्बन्धित अन्य आस्तियों की सुरक्षित अभिरक्षा सुनिश्चित करेगा तथा इस प्रयोजनार्थ मन्दिर से सम्बन्धित समस्त आभूषणों, गहनों तथा अन्य मूल्यवान वस्तुओं का किसी ख्याति प्राप्त बीमा कम्पनी में आग, चोरी या किसी अन्य प्राकृतिक विपत्ति से हानि के प्रति बीमा करवायेगा।
(5) बोर्ड धर्मानुसार मन्दिर में व्यवस्था, अनुशासन तथा समुचित स्वास्थ्य कर अवस्थायें बनाये रखना, सुनिश्चित करेगा।
18. बोर्ड की शक्तियां:-
(1) बोर्ड को,
(क) मूर्तियों या मन्दिर के पक्ष में विन्यास या न्यास स्वीकार करने तथा उससे सम्बन्धित प्रयोजनों के लिये निधि स्थापित करने एवं उनके लिए संदान एकत्र करने,
(ख) मन्दिर के लौकिक कार्यकलापों के लिए संदान एवं दान स्वीकार करने की शक्ति होगी।
(2) बोर्ड को इन नियमों के अधीन अपने किन्हीं कृत्यों या कर्तव्यों को किसी समिति या मुख्य कार्यपालक अधिकारी को प्रत्यायोजित करने की शक्ति होगी जो सामान्य या विशेष निर्देशों जो बोर्ड द्वारा इस निमित्त जारी किये जाएं, के अनुसार ऐसे कृत्यों एवं कर्तव्यों का निर्वहन करेगा।
19. बोर्ड द्वारा गठित समितियां ऐसी शक्तियों, कर्तव्यों एवं कृत्यों का प्रयोग पालन एवं निर्वहन कर सकेगी जैसे बोर्ड द्वारा उन्हें प्रत्यायोजित किये जायें।
20. बोर्ड या कोई समितियां एवं इसमें अधिकारी और सेवक मन्दिर के अध्यात्मिक या अलौकिक कार्यकलापों से सम्बन्धित किसी मामले का संव्यवहार नहीं करेंगे तथा मन्दिर की सेवा एवं पूजा तथा अन्य गृहकर्मों एवं उत्सवों से सम्बन्धित मामले।
21. उधार:-
(1) जब कभी भी बोर्ड को मन्दिर या इसके विन्यासों के प्रयोजन के लिए कोई उधार संविदा करना समोचीन प्रतीत हो तो वह अपनी प्रस्थापना राज्य सरकार को प्रस्तुत करेगा तथा कोई ऐसा संव्यवहार करने से पूर्व राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी अभिप्राप्त करेगा।
(2) समस्त ऐसी प्रस्थापनाओं से निम्नलिखित बिन्दुओं पर पूर्ण विशिष्टियों तथा जानकारी संलग्न की जायेगी:-
(क) उधार लेने की आवश्यकता के कारण;
(ख) लिये जाने के लिए प्रतिस्थापित उधार की रकम;
(ग) वह स्त्रोत जिससे यह लिया जाना प्रस्थापित है;
(घ) उधार के सम्यक् चुकाने के लिए प्रतिभूति के रूप में प्रस्तावित सम्पत्ति;
(ङ) वह रीति तथा किश्तें जिनमें उधार का प्रतिसंदाय किया जाना प्रस्थापित है।
(3) राज्य सरकार उधार के लिए किसी प्रस्थापना की मंजूरी देते समय ऐसी शर्तें अधिरोपित कर सकेगी तथा ऐसे निर्देश दे सकेगी जो वह उचित समझें।
22. बोर्ड के अधिकारियों तथा सेवकों से प्रतिभूति:- बोर्ड समय-समय पर बोर्ड के किसी अधिकारी या सेवक द्वारा दी जाने वाली प्रतिभूति की रकम तथा प्रकृति उसके द्वारा प्रबन्धित मूल्यवान वस्तुओं या उसके पद में संलग्न उत्तरदायित्वों को ध्यान में रखते हुए अवधारित करेगा।
23. बोर्ड के कर्तव्य:- बोर्ड को ऐसी समस्त बातें करने का कर्तव्य होगा जो मन्दिर के लौकिक कार्यकलापों के दक्ष प्रबन्ध के आनुषंगिक एवं साधक हों।
24. मुख्य कार्यपालक अधिकारी के कर्तव्य:-
(1) मुख्य कार्यपालक अधिकारी बोर्ड को सामान्य मुद्रा को अपनी अभिरक्षा में रखेगा। सामान्य मुद्रा ऐसे प्रारूप में होगी जो बोर्ड द्वारा इस निमित्त विहित की जाये।
(2) मुख्य कार्यपालक अधिकारी अपने कार्यालय की समस्त शाखाओं तथा बोर्ड के प्रशासन के अधीन के विभागों का एक वर्ष से कम से कम क बार निरीक्षण करेगा तथा मण्डफिया के बाहर की सम्पत्तियों का भी तीन वर्ष में कम से कम एक बार निरीक्षण करेगा और ऐसे निरीक्षणों की रिपोर्ट बोर्ड की साधारण बैठक में रखे जाने के लिये अध्यक्ष को तत्काल प्रस्तुत करेगा।
(3) मुख्य कार्यपालक अधिकारी ऐसे सामान्य या विशेष निर्देशों का अनुपालन करेगा जो बोर्ड द्वारा समय-समय पर उसको दिये जायें।
(4) बोर्ड के सचिव के रूप में वह बोर्ड की कार्यवाहियों के कार्यवृत्त को सम्यक् अभिलिखित करने एवं रखने का उत्तरदायी होगा।
(5) समितियों के सचिव के रूप में वह समितियों की बैठकों की कार्यवाहियों के कार्यवृत्त को सम्यक् अभिलिखत करने एवं रखने का उत्तरदायी होगा।
(6) वह बोर्ड तथा इसकी समितियों के विनिश्चयों को शीघ्रता तथा दक्षता से कार्यान्वित करने का उत्तरदायी होगा।
(7) वह मन्दिर सम्पत्ति तथा इसके विन्यास एवं मन्दिर को निधियों के सम्बन्ध में ऐसी जानकारी या लेखा प्रदत्त करने का उत्तरदायी होगा जिसकी राज्य सरकार या बोर्ड अपेक्षा करें।
(8) वह बोर्ड तथा समितियों, यथास्थिति के लिये तथा की ओर से पत्र-व्यवहार करेगा तथा उसी को क्रमशः बोर्ड या समितियों के समक्ष रखेगा।
(9) बोर्ड के अधीक्षण के अध्यधीन वह समस्त ऐसे कार्य, कृत्य एवं बातें करेगा जो मन्दिर की सम्पत्तियों तथा लौकिक कार्यकलापों के दक्ष प्रबन्ध के आनुषंगिक या साधक हों।
25. मुख्य कार्यपालक अधिकारी की शक्तियां:-
(1) मन्दिर की सम्पदा एवं कर्मचारियों पर मुख्य कार्यपालक अधिकारी का पूर्ण प्रशासनिक नियंत्रण होगा।
(2) मुख्य कार्यपालक अधिकारी मन्दिर से सम्बन्धित समय आय-व्यय का लेखा-जोखा रखजायेगा एवं केश बुक पर प्रमाणीकरण स्वरूप हस्ताक्षर करेगा।
(3) मुख्य कार्यपालक अधिकारी यह सुनिश्चित करेगा कि मन्दिर में चढ़ाई गई समस्त भेंट, मन्दिर की समस्त आय व्यय भण्डार पंजिका एवं रोकड़ बही में नियमानुसार अंकित कर दी जाती है जिसके प्रमाणीकरण स्वरूप सम्बन्धित प्रश्न पर वह हस्ताक्षर करेगा।
(4) मन्दिर की ओर से की जाने वाली समस्त कानूनी कार्यवाही मुख्य कार्यपालक अधिकारी निष्पादित करेगा एवं विभिन्न अदालतों में मन्दिर का प्रतिनिधित्व करेगा।
(5) मुख्य कार्यपालक अधिकारी नियम 25 (2) से (4) तक की शक्तियां स्वयं से कनिष्ठ किसी राजपत्रित अधिकारी को, यदि बोर्ड कार्यालय में उपलब्ध हो, डेलीगेट कर सकेगा।
भाग - 5
बजट
26. बजट:-
(1) बोर्ड लेखों के उचित आय व खर्च के मुख्य एवं उप-शीर्षकों का निर्धारण करेगा।
(2) बोर्ड के द्वारा निर्धारित प्रपत्र में मन्दिर सम्बन्धित कार्यों का बजट तैयार किया जावेगा तथा मुख्य कार्यपालक अधिकारी इसको प्रस्तुत करेंगे।
(3) प्रत्येक बजट में मुख्यतः निम्न का प्रावधान होगा:-
(क) दैनिक सेवा पूजा तथा मन्दिर में मनाये जाने वाले उत्सवों का व्यय।
(ख) परम्परागत सम्प्रदाय सम्बन्धी अन्य व्यय।
(ग) मन्दिर के संस्थापन सम्बन्धी व्यय।
(घ) बोर्ड के अध्यक्ष-सदस्यों के सम्बन्ध में किये गये व्यय।
(ङ) वार्षिक मरम्मत, निर्माण, जीर्णोद्धार व अन्य कार्य सम्बन्धी व्यय।
(च) कार्यालय सम्बन्धी व्यय।
(छ) मन्दिर सम्बन्धी अन्य संस्थाओं सम्बन्धी व्यय जिनके बारे मे अधिनियम की धारा 28 में निर्दिष्ट है।
(ज) मुख्य कार्यपालक अधिकारी वर्ष प्रारम्भ होने से एक महीने पूर्व बोर्ड के अध्यक्ष को बजट प्रस्तुत करेगा जिसमें निम्न दर्शाये जावेंगे:-
- आमदनी व खर्च
- वर्ष के अनुमानित तथा पारित व्यय जो मन्दिर के बजट से किये जावेंगे।
बजट बोर्ड द्वारा पारित किया जावेगा।
28. (1) पारित खर्च के सिवाय अन्य कोई व्यय मन्दिर के बजट से साधारणतया नहीं किया जावेगा किन्तु मन्दिर के हित में आवश्यक होने पर मुख्य कार्यपालक अधिकारी 5000/- रुपये तक व्यय कर सकेगा जिसकी कार्योत्तर स्वीकृति बोर्ड से ली जावेगी।
(2) पारितशुदा बजट के अनुरूप कार्यपालक अधिकारी को व्यय करने का पूर्ण अधिकार होगा।
(क) 2000/- रुपये तक की राशि का व्यय मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा बाजार दरों को ध्यान में रखते हुए सीधा किया जा सकेगा।
(ख) 2000/- रुपये से अधिक किन्तु 10000/- रुपये तक की राशि के लिये सीमित निविदायें आमंत्रित कर व्यय कर सकेगा।
(ग) 10,000/- रुपये से अधिक राशि के व्यय हेतु निविदायें आमंत्रित की जाकर नियमानुसार व्यय किया जा सकेगा।
29. बजट पारित होने पर मुख्य कार्यपालक अधिकारी इसकी एक प्रति राज्य सरकार को प्रस्तुत करेगा। नियमों के प्रतिकूल बिन्दु पर निर्णय लिये जाने पर मुख्य कार्यपालक अधिकारी ऐसे बिन्दु को राज्य सरकार को अविलम्ब सूचित करेगा।
30. अंकेक्षण:-
(1) मन्दिर के लेखों का राज्य सरकार से नियुक्त आडिटर द्वारा वार्षिक अंकेक्षण किया जावेगा।
(2) राज्य सरकार अंकेक्षक को नियुक्त करते समय उनको दी जाने वाली फीस के सम्बन्ध में आदेश जारी करेगी।
(3) अंकेक्षक का पारिश्रमिक मन्दिर पर प्रथम प्रभार होगा तथा रिपोर्ट प्रस्तुत करने के एक माह के भीतर उसका चुकारा किया जायेगा।
(4) अंकेक्षक को बोर्ड समस्त वांछित अभिलेख प्रपत्र आदि प्रस्तुत करावेगा तथा वांछित सम्बन्धित सूचना भी मांगी जाने पर उपलब्ध करवायेगा।
(5) मुख्य कार्यपालक अधिकारी आडिटर की रिपोर्ट की प्रति बोर्ड को प्रस्तुत करते हुए एक प्रति राज्य सरकार को भी प्रस्तुत करेगा।
भाग -6
लेखा संधारण
साधारण-I
31. मन्दिर लेखा:
(1) बोर्ड यह देखेगा कि मूर्तियों के लिए या मन्दिर के रख-रखाव या अनुपोषण के लिये या उससे सम्बन्धित कोई सेवा या पुण्य करने के लिये अर्पित वस्तुओं, भेंटों तथा अन्य समस्त दानों तथा मन्दिर की समस्त आयों का उचित रूप से लेखा रखा जाता है। वह उचित रजिस्टर तथा प्रारूप विहित करेगा जिनमें लेखे रखे जाने हैं।
(2) बोर्ड यह सुनिश्चित करेगा कि मन्दिर के समस्त देय सही है तथा नियमित रूप से संग्रहित किये जाते हैं और शीघ्रता से मन्दिर निधि में निक्षिप्त किये जाते हैं।
(3) मुख्य कार्यपालक अधिकारी यह देखेगा कि समस्त भेंट, सम्मुख भेंट, भण्डारों या समधन पर भेंट, विभिन्न सेवाओं के रूप में भेंट, गोलक भेंट, ड्राफ्टों की मार्फत भेंट तथा भेटियाओं की मार्फत प्राप्त की गई भेंटों को सम्मिलित करके धन को दैनिक प्राप्तियां विहित रोकड़ बही में समुचित रूप से दर्ज की गई है और उसी के लिए शीघ्रता से रसीदें जारी की गई है तथा समस्त ऐसे धन बिना विलम्ब के मन्दिर के लेखे में निक्षिप्त किये गये हैं। रोकड़ बही की प्रविष्टियां मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा प्रतिदिन अनुप्रमाणित की जावेगी।
(4) मुख्य कार्यपालक अधिकारी यह सुनिश्चित करेगा कि मन्दिर की समस्त आय सही-सही तथा नियमित रूप से लेखे में प्रस्तुत की गई है तथा कोई त्रोटन नहीं है और इस प्रयोजन के लिए यह देखेगा कि पर्याप्त जांचों का प्रयोग किया गया है तथा लेखों के मालिक निरीक्षण किये गये हैं।
(5) मुख्य कार्यपालक अधिकारी यह सुनिश्चित करेगा कि मन्दिर को देय कोई रकम बिना पर्याप्त कारणों के नहीं छोड़ी गई है तथा जब कभी ऐसे देय अवसूलनीय प्रतीत हो तो इसके समायोजन, माफी, सन्दाय में कमी करने या बट्टे खाते डालने के लिए सक्षम प्राधिकारी का आदेश बिना विलम्ब के चाहा गया है।
(6) वास्तविक वसूली के पश्चात् जमा किया जाना:- कोई भी राशि मन्दिर के राजस्व के रूप में तब तक जमा नहीं की जावेगी, जब तक कि वह वस्तुतः वसूल न कर ली गई हो, वासतविक वसूली के बाद ही जमा किया जाना चाहिए।
(7) नकद तथा मूल्यवान वस्तुओं की अभिरक्षा:- मन्दिर के धन, मूल्यवान प्रतिभूतियां तथा वस्तुऐं तथा महत्वपूर्ण दस्तावेज मण्डल द्वारा किये गये इन्तजामों के अनुसार मन्दिर खजाने में या बोर्ड द्वारा अनुमोदित बैंक में रखे जायेंगे। केवल बोर्ड द्वारा प्राधिकृत व्यक्ति ही नकद, प्रतिभूतियों तथा अन्य मूल्यवान वस्तुओं को सम्भालने के लिए न्यस्त किये जायेंगे। मुख्य कार्यपालक अधिकारी उनकी उचित अभिरक्षा तथा नियमों और अन्य अनुदेशों के अनुपालन के लिए उत्तरदायी होगा।
32. निधियों का आहरण तथा जांचों का प्रयोग किया जाना:-
(1) मुख्य कार्यपालक अधिकारी या बोर्ड द्वारा इस निमित्त विशेष रूप से प्राधिकृत किसी अन्य अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित चालान या चैक के सिवाय मन्दिर खजाने या बैंक से किसी भी धन या वस्तु का आहरण या निकाला जाना अनुज्ञात नहीं किया जायेगा। धन बोर्ड द्वारा अधिकथित पद्धति के अनुसार तैयार अधिकोष विपत्र पर संदत्त किया जायेगा। मन्दिर निधियों से धन तब तक नहीं निकाला जायेगा जब तक कि वह किसी नियम के अधीन व्यय के किसी मद पर या सक्षम प्राधिकारी के विशिष्ट आदेश पर तुरन्त संवितरण के लिए अपेक्षित न हो।
(2) बोर्ड के निमित्त व्यय उपगत करने वाला या व्यय प्राधिकृत करने वाला प्रत्येक अधिकारी वित्तीय औचित्य के स्थापित स्तरों द्वारा मार्गदर्शित होगा तथा वैसी ही सतर्कता का प्रयोग करेगा जो मामूली प्रज्ञावाला व्यक्ति अपने स्वयं के धन के व्यय के सम्बन्ध में करता है।
(3) व्यय के लिए प्राधिकार की मंजूरी ज्यों ही इसकी पूर्ति करने के लिये निधियां आवंटित की जाती है प्रवृत्त हो जाती है। और वर्षोनुवर्षी निधियों के उपबन्ध के अध्यधीन उस वर्ष के लिये या यदि किसी विशिष्ट मामले में अवधि एक वर्ष से अधिक है तो विनिर्दिष्ट कालावधि, यदि कोई हो, के लिये प्रवृत्त रहती है।
(4) निर्विवाद देय धन के सन्दाय में देरी समस्त नियमों के प्रतिकूल है तथा इससे बचना चाहिए।
(5) मुख्य कार्यपालक अधिकारी देखेगा कि कुल व्यय न केवल प्राधिकृत विनियोग की सीमाओं के भीतर रखा जाता है बल्कि यह भी कि आवंटित निधियों को मन्दिर के हित तथा सेवा में तथा उस उद्देश्य पर भी खर्च किया जाता है जिसके लिए उपबन्ध किया गया है।
(6) मुख्य कार्यपालक अधिकारी मन्दिर निधियों या अन्य मन्दिर सम्पत्ति के किसी गलत संदाय, व्ययहरण, गबन की अध्यक्ष को तुरन्त रिपोर्ट करेगा तथा स्थिति के अनुरूप यथोचित कार्यवाही करेगा।
33. मन्दिर निधियों का विनिधान:-
(1) मन्दिर को समस्त अधिशेष विनिधियां जो समय-समय पर विनिधान के लिए उपलब्ध हों, तथा जो धारा 28 में यथा विनिर्दिष्ट मन्दिर के प्रयोजनों के लिए तुरन्त या पूर्व तारीख को उपयोजित नहीं की जा सकी है, न्यास या विन्यास के अनुदेश में अन्तर्विष्ट किसी निदेश के अध्यधीन -
1. उत्तम प्रतिभूतियों,
2. अल्प बचत योजना,
3. अनुसूचित बैंकों,
4. डाकघर बचत बैंक,
5. राजस्थान लोक न्यास अधिनियम की धारा 30 के अधीन न्यास निधियों के विनिधान के लिये प्राधिकृत प्रतिभूतियों में विनिहित या निक्षिप्त की जावेगी।
(2) प्रतिभूतियां जिनमें मन्दिर की अधिशेष निधियां विनिहित की जा सकेगी, बोर्ड के नाम में होगी।
भण्डार-II
34. भण्डार की वस्तुओं का लेखा रखना:- खरीदी गई या अर्पित वस्तुओं एवं भेंटों के रूप में प्राप्त की गई भण्डार की समस्त वस्तुओं को इस निमित्त प्राधिकृत व्यक्ति द्वारा परिधान लेते समय जांच, गिना, मापा या तोला, यथास्थिति तथा मूल्यांकित किया जायेगा और बोर्ड द्वारा विहित स्टाॅक रजिस्टरों में दर्ज किया जायेगा।
35. भण्डार वस्तुओं का क्रय करना:-
(1) भण्डार वस्तुओं का क्रय मन्दिर को परिनिश्चित अध्यपेक्षाओं के अनुसार अत्यन्त मितव्ययी रीति से किया जायेगा। भण्डार वस्तुयें अल्प मात्रा में नहीं खरीदी जावेगी। कालिक व्यादेश तैयार किये जायेंगे तथा यथासम्भव उतनी वस्तुयें ऐसे व्यादेशों के द्वारा उसी समय अभिप्राप्त की जायेगी। यदि ऐसे क्रय का अलाभकार साबित होना संभाव्य हो तो वास्तविक अध्यपेक्षाओं से अधिक भण्डार वस्तुओं का अगाऊ क्रय न करने पर ध्यान दिया जायेगा।
(2) भण्डार वस्तुओं का क्रय करने में जहां आवश्यक हो वहां भण्डार वस्तुओं को प्रदान करने के लिए प्रतियोगी निविदायें या उद्धरण, उनका पर्याप्त प्रकाशन करके आमंत्रित किये जायेंगे जबकि दिये जाने वाले आदेश का मूल्य कम न हो और किन्हीं निविदाओं की अपेक्षा करने महंगा या अव्यवहारित न हो और उस मामले में तुल्य क्वालिटी की वस्तुएं बाजार में उपलब्ध सबसे सस्ती कीमत पर खरीदी जायेगी।
(3) मुख्य कार्यपालक अधिकारी मन्दिर में दैनिक पूजा करने के लिए अपेक्षित कोई वस्तु यदि ऐसे क्रय का मूल्य 500/- रुपये से अधिक न हो तो किन्हीं निविदाओं की अपेक्षा किये बिना खुले बाजार से खरीद सकेगा। इसी तरह, वह किसी अतिआवश्यक संकर्म को, यदि इसका खर्चा 500/- रुपये से अधिक न हो तो किन्हीं निविदाओं की अपेक्षा किये बिना मंजूरी दे सकेगा।
36. भण्डार वस्तुओं की अभिरक्षा:
(1) मुख्य कार्यपालक अधिकारी या भण्डार की अभिरक्षा से न्यस्त ऐसा अन्य अधिकारी इसकी सुरक्षा के लिये उत्तरदायी होगा। भण्डार वस्तुओं के ऐसे भारसाधक अधिकारी को ऐसी रकम की प्रतिभूति देनी पड़ेगी जो उसकी सावधानी में न्यस्त भण्डार वस्तुओं तथा माल की उचित अभिरक्षा तथा सुरक्षा के लिए बोर्ड द्वारा विहित की जाय।
(2) भण्डार वस्तुओं की सुरक्षित अभिरक्षा के लिए लेखा रखने में समस्त सावधानी मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा रखी जावेगी। यदि बोर्ड के किसी अधिकारी या सेवक की उपेक्षा के कारण कोई हानि या नुकसान होता है तो उतनी हानि के लिये यह माना जायेगा कि वह नकदी की हानि थी।
37. भण्डार वस्तुओं का वास्तविक सत्यापन:- समस्त वस्तुओं का वास्तविक सत्यापन मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा एक वर्ष में कम से कम एक बार किया जायेगा और उसके द्वारा ऐसा करने के टोकन में वह समुचित रजिस्टर में एक प्रमाण-पत्र अभिलिखित करेगा तथा वह उसके द्वारा भण्डार वस्तुओं आदि के आधिक्य, कमी, अप्रायिक अवक्षय के सम्बन्ध में देखे गये प्रत्यक्ष तथ्य का टिप्पण करेगा। अवक्षय के कारण हुई हानि का विश्लेषण किया जायेगा तथा अवक्षय के कारण न हुई हानि का भी कारण, उदाहरणार्थ चोरी, कपट, उपेक्षा, दुर्घटना आदि दर्शित करते हुए टिप्पणी किया जाना चाहिए।
38. अधिशेष या अनप्रयोज्य भण्डार वस्तुओं का व्ययन:-
(1) अप्रचलित अधिशेष या अनप्रयोज्य वस्तुएं उन्हीं के लिए पूर्ण कारण देते हुए सक्षम प्राधिकारी (देखिये परि. ध) के आदेशों के अधीन विक्रय द्वारा या अन्यथा व्ययनित की जायेगी ऐसी वस्तुऐं मुख्य कार्यपालक अधिकारी या उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी अन्य अधिकारी की उपस्थिति में नीलाम की जावेगी।
(2) बोर्ड का कोई भी अधिकारी या सेवक तथा बोर्ड का कोई भी सदस्य मन्दिर सम्पत्ति से बेची गई या नीलाम की गई कोई वस्तु नहीं खरीदेगा।
भाग - 7
39. सेवा नियम एवं शर्तें:- बोर्ड के अधिकारी/कर्मचारी दो प्रकार के होंगे -
1. वैतनिक
2. अवैतनिक
40. वैतनिक कर्मचारी:
(1) पूर्णकालीन वैतनिक अधिकारी/कर्मचारी को राज्य सरकार के द्वारा निर्धारित वेतन एवं अन्य भत्तों के अनुसार चुकारा किया जावेगा। लेकिन इनको असहाय भत्ता, चिकित्सा भत्ता, चिकित्सा अवकाश, अध्ययन अवकाश आदि नहीं दिया जावेगा।
(2) कर्मचारियों पर राजस्थान सेवा नियमों के पार्ट 8 के नियमों में वर्णित पेंशन नियम लागू नहीं होंगे।
(3) सेवानिवृत्ति आयु अधिकारी एवं कर्मचारियों के लिए 60 वर्ष होगी।
(4) किसी भी कर्मचारी के शारीरिक अक्षमता के कारण अथवा मानसिक अस्थिरता हो जाने पर उसे सेवा से मुक्त किया जा सकेगा।
41. अवैतनिक कर्मचारी:- अवैतनिक कर्मचारियों के सम्बन्ध में मन्दिर के रीति-रिवाज एवं परम्पराओं का बोर्ड अनुसरण करेगा। पुजारी की नियुक्ति मन्दिर के रीति-रिवाज एवं परम्पराओं के अनुसार की जावेगी लेकिन पुजारी पद पर नियुक्ति के लिए पूजा पद्धति का ज्ञान होना अनिवार्य होगा।
42. नियुक्ति के अधिकार:- बोर्ड के अधिकारी एवं कर्मचारियों की नियुक्ति बोर्ड द्वारा की जावेगी। यदि बोर्ड चाहे तो कर्मचारियों की नियुक्ति हेतु एक उप समिति जिसमें मुख्य कार्यपालक अधिकारी अवश्य होगा, गठित कर उसे नियुक्ति के अधिकार दे सकेगी।
43. अनुशासनिक कार्यवाही:-
(1) मन्दिर में कार्यरत मन्दिर के कर्मचारी एवं राज्य सरकार से प्रतिनियुक्ति कर्मचारीगणों पर राजस्थान सिविल सेवा वर्गीकरण, नियंत्रण नियम एवं राजस्थान राज्य कर्मचारी चारित्रिक प्रक्रिया नियम लागू होंगे।
(2) मुख्य कार्यपालक अधिकारी बोर्ड के किसी भी कर्मचारी/अधिकारी के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही कर सकेगा।
44. शास्तियां:- राजस्थान सिविल सेवा वर्गीकरण एवं नियंत्रण नियम (सी.सी.ए. रूल्स) के अन्तर्गत माइनर पेनल्टीज से दण्डित करने हेतु मुख्य कार्यपालक अधिकारी सक्षम होगा। मेजर पेनल्टीज से दण्डित करने से पूर्व बोर्ड की सहमति आवश्यक होगी।
45. अपील:-
(1) मुख्य कार्यपालक अधिकारी द्वारा दी गई शास्ति के विरूद्ध प्रथम अपील बोर्ड में की जा सकेगी एवं द्वितीय अपील राज्य सरकार को की जा सकेगी।
(2) बोर्ड के निर्णय द्वारा दी गई शास्ति के विरूद्ध अपील राज्य सरकार के प्रशासनिक विभाग को प्रस्तुत की जा सकेगी।
(3) अपील आदेश के दिनांक से 90 दिन की अवधि में की जा सकेगी।
46. अवकाश:- बोर्ड वैतनिक कर्मचारी/कर्मचारियों के लिये साप्ताहिक व आकस्मिक तथा उपार्जित अवकाश का निर्धारण कर सकेगा।
47. अंशदाय फण्ड (पी.एफ.):-
(1) बोर्ड अपने वैतनिक कर्मचारियों के लिए एक प्रोवीडेन्ट फण्ड बनायेगा।
(2) प्रोवीडेन्ट फण्ड के लिए कर्मचारियों के अंशदान, बोर्ड का अंशदाता के खाते में अंशदान व इस राशि पर देय ब्याज की दर बोर्ड द्वारा समय-समय पर निर्धारित की जावेगी। बोर्ड अंशदान की दर राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त जी.पी.एफ. दर से किसी भी स्थिति में ज्यादा नहीं होगी।
(3) अंशदाता को उसके खाते में जमा राशि पर अग्रिम देने उसके पुनः भुगतान आदि के सम्बन्ध में राज्य सरकार द्वारा इसी प्रकार के अन्य कर्मचारियों के लिए समय-समय पर बनाये गये नियम लागू होंगे। |